देश में चावल की बढ़ती मांग को देखते हुए अनुसन्धान केंद्रों में कई नई किस्मों को विकसित किया जा रहा है. जिसको पारम्परिक तरीकों से हटकर उगाया जा सके. नई किस्मों की उपज अक्सर काफी आसान से होती है. मेहनत और पानी दोनों काम मात्रा में लगती है और उपज भी दोगुना होता है. हाल ही में विकसित चावल की किस्म DBW 303 किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है.
महाराष्ट्र के पालघर जिले के वाडा से ऐसी ही एक खबर आई है. दरअसल, वाडा तहसील में उगाई जाने वाली चावल की किस्म कोलम चावल को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिला है, जो इस चावल को न केवल एक विशेष पहचान दिलायेगा, बल्कि इसका बड़ा बाजार भी उपलब्ध हो कराएगा.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ कृषि अधिकारी के अनुसार, संभागीय कृषि संयुक्त निदेशक अंकुश माने ने बताया कि वाडा कोलम चावल को जीआई टैग मिला है. इस संबंध में 29 सितंबर को मुंबई में बैठक हुई थी.
बता दें, कि वाडा कोलम चावल को जिनी अथवा झिनी के तौर पर भी जाना जाता है. यह एक परंपरागत किस्म है, जिसे पालघर जिले के वाडा तहसील में उगाया जाता है. इस चावल का रंग सफेद होता है. महाराष्ट्र के साथ-साथ अन्य जिलों में इस किस्म को लेकर किसानों के बीच उत्सुकता काफी बढ़ गयी है. उपज में बढ़ोतरी को लेकर किसानों को मुनाफा भी अधिक होगा.
GI टैग मिलने के बाद अब इस किस्म में किसान अपनी रूचि अधिक दिखा रहे हैं. अधिकारियों ने बताया कि घरेलू बाजार में इस चावल की कीमत 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम है और विदेशों में इसकी मांग बहुत अधिक है.
तीसरी पीढ़ी के वाडा कोलम किसान अनील पाटिल कहते हैं कि वाडा तहसील के 180 गांव के करीब 2500 किसान चावल की इस किस्म की खेती करते हैं. प्रदेश के चिन्नोर धान भी GI टैग में 44 शामिल है. आपको बता दें इसकी सुगंध ही इसकी ख़ासियत है. जिससे प्रदेश ही नहीं पूरा विश्व सुगन्धित हो रहा है.
2019 में कृषि बालाघाट अनुसन्धान परिषद हैदराबाद ने GI टैग का वादा किया था. वही महाराष्ट्र ने भी यही दावा किया था. जिसके बाद मध्य प्रदेश के चिन्नोर को GI टैग की अनुमति दे दी गयी. टैग मिलने के बाद राज्य के मुख्य मंत्री खुद इसकी ब्रांडिंग में उतर गए थे. बालाघाट जिले के लगभग 25 गावों में इसका उत्पादन हो रहा है.
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