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इस स्कूल में ऐसे मिलता है दाखिला

छत्तीसगढ़ में स्थित अंडी गांव के हायर सेकंडरी स्कूल में एडमिशन देने के लिए स्कूल के प्रशासन ने एक अलग और अनोखी पहल की है. इस स्कूल में एडमिशन लेने के लिए एक अनिवार्य शर्त ये है की स्टूडेंट्स को एक पौधा लगाकर उसे चार साल तक पालकर बड़ा करना होगा. इसके लिए छात्रों को दस बोनस अंक भी दिए जाते है.

छत्तीसगढ़ में स्थित अंडी गांव के हायर सेकंडरी स्कूल में एडमिशन देने के लिए स्कूल के प्रशासन ने एक अलग और अनोखी पहल की है. इस स्कूल में एडमिशन लेने के लिए एक अनिवार्य शर्त ये है की स्टूडेंट्स को एक पौधा लगाकर उसे चार साल तक पालकर बड़ा करना होगा. इसके लिए छात्रों को दस बोनस अंक भी दिए जाते है.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 130 किलोमीटर दूर वनांचल में स्थित यह स्कूल पर्यावरण संरक्षण का जमीनी पाठ पढ़ा रहा है। 12वीं की परीक्षा में एक प्रोजेक्ट वर्क की तरह पौधा लगाने का काम दिया गया है. इसके लिए 10 बोनस अंक भी छात्रों को मिलते हैं। यहां कक्षा नौ में दाखिला लेने वाले बच्चे के सामने शर्त रखी जाती है कि नौवीं से 12वीं तक वह एक पौधा लगाएगा, उसे पालेगा तभी दाखिला मिलेगा। स्टूडेंट्स ने यह पौधा कहाँ लगाया है स्कूल में दाखिले के वक़्त यह चीज़े लिखित में देनी पड़ती है. स्कूल की इस अनोखी पहल के कारण स्कूल परिसर और गांव के दूसरे सार्वजनिक स्थल भी बीते तीन साल के अंदर ही सैकड़ों हज़ारों छोटे-छोटे वृक्षों से हरे-भरे लगने लगे हैं.

इसी के साथ आपको बता दें की हायर सेकंडरी स्कूल की स्थापना साल 2012 में हुई थी। उसी समय यहां के प्राचार्य नरषोत्तम चौधरी और व्याख्याता संजय पांडेय ने पर्यावरण संरक्षण अभियान शुरू किया,  और वर्ष 2014 में यह पर्यावरण संरक्षण संबंधी नियम लागू हुआ था। साल 2017-18 में यहां से पहला बैच निकला, जिसके छात्रों ने कक्षा नौ में दाखिले के वक्त जो पौधे लगाए थे, वो अब छोटे-छोटे पेड़ बन चुके हैं. एक पौधे को छोटा पेड़ बनने में कम से कम तीन-चार साल लगते हैं, इसलिए कक्षा नौ से 12 तक एक वृक्ष तैयार करने वाले बच्चों को पर्यावरण दूत की उपाधि से नवाजा जाता है.

एक बच्चा एक पौधे का नारा देकर जब इस अभियान की नींव रखी गई तब गांव में बच्चों के माता-पिता भी पर्यावरण संरक्षण के साथ एक पौधा को वृक्ष बनाने में बच्चों की मदद करने लगे.

स्कूल में बना इको क्लब

प्राचार्य नरषोत्तम ने बताया की, स्कूल परिसर और चारों ओर बच्चों ने जो पौधे लगाए, उनमें से ज्यादातर पौधे अब छोटे पेड़ का आकार ले चुके हैं। इनमें नीम, आम, बरगद, पीपल, जामुन, कदम व दूसरे कुछ फलदार पेड़ भी  हैं। पौधों की देखरेख के लिए हर क्लास के मॉनीटर का एक इको क्लब भी बनाया गया है। इसी के साथ नरषोत्तम का कहना है की समय-समय पर बच्चों के बीच पर्यावरण आधारित प्रतियोगिता भी कराई जाती है।

 

वर्षा
कृषि जागरण

English Summary: This school gets admission Published on: 26 June 2018, 04:17 AM IST

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