लगता है, हमारे देश के किसानों की जिंदगी में सुकून, राहत एवं करार सरीखे शब्दों का कोई औचित्य नहीं रह गया है. चाहे शासन हो या प्रशासन, हर कोई किसानों को समृद्ध करने की दिशा में बेशुमार कोशिशें करता है, लेकिन धरातल पर तो आज भी हमारे किसान भाई अपनी बदहाली से कराहते हुए नजर आ रहे हैं.
ऐसी घोर विपदा में ‘यास’ तूफान के कहर ने उनकी बदहाली को और बढ़ा कर रख दिया है. कल तक अपनी लहलहाती फसलों से खुश होने वाले किसान आज अपनी बर्बाद हो चुकी फसलों को देखकर निराश हैं. बता दें कि यास तूफान के कहर की चपेट में आई किसानों की फसले पूर्णत: बर्बाद हो चुकी है. इन बर्बाद हो चुकी फसलों को देखकर किसान भाइयों को कुछ समझ नहीं आय़ रहा है कि क्या किया जाए? वे अपने आपको विकल्पविहिन महसूस कर रहे हैं.
बंगाल हो चाहे झारखंड या फिर हो बिहार. बस इतना समझ लीजिए कि जहां कहीं भी यास तूफान की दस्तक हुई, उसने किसान भाइयों को अपना निशाने पर जरूर लिया है. अब किसान भाई अपनी बदहाली बयां करें, तो करे भी किसे? जहां पहले कोरोना महामारी के चलते बंद पड़ चुकी मंडियों की वजह से किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा था. वहीं, अब उनकी बकाया फसलें भी यास तूफान के कहर शिकार होकर रसातल में पहुंच गई है. इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखते हुए बिहार के किसानों ने सरकार से 50 हजार रूपए मुआवजे की मांग की है. उन्होंने सरकार से कहा कि उनकी रबी सीजन में उनके मक्का की फसल को काफी मात्रा में नुकसान पहुंचा है. ऐसे में उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए, लिहाजा उन्होंने अब सरकार से 50 हजार रूपए मुआवजे की मांग की है.
बता दें कि बिहार के किसान रबी और खरीफ दोनों ही सीजन में मक्के की खेती करते हैं. अब तक 10 फीसद मक्के की कटाई किसान भाई कर भी चुके थे, मगर यास तूफान ने सब कुछ बिगाड़ कर रख दिया. बिहार, मक्का उत्पादक राज्यों में पहले दर्जे पर है. यहां देश का 9 फीसद मक्के का उत्पादन होता है.
वहीं, बिहार किसान मंच के अध्यक्ष धीरेंद्र सिंह टुडू ने कहा कि हमने सरकार से प्रति एकड़ 50 हजार रूपए की दर से मुआवजा देने की मांग की है. उन्होंने कहा कि भारी बारिश की वजह मक्के की फसल को काफी मात्रा में नुकसान हुआ है. खैर, अब देखना यह होगा कि सरकार बिहार के किसानों की मांग को देखते हुए आगे चलकर क्या कुछ कदम उठाती है. तब तक के लिए आप कृषि क्षेत्र से जुड़ी हर बड़ी खबर से रूबरू होने के लिए पढ़ते रहिए कृषि जागरण…!
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