जलवायु परिवर्तन के चलते अब प्रकृति में काफी तेजी से बदलाव होते जा रहे हैं. इसीलिए किसानों को और उनकी फसलों को कई बार सूखा तो कई बार बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है. सबसे ज्यादा प्रभाव सूखे का पड़ता है क्योंकि इसके चलते जो धान की फसल होती है वह पूरी तरह से खराब हो जाती है. धान की फसल के लिए सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए ईरी (अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान) ने डीआरआर- 44 धान की प्रजाति को ईजाद किया है. इस प्रजाति की खास बात यह है कि यह कम पानी में भी बेहतर उपज देती है. इसको उत्तर प्रदेश के ईरी के सार्क द्वारा जून से किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. इसके लिए हर तरह की तैयारी को पूरा कर लिया गया है.
पीएम मोदी ने किया था उद्घाटन
बता दें कि इस अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन 29 दिसंबर 2018 को पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था. यह उत्तर प्रदेश का अकेला केंद्र है जो ईरी की तरह से कृषि मंत्रालय की ओर से संचालित किया जा रहा है. इस सेंटर के निदेशक कहते हैं कि ईरी फिलींपींस की ओर से बाढ़ और सूखे को ध्यान में रखकर धान की नई प्रजाति को ईजाद किया गया है. डीआरआर-44 किस्म का सफल रूप से प्रशिक्षण किया गया है और बाद में इसे नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट कटक की ओर से भी जारी कर दिया गया है. इस तरह का चावल बाजार में जून तक आएगा. साथ ही आने वाले और दिनों में इसकी कई प्रजातियों को विकसित किया जाएगा. बाद में यहां पर किसानों, विद्यार्थियों की ट्रेनिंग के साथ शोध कार्य शुरू कर दिया जाता है.
इतनी है सामान्य धान उपज
टीआरआर-44 के साथ ही स्वर्णा सब-1, बीना धान- 11 भी सूखे के लिए विकसित हुई है. इसके अलावा सीआर धान- 801 बाढ़ के लिए बना है. बता दें कि सामान्य धान की उपज प्रति हेक्टेयर 5 से 6 टन तक होती है. हालांकि जब सूखा पड़ता है तो सामान्य धान बर्बाद हो जाती है. यह नई प्रजाति जो विकसित की गई है वह हर तरह की स्थिति से लड़ने के लिए सक्षम है. टीआरआर-44 सूखे के समय में भी बेहद अच्छी उपज देने में सक्षम है.
केंद्र में आधुनिक मशीनें
शोध कार्य करने के लिए केंद्र में तमाम आधुनिक मशीनें स्टॉल की जा रही है. इनसें धान की कुटाई से पहले और बाद के पोषक तत्वों की स्थिति पता चल जाती है.
Share your comments