भारत में खेती-किसानी बड़े पैमाने पर की जाती है. ऐसे में रासायनिक खाद की जरुरत और खपत कुछ ज्यादा होती ही है, लेकिन आने वाले समय में देश में खाद का संकट आ सकता है. इस खरीफ की बुवाई के समय संकट भले ही ना आए, लेकिन रबी की फसल के सीजन के दौरान किसानों को संकट का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इस खाद संकट की खबर के साथ-साथ कई प्रकार के सवाल भी खड़े होते हैं, जिनमें से पहला सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो सकता है?
दरअसल, इस सवाल का जबाव हमें रुस और यूक्रेन युद्ध देता है. जैसा कि आपको पता है कि पिछले कई महीनों से रुस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है, जिसके कारण पूरे विश्व में खाद से लेकर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में इजाफा हो रहा है और कई जगह तो किल्लत भी आ रही है.
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जानकारी के लिए आपको बता दें यह संकट सिर्फ इस साल का नहीं है, आने वाले सालों में यह संकट और गहरा हो सकता है. कुछ दिन पहले ‘रूरल वॉयस’ और सोक्रेटस संस्थाओं ने एक बीतचीत में इस संकट की तरफ देश का ध्यान खींचा, लेकिन सवाल अभी भी वही है कि क्या हम अभी से इस संकट के तात्कालिक और दीर्घकालिक समाधान पर काम करना शुरू करेंगे, या फिर दूसरे विषयों की तरह इसे भी ठडें बस्ते में डाल दिया जाएगा.
भारत में खाद आयात को लेकर कुछ आंकड़े
भारत रासायनिक खाद के लिए विदेशी आयात पर निर्भर है, हमारे यहां पर 100 प्रतिशत पोटाश, 55 प्रतिशत डी.ए.पी. और 30 प्रतिशत यूरिया सीधा विदेश से आयात किया जाता है. जो यूरिया हमारे यहां बनता है, वह भी विदेश से आने वाली गैस से बनता है. इसलिए रुस और यूक्रेन बीच चल रहे युद्ध का प्रभाव हमें सीधा देखने को मिल रहा है.
रासायनिक खाद के हो सकते हैं ये विकल्प
रासायनिक खाद के संकट को कुछ हद तक टालने के लिए गाय के गोबर और गौमूत्र के अलावा पराली, फसल के अन्य अवशेष, जलकुंभी, राख, केंचुए, जानवरों की हड्डी, रसोई के कूड़े की कंपोस्ट और बायोगैस जैसे अनेक तरीकों से बहुत सस्ते में खाद बनाई जा सकती है. बीते कुछ सालों में सरकार की ओर से नेचुरल फार्मिंग की बात तो की गई है, लेकिन असल में सरकार की ओर से इस योजना के लिए कुछ ज्यादा नहीं किया गया है, इसलिए समय रहते किसान भाईयों को समस्या को समझना होगा और उसका समाधान भी निकालना होगा.
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