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भाजपा शासित राज्य महाराष्ट्र में एक बार फिर से किसान बड़ी संख्या में सड़क पर उतर चुके हैं. महाराष्ट्र के लगभग 20 हज़ार किसान मुंबई पहुंचकर फडणवीस सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए तैयार हैं. महाराष्ट्र के ठाणे से चला किसानों का लॉन्ग मार्च आज यानी गुरुवार को मुंबई के आज़ाद मैदान पहुंच गया हैं. दरअसल सूखा ग्रस्त क्षेत्र के लिये मुआवजे और आदिवासियों को वन्य अधिकार सौंपे जाने की मांग को लेकर महाराष्ट्र के हजारों किसान एवं आदिवासियों ने बुधवार को ठाणे से मुंबई तक दो दिवसीय मार्च शुरू किया. गौरतलब हैं की इस बीच महाराष्ट्र सरकार के मंत्री गिरीश महाजन ने किसान नेताओं को सरकार से बात करने को कहा है.
क्यों हो रहा है किसान आन्दोलन
बता दे कि ये किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के साथ ही न्यूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून लाने जैसी कई और मांगे कर रहे हैं. 'स्वराज अभियान' के मुखिया और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता योगेंद्र यादव और संरक्षणवादी डॉ राजेंद्र सिंह इस किसान मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं. दरअसल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत पंजाब के किसान बीते 6 महीने से लगातार अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मोर्चे की संचालक प्रतिभा शिंदे ने बताया कि 12 बजे हमारा एक प्रतिनिधिमंडल सरकार से बात करने जायेगा. उसके बाद आगे की दिशा तय होगी.
गौरतलब है कि किसानों के इस जन आंदोलन को देखते हुए मुंबई पुलिस भी सतर्कता बरत रही है और ट्रैफिक की समस्या को लेकर लोगों को आगाह किया है. अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों में पुरुष-महिला, बुज़ुर्ग और बच्चे भी शामिल हैं.
दरअसल, इन हजारों किसानों की इस मार्च के माध्यम से मांग है कि खेतिहर मजदूरों की जंगल की जमीनें दी जाएं. साथ ही, सूखा प्रभावित इलाकों में सही ढंग से राहत पहुंचे. किसानों का कहना है कि पिछले प्रदर्शन को कई महीनें हो गए, मगर अब तक एक भी आश्वासन पर काम नहीं हुआ. लोकसंघर्ष मोर्चा संचालक प्रतिभा शिंदे के मुताबिक अगर सरकार ने हमारी मांगे पूरी नही की तो हम धरना प्रदर्शन करेंगे और ज़रूरत पड़ी तो जेल भरो आंदोलन भी करेंगे.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि करीब 6 महीने पहले भी अपनी मांगों को लेकर किसानों ने एक ऐसा ही मोर्चा निकाला था. तब फडणवीस सरकार ने उनकी मांगे मानते हुए उन्हें पूरा करने के लिए 6 महीने का वक़्त मांग था. लेकिन फिर उसके बाद कुछ नही किया.
विवेक राय, कृषि जागरण
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