देश में छोटे व मझोले किसानों की आमदनी बढ़ाने की चुनौती से निपटने की तैयारी में सरकार जुट गई है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने जलवायु परिवर्तन को खेती के समक्ष बड़ा संकट मानते हुए कृषि वैज्ञानिकों को इससे पार पाने का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा है। देशभर के कृषि अनुसंधान संस्थानों के निदेशकों व कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में सिंह ने कहा कि देश की ग्रामीण तस्वीर को वैज्ञानिक बदल सकते हैं।
उन्होंने कहा कि छोटी जोत के किसानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। जलवायु परिवर्तन से उनकी माली हालत को बहुत नुकसान पहुंचता है। ऐसे छोटे व सीमांत किसानों के हित संरक्षण के लिए कृषि वैज्ञानिक ही सही रास्ता सुझा सकते हैं। वैज्ञानिकों के सहयोग से कृषि मंत्रलय ने देश के 15 कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों को शामिल करते हुए कुल 45 एकीकृत कृषि प्रणाली विकसित की है। इन वैज्ञानिक मॉडलों को देशभर में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्रों के मार्फत किसानों तक पहुंचाया जाएगा।
देश में खेती पर आने वाली आपदाओं से सुरक्षा करने के बाबत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से 623 ग्रामीण जिलों के लिए उनके हिसाब से जिला आकस्मिक योजनाएं तैयार की गई हैं। देश में छोटी जोत के किसानों को जागरूक बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। गांवों में मिट्टी जांच के लिए एक लघु प्रयोगशाला मृदा परीक्षक विकसित की गई है।
कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कृषि मंत्री सिंह ने कहा कि यहां से निकलने वाले युवा वैज्ञानिकों के चलते कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन की कमी को पूरा करने में मदद मिल रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और इन विश्वविद्यालयों में 42 जैव कृषि प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है। इनका परीक्षण कर उसमें सुधार किया जा रहा है। कृषि मंत्री सिंह ने कहा कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए एक रणनीतिक दस्तावेज तैयार किया गया है। इससे खेती की प्रगति और किसानों की खुशहाली बढ़ाने में मदद मिलेगी।
इसके अतिरिक्त नई तकनीकों का विकास करना, एकीकृत कृषि प्रणाली, संस्थान निर्माण, मानव संसाधन, कृषि विविधीकरण और रोजगार सृजन पर विशेष जोर दिया गया है। सम्मेलन में आइसीएआर के महानिदेशक डॉक्टर त्रिलोचन महापात्र समेत वरिष्ठ वैज्ञानिकों का जमावड़ा है।
Share your comments