मानव द्वारा पेड़-पौधों का उपयोग उतना ही प्राचीन है, जितनी की मानव सभ्यता. भारतीय ग्रंथों में जड़ी-बूटी और उनकी विशेषताओं का गुणगान भरा पड़ा है. उदाहरण के लिए रामायण में संजीवनी बूटी की महिमा ही पढ़ लीजिए. ऐसी ही एक जानकारी हम लेकर आए हैं.
दरअसल, झारखंड के राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में लगभग 24 प्रकार के औषधीय पौधे हैं. खास बात यह है कि ये पौधे जंगलों में जहां-तहां मिल जाते हैं, जिनका उपयोग दवाओं के निर्माण में होता है. आदिवासी लोग इलाज इनका प्रयोग भी करते हैं.
बता दें कि राजमहल की पहाड़ियां साहिबगंज से लेकर गोड्डा व पाकुड़ जिले तक फैली हुई हैं. इन पहाड़ियों के जंगलों में औषधीय पौधों का विशाल भंडार है.
जंगलों में कौन-कौन हैं औषधीय पौधे (What are the medicinal plants in the forests)
इन जंगलों में कालमेघ, खैर, चिरैता, अश्वगंधा, कवाच बीज, गिलोय, वनतुलसी, चिरचिरी, निर्गु़डी, पलाश, पूर्णनाका, बेल, जंगली प्याज, गूलर, छतवन, बहेड़ा, सेमल, मूसली, सतावर, धतुरा, सोनपाठा, भुई आंवला, रिगेनी, धातकी आदि औषधीय पौधे पाए जाते हैं.
सैकड़ों लोगों को मिलता है रोजगार (Hundreds of people get employment)
आदिवासी इलाकों में लगने वाले साप्ताहिक हाट में औषधीय पौधों की दुकानें सजती हैं, साथ ही इनकी बिक्री भी होती है. कभी-कभी चिरैता, गिलोय समेत कई अन्य औषधीय पौधे शहरों तक भी पहुंच जाते हैं. अगर इनके संग्रह और मार्केटिग की अच्छी व्यवस्था कर दी जाए, तो यहां सैकड़ों लोगों को बेहतर रोजगार मिल सकता है.
जड़ी-बूटियों की अच्छी डिमांड (good demand for herbs)
झारखंड के राजमहल की पहाड़ियों पर पाई जाने वाली जड़ी -बूटियों की डिमांड महाराष्ट्र व कर्नाटक में अच्छी होती है. वहां दवाओं की कई कंपनियां हैं, जो इनसे दवा बनाती हैं.
हालांकि, ट्रांसपोर्ट की बेहतर व्यवस्था नहीं है, इसलिए औषधियां पहुंचाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अगर इन जड़ी-बूटियों के प्रसंस्करण की व्यवस्था हो जाए, तो उसे दवा कंपनियों को भेजना आसान होगा.
एक दशक तक खूब होता था कारोबार (There was a lot of business for a decade)
जानकारी के लिए बता दें कि एक दशक पहले तक इन जड़ी-बूटियों का खूब कारोबार किया जाता था. वन विभाग द्वारा मेसर्स सुल्ताने सेवन ब्रदर्स हवर्स सप्लाई कंपनी को संग्रह का लाइसेंस दिया गया था. बता दें कि यह राज्य की पहली कंपनी है, जो जड़ी-बूटी का संग्रह करती है. मगर जब राज्य में जैव विविधता अधिनियम 2002 लागू हुआ, तो इसके बाद कंपनी के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया. इस अधिनियम के तहत पंचायतों में ग्राम वन प्रबंधन समिति का गठन करना था.
यह खबर भी पढ़ें: Medicinal Plants: गुजरात के इस गांव में हर घर में है औषधीय पौधे
जंगलों में लगा देते हैं आग (set fire to the forests)
हैरानी की बात यह है कि हर साल पहाड़ों व उसके आसपास रहने वाले लोग फरवरी-मार्च में जंगलों में आग लगा देते हैं, ताकि महुआ चुनने व शिकार करने में परेशानी ना हो. इस वजह से अधिकतर औषधीय पौधे नष्ट हो जाते हैं.
वनों की जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि अगर ग्रामीणों को जागरूक किया जाए, साथ ही औषधीय पौधों को एकत्र करवाया जाए, तो इस तरह हजारों लोगों को बेहतर रोजगार मिल सकता है.
Share your comments