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आज के दौर में किताबें

यह दुर्भाग्य और चिंता का विषय है कि भारत जैसा देश भी डिजिटल युग की इस तकनीकी हवा के हवाले हो गया और सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यही है कि आज यह प्रश्न बार-बार एक सर्प की भांति हमारे समक्ष मुंह खोले खड़ा हो रहा है।

यह दुर्भाग्य और चिंता का विषय है कि भारत जैसा देश भी डिजिटल युग की इस तकनीकी हवा के हवाले हो गया और सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यही है कि आज यह प्रश्न बार-बार एक सर्प की भांति हमारे समक्ष मुंह खोले खड़ा हो रहा है।

दिल्ली के इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फॉर आर्टस में तीन दिन तक चलने वाले साहित्य के सबसे बड़े मेलों में से एक अर्थात 'साहित्य आजतक' का आरंभ हो चुका है। 16 नवम्बर से आरंभ होने वाला यह साहित्य महाकुंभ 18 नवम्बर की शाम 7 बजे तक चलेगा। साहित्य, पत्रकारिता, लेखन, शायरी और सिनेमा का हर रंग यहां मौजूद है। देशभर से विभिन्न जगत की जानी मानी प्रतिभाएं इस मेले की शोभा हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि यहां जनता को उनसे मुखातिब होने का मौका भी मिल रहा है

16 नवम्बर को साहित्य आजतक के मंच पर एक विशेष और ज्वलंत विषय को केंद्र में रखकर चर्चा हुई। विषय था - क्या खो गईं हैं किताबें इस इंटरनेट के दौर में?

इस विषय को जनता तक रखने का काम आजतक के वरिष्ठ पत्रकार सईद अंसारी ने किया और इस मसले पर बात करने के लिए युवा लेखकों का एक अच्छा-खासा जमावड़ा मौजूद था जिसमें वर्णिका मिश्रा, दिव्यांशी भारद्धाज, प्रशांत चौधरी, उत्कर्ष शर्मा और सरवस्ती हल्दार मौजूद थे। इस अनोखी और बेहतरीन चर्चा में नौजवानों की एक बड़ी भीड़ शामिल थी जो इस शाम का लुत्फ़ उठाने के लिए आई थी।

मौजूदा दौर में इंटरनेट और डिजिटल के हावी प्रभाव के कारण किताबों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा परंतु कल संपन्न हुई चर्चा में यह बात अवश्य तय हो गई कि सूरज छिप अवश्य सकता है परंतु लुप्त नहीं हो सकता अर्थात किताबों की तरफ़ रुझान अवश्य कम हो सकता है परंतु उनकी लोकप्रियता और अस्तित्व हमेशा रहेगा और यह बात वहां मौजूद सभी को स्वीकार्य है। किताबों के अस्तित्व पर प्रश्न करते हुए जवाब के रुप में यह बात कही गयी कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो बिना किताब के अपनी पढ़ाई पूरी करता हो?

क्या कोई ऐसा है जो बिना पुस्तक पढ़े प्रतियोगी परीक्षा कि तैयारी करता हो? हकीकत यही है की भारत हो या संसार का कोई भी देश, किताबों के बिना वैसा ही है जैसे सूर्य के ताप बिना धरती।

तकरीबन एक से दो घंटे चली इस चर्चा में एक निर्णायक पहलू यह उभर कर आया कि देश के युवा और देश का भविष्य किताबों के बारे में एक सृजनात्मक और सकारात्मक सोच रखता है।

गिरीश पांडे, कृषि जागरण

English Summary: Books in today's day Published on: 17 November 2018, 03:30 PM IST

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