देश के अधिकतर किसान धान की खेती को प्रमुखता देते हैं, लेकिन नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत का कहना है कि किसानों को ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिए, जिनमें पानी की खपत कम हो ऐसे में किसानों को धान की जगह बाजरे की खेती की ओर बढ़ाना चाहिए.
उनका मानना है कि बाजरे में कई पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों पाए जाते हैं. इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की भी प्रचुर मात्रा होती है, इसलिए इसका महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा कवच योजनाओं में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने एक ट्वीट में कहा है कि बाजरा के प्रचार के विषय में राज्यों के साथ सकारात्मक बातचीत की गई है. इसमें प्रोटीन और कैल्शियम के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्वों भी पाए जाते हैं. बता दें कि वह नेशनल कंसल्टेशन ऑन प्रमोशन ऑफ मिलेट्स पर हुई वर्चुअल बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे. इस बैठक में राज्यों के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किया है, साथ ही देश में पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं पर चर्चा की है.
खरीफ सीजन में बाजरे की खेती की जाती है. इसको मोटे दाने वाली फसलों की श्रेणी में रखा जाता है. हमारे देश में इसकी खेती राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात समेत कई राज्यों में की जाती है. इसकी खेती में किसानों को कम मेहनत करनी पड़ती है, साथ ही लागत भी कम आती है. इस तरह किसानों को अच्छी बचत हो सकती है.
बता दें कि इसकी खेती शुष्क प्रदेशों में ज्यादा होती है. खास बात है कि इस फसल की बुवाई में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि यह फसल वर्षा पर ज्यादा निर्भर होती है.
इसकी खेती उस जगह भी आसानी से की जा सकती है, जहाँ मिट्टी में अम्लीय गुण ज्यादा पाए जाते हैं. बाजरे की खेती के लिए रेतीली बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. लेकिन आज बाजरे की खेती लगभग सभी तरह की मिटटी में की जा रही हैं.
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