पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में गेहूं की फसलों में पीला रतुआ रोग ने किसानों को परेशान कर दिया है. इन राज्यों के उप-पर्वतीय भागों में पीले रतुआ रोग (Yellow Rust Disease) का पता चलने से किसानों में गेहूं की फसल (Wheat Crop) को लेकर चिंता बढ़ गयी है.
दरअसल, यह रोग ऐसा है, जो फसल को पूर्णरूप से बर्बाद कर देता है और किसानों को उनकी फसल से अच्छा उत्पादन भी नहीं मिल पाता है. ऐसे में गेहूं की फसल को पीला रतुआ रोग से बचाने के लिए जिले के कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientists) ने जरुरी सलाह दी है.
दरअसल, वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर फसल में लगे रोग को समय से नियंत्रित ना किया जाये, तो फसल पूरी तरह से बर्बाद हो सकती है, इसलिए सभी किसान भाई गेहूं फसल में पीला रतुआ रोग के शुरुआत में ही उपाय कर लें. अगर इस रोग को अनदेखा किया गया, तो आस-पास के क्षेत्रों में भई रोग फैलने का खतरा बना रहेगा.
उन्होंने कहा कि फसल में कीटनाशक का स्प्रे करें. इसके लिए प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 200 मिली प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी प्रति एकड़ को 15 दिन के अंतराल पर छिडक़ाव करें. इसके अलावा फसल पर नियमित निगरानी रखें. वहीँ वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान भाई फसल में समय रहते निजी कृषि अधिकारी को फसल के रोग के लिए सूचित भी करें, ताकि समय पर इनको नियंत्रित किया जा सके.
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पीला रतुआ एक फफूंदजनित रोग है, जो पत्तियों को पीले रंग में बदल देता है. इसमें गेहूं के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनने लगता हैं, जिसे छूने से हाथ भी पीला हो जाते हैं. शुरू में यह रोग 10-15 पौधों पर ही दिखाई देती है, लेकिन बाद में हवा, पानी के माध्यम से पूरे खेत व क्षेत्र में फैल जाता है.
कैसे होता है रोग का फैलाव (How Is The Disease Spread)
वैज्ञानिकों का कहना है कि वातावरण में नमी की मात्रा यानि औसतन 10-15 डिग्री सैल्सियस तापमान होने पर यह रोग मंडराने लगता है और देखते ही देखते यह रोग फैलने लगता है. आमतौर पर पीला रतुआ रोग नमी वाली क्षेत्रों, छाया, वृक्षों के आसपास व पापुलर वाले खेतों में सबसे पहले देखा जाता है. फसल के इस रोग की चपेट में आने से पैदावार अच्छी नहीं होती है. किसानों को फसल से हाथ धोना पड़ता है. इस रोग के लक्षण ठंडे व नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं.
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