अध्यात्मिक,मांगलिक,साहित्यिक और जिविकोपार्जन के लिए बांस का बड़ा ही महत्व है. बांस को गरीबों की लकड़ी या गरीबों का ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है. आज पूरे देश में बांस से बनी बस्तुओँ की उपयोगिता व्यापार के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
बांस से जुड़े फायदों व इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए पूरे विश्व में 18 सितंबर को वर्ल्ड बैंबू डे या विश्व बांस दिवस मनाया जाता है. बांस सिर्फ जिविकोपार्जन के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावारण के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है. ये ग्लोबल वार्मिंग को कम करता है साथ ही सूर्य की बढ़ती ताप को कम कर अच्छी बारिश करवाने में भी मदद करता है.
बांस के महत्व
बांस का प्रयोग तो मध्य प्राषाण काल से ही हो रहा है. पतले पत्थरों के औजार में बांस के बेंत का प्रयोग होता था, साथ ही तीर-कमान भी अधिकांश बांस से निर्मित हुआ करते थे. धीरे- धीरे जैसे समय बदला बांस की उपयोगिता भी बढ़ती गई. जरुरत के हिसाब से बांस से निर्मित वस्तुओं की रुपरेखा बदलती गई. संगीत के क्षेत्र में कई तरह के वाद्य यंत्र बांस से ही बने. साथ ही साथ कई मांगलिक मौके पर बांस का प्रयोग हजारों साल पहले से होता आ रहा है. कई तीज-त्योहारों में भी बांस की समाग्रियों का होना आवश्यक है. परंपरा के अनुसार बांस की कोपलों से लेकर हरे और सूखे बांस की अपनी मान्यता है.
बांस की औषधीय गुण
बांस का पेड़ पर्यावरण के रक्षण में जितना मदद करता है, उससे कई ज्यादा मनुष्य व अन्य जीवों के कई बीमारियों के उपचार में भी मदद करता है. बांस की टहनियों में प्रोटीन, अमीनो एसिड,कार्बोहाइड्रेट,फाइबर व कई मिनरल्स व विटामिन पाए जाते हैं .
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बांस की कोपलें पाचन तंत्र को मजबूत करने में काफी मदद करती हैं.
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बांस की कोपला का नियमित सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं.
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विटामिन व मिनल्स भरपूर होने के कारण इसकी पतली टहनियों के नियमित सेवन करने से इम्यून सिस्टम काफी मजबूत होता है जो कई तरह के संक्रमण रोगों से लड़ने में मदद करता है.
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बांस की कोपलों में डाइटरी फाइबर डायबिटिज को कम करने में मदद करता है साथ ही हार्ट को सुरक्षित करने में काफी मदद करता है.
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