देश में किसानों ने एक नए तरह के आंदोलन की शुरुआत की है। 1 जून से 10 जून तक किसान गांव से शहर की ओर आने वाली सभी तरह के जरूरतमंद सामग्री जैसे की दूध, फल, सब्जी, इत्यादि की आपूर्ती होने से रोकेंगे। वैसे इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि गलत आर्थिक नीतियां और प्राकृति की मार के कारण देश के किसान आंदोलन के लिए उठ खड़े हुए हैं। किसानों का हमेशा ही कहना होता है की उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है। ये बात तो मान ली जाए लेकिन क्या किसानों के द्वारा सड़को पर दूध को बहाना उचित है? दूध की जरूरत की बात करें तो देश में लाखों बच्चों की जरूरत दूध से ही पूरी होती है। अस्पताल में कई सारे ऐसे मरीज़ हैं जिनकी दूध की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। तो जिस तरह से हमने देखा है की किसान सड़कों पर दूध को बहा रहे हैं क्या वो उचित है?
सड़कों पर दूध को फेंककर ही विरोध क्यों? क्या किसान जरूरतमंद लोगों को दूध बांट कर अपना विरोध नहीं जता सकती? ये तरीका अपनाने से ऐसा कर रहे किसानों का गुस्सा भी शांत हो जाएगा, जरूरतकमंद को दूध मिल जाएगा, दूध बर्बाद भी नहीं हागा और किसानों को शायद दूध की अहमियत भी मालूम पड़ जाएगा। दूध उत्पादन में हम भले ही और सभी देश से आगे हैं लेकिन, जितना हमारे देश में खपत है उतना शायद हम उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। और इसके वजह से देश में नकली और मिलावटी दूध के प्रचलन को जन्म दे रहे हैं। और इसके कारण बीमारियां भी फैल रही हैं। हालांकी मिलावट का खेल गांव में होता है या शहर में आने के बाद डेयरियां करती हैं ये तो एक जांच का विषय है। ये बात तो हमारे लिए गर्व है की हम दूध उत्पादन में अव्वल हैं लेकिन गौर करने वाली बात ये है की हम दूध के खपत में भी सबसे उपर हैं।
आइय अब दूध उत्पादन और दूध खपत के गणित को समझते हैं। हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को औसत 290 ग्राम दूध रोजाना मिलता है और इस हिसाब से दूध की एक दिन की कुल खपत लगभग 45 करोड़ की है और देश में दूध का उत्पादन करीब 15 करोड़ लीटर ही है। और इसको पूरा करने के लिए लगातार सिंथेटिक दूध बनाकर या फीर पानी मिलाकर किया जाता है। मिलावटी दूध के कारोबार की अगर बात करें तो ये शहर तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये अब गांव-गांव में भी फैलने लगा है। वहीं देश की अर्थव्यवस्था में दूध के योगदान की बात करें तो ये एक लाख 15 हजार 970 करोड़ रुपये का है। वहीं दूध उत्पादन के वृद्धि दर की बात करें तो ये पिछले वर्ष 6.3 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि अंतरराष्ट्रीय वृद्धि दर 2.2 फिसद रही है। देश में दूध का व्यापार बढ़ने के कारण दूसरे देशों की निगाहें इस कारोबार पर बनी हुई है। वैसे इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। दूध के कारोबार में सबसे बड़ी कंपनी फ्रांस की लैक्टेन है और इसने भारत की सबसे बड़ी हैदराबाद की दूध डेयरी 'तिरुमाला डेयरी' को 1750 करोड़ में खरीद लिया है। और इसमें भारत की तेल कंपनी ऑयल इंडिया भी प्रवेश कर रही है। दूध व्यापार में अधिक्तर लोग आज भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं और देश में लगभग 70 फिसद कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है। इस कारोबार में ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं। लेकिन, पारंपरिक ज्ञान से न केवल वे बड़ी मात्रा में दुग्ध उत्पादन में सफल हैं, बल्कि इसके सह-उत्पाद दही, घी, मक्खन, पनीर, मावा आदि बनाना भी जानते हैं। देश में दूध उतपादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हैं।
इसके साथ ही 14 राज्यों की अपनी दूध सहकारी संस्थाएं हैं।
तो किसानों को यह समझना होगा की दूध की क्या जरूरत है और इसके महत्व को जानते हुए उन्हें दूध को सड़कों पर बर्बाद नहीं करनी चाहिए
JIMMY
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