केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि गांव के परिवारों में दूध उत्पादन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि बन गया है और किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए खेती-बाड़ी के साथ इसे भी अपना रहे हैं। राधा मोहन सिंह ने यह बात आज कृषि मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की अंतर-सत्रीय बैठक में कही। इस बैठक में राष्ट्रीय डेयरी योजना के कार्यान्वयन पर चर्चा हुई।
राधा मोहन सिंह ने कहा कि देश के लगभग 70 मिलियन ग्रामीण परिवार दूध उत्पादन में लगे हुए हैं।छोटे और सीमांत किसान तथा भूमिहीन श्रमिक, व्यक्तिगत रूप से प्रतिदिन लगभग एक से तीन लीटर दूध का उत्पादन कर देश के अधिकांश दूध का उत्पादन करते हैं। भारत के लगभग 78 प्रतिशत किसान, छोटे तथासीमांत हैं जिनके पास लगभग 75 प्रतिशत मादा गौजातीय पशु हैं, परंतु केवल 40 प्रतिशत फार्म भूमि है। दूध, ग्रामीण परिवारों कीसकल आय में लगभग एक तिहाई का तथा भूमिहीन लोगों के मामले में उनकी सकल आयके लगभग आधे हिस्से तक का योगदान करता है।
कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि भारत 1998 से विश्व के दुग्ध उत्पादक राष्ट्रों में पहले स्थान पर बना हुआ है। यहां विश्व की सबसे अधिक बोवाईन आबादी (18.4 प्रतिशत हिस्सा) है। भारत में दूध का उत्पादन 1970 के लगभग 22 मिलियन टन से बढ़कर 2015--16 में 156 मिलियन टन हो गया, जो पिछले 46 वर्षों में 700 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। इसकी बदौलत भारत में 299 ग्राम प्रतिदिन विश्व औसत के मुकाबले दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धतता 337 ग्राम प्रतिदिन है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि पिछले दो वर्षों, 2014-16 से दूध के उत्पादन ने 6.28 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की है, जो पिछले वर्ष की लगभग 4 प्रतिशत की विकास दर से अधिक है तथा 2.2 प्रतिशत के विश्व विकासऔसत के मुकाबले तीन गुना अधिक है। यदि चावल तथा गेहूं दोनों को भी मिला दिया जाए तो भी 2014-15 में 4.92 करोड़ रूपए के सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में दूध का 37 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान है। देश में उत्पादित दूध का लगभग 54 प्रतिशत अधिशेष है जिसमें लगभग 38 प्रतिशत संगठित सेक्टर द्वारा हैंडल किया जाता है, जिसमें सहकारिताओं तथा निजी डेयरी संगठनों की बराबर की भागीदारी होती है। केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि डेयरी व्यवसाय में महिलाओं की लगभग 70 प्रतिशत भागीदारी है।
राधा मोहन सिंह ने कहा कि दूध उत्पादन में वृद्धि करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिएयह जरूरी है कि दूध इकट्ठा करने की सुविधाओं में सुधार किया जाए तथा किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिएलाभकारी मूल्य दिया जाए। यह तभी संभव है, जब दूध उत्पादकों को बाज़ार से जोड़ने के लिए एक प्रभावी प्रबंधनप्रणाली स्थापित हो। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि बीपीएल परिवारों, लघु और सीमान्त किसानों को डिस्क्रिप्टदेशी नस्लें रखने के लिए प्रेरित किया जायेगा।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय बोवाईन प्रजनन और डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीबीबीडीडी) को 2014-15 में चार विद्यमान योजनाओं का मिला कर प्रारंभ किया गया है। इसका उद्देश्य दूध की बढ़ती मांग पूरा करने केलिए व्यापक और वैज्ञानिक कार्यक्रम तैयार करना है। योजना के दो घटक हैं- राष्ट्रीय बोवाईन प्रजनन कार्यक्रम (एनपीबीबी) और राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी)। एनपीबीबी कृत्रिम गर्भाधान नेटवर्क के फील्डकवरेज बढ़ाने, प्रजनन क्षेत्र में देशी नस्लों के विकास और संरक्षण कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग पर ध्यान केन्द्रितकरता है। एनपीडीडी उत्पादन, खरीद प्रसंस्करण और दुग्ध के विपणन के लिए दुग्ध संघों/परिसंघों के लिएअवसंरचना का निर्माण और सुदृढ़ीकर, डेयरी किसानों के प्रशिक्षण तथा विस्तार पर ध्यान दे रहा है।
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