आज संयुक्त परिवार लगातार टूट रहे हैं. परिवार टूटकर छोटे हो रहे हैं और एकल परिवारों में बदल रहे हैं. शहरों में यह पाश्चात्य बुराई बहुत पहले आ गई थी और उसने गांव में भी धीरे-धीरे अपने पांव पसारना शुरू कर दिया है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे परिवार हैं जो एक बने हुए हैं.
परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के साथ रहते हैं, सुख-दुख बांटते हैं. हां, यह ग्रामीण संस्कृति की विशेषता है और आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं जिन्होंने परिवार नाम की संस्था को बचाये रखा है. राजस्थान में किशनगढ़ के पास रामसर में एक परिवार है जिसमें दस बीस या पचास नहीं ....सौ भी नहीं बल्कि 185 सदस्य हैं. ये बहुत सुखद आश्चर्य है कि ये परिवार एक साथ मिल - जुलकर रहता है. आस पास के गांव - शहर क्या ...भारत क्या...दुनिया भर में ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं .
11 चूल्हों पर बनती है 75 किलो आटे की रोटियां और पचास किलो सब्जी
जाहिर है इतने बड़े परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था आसान नहीं है लेकिन आपसी प्यार और जुड़ाव हो तो मुश्किलें आसान हो जाती हैं. इस परिवार के सदस्यों का खाना 11 चूल्हों पर बनता है जिसके लिए लगभग 75 किलो आटा परिवार की महिलाएं मिल - जुलकर गूंथती हैं . सब मिलकर रोटी बनाते हैं और सब्जी साफ करते हैं. करीब 50 किलो सब्जी रोज बनाई जाती है.
आपको यह आश्चर्य लग रहा होगा...लेकिन यह सच है. हमारा देश तो वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को मानता आया है और इस तरह के परिवारों ने हमारी ग्राम्य संस्कृति के गौरव को बढ़ाया है.
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