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Paddy Farming: धान की खेती करने से पहले एक बार जरूर पढ़ लें!

इलाहाबाद के झूसी व संत कबीरनगर में लहुरादेवा की खुदाई में मिले पुरातात्विक अवशेषों के अध्ययन से पता चला है कि झूसी में 9000 ईसा पूर्व व लहुरादेवा में करीब 8000 ईसा पूर्व धान की खेती होती थी। इससे पहले पूरी दुनिया पाकिस्तान में मिले 6000 ईसा पूर्व की प्राचीनता वाले धान की खेती को सबसे पुराना मानती थी.

KJ Staff
Paddy Cultivation
Paddy Cultivation

वानस्पतिक नाम –ओराइजा सटाइवा

कुल – ग्रेमिनी (पोएसी)

गुणसूत्र संख्या- 2n= 24, 40

महत्वपूर्ण जानकारी

  • धान भारत की मुख्य फसल है। मुख्यतौर पर ये मॉनसून की खेती है, लेकिन कई राज्यों में धान सीजन में दो बार होता है

  • भारत धान की जन्म-स्थली मानी गई है

  • धान (ओराय्ज़ा सैटिवा) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है

  • यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है

  • विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है

  • भारत की सबसे अधिक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल धान ही है

  • संसार की आधे से अधिक 60 से 65% जनसंख्या का प्रमुख भोजन चावल है

  • चावल में पाया जाने वाला मांड में अधिक मात्रा में स्टार्च पाया जाता है जो कपड़े उद्योग में अधिक प्रयोग होता है

  • धान का जो भूसा होता है उसे मुर्गी पालन के बीछावनी में प्रयोग किया जाता है

  • धान का जो अवशेष होता है जिसे भूसा कहते हैं उससे तेल निकाला जाता है जो खाने में प्रयोग किया जाता है

  • इलाहाबाद के झूसी व संत कबीरनगर में लहुरादेवा की खुदाई में मिले पुरातात्विक अवशेषों के अध्ययन से पता चला है कि झूसी में 9000 ईसा पूर्व व लहुरादेवा में करीब 8000 ईसा पूर्व धान की खेती होती थी. इससे पहले पूरी दुनिया पाकिस्तान में मिले 6000 ईसा पूर्व की प्राचीनता वाले धान की खेती को सबसे पुराना मानती थी

  • चावल एक पोषण प्रधान भोजन है जो तत्काल ऊर्जा प्रदान करता है, क्योंकि इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) है

  • दूसरी ओर, चावल में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ कम होते हैं, इन पदार्थों की औसत संरचना केवल 8 प्रतिशत होती है और वसा की मात्रा या लिपिड केवल नगण्य, यानी 1 प्रतिशत होती है और इस कारण इसे खाने के लिए एक संपूर्ण भोजन माना जाता है चावल का आटा स्टार्च से भरपूर होता है और इसका उपयोग विभिन्न खाद्य सामग्री बनाने के लिए किया जाता है

  • देश में प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, पंजाब, उड़ीसा, बिहार व छत्तीसगढ़ हैं। पूरे देश में 36.95 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सत्र 2016-17 में 109.15 मिलियन टन धान का उत्पादन हुआ, जोकि पिछले सत्र से 2.50 मिलियन टन (2.34%) ज्यादा था. पिछले पांच वर्षों में 3.54 प्रतिशत अधिक रहा.

जलवायु 

  • यह उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु की फसल है.

  • इस फसल की पैदावार के लिए अधिक तापमान, अधिक आद्रता, अधिक वर्षा अच्छी होती है.

  • इस फसल की 100 सेंटीमीटर से 250 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में खेती सफलतापूर्वक की जाती है.

  • औसत तापमान 21 अंश सेंटीग्रेड से 35 अंश सेंटीग्रेड होनी चाहिए.

  • कटाई के समय 21 अंश सेंटीग्रेड से 25 अंश सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है.


भूमि 

  • उचित जल निकास वाली भारी दोमट मिट्टी इस फसल की खेती के लिए उपर्युक्त मानी गई है

  • इस फसल के लिए अधिक जल धारण क्षमता वाली भूमि की आवश्यकता पड़ती है

  • धान की फसल के लिए पीएच 4.5 से 8.0 उपर्युक्त होती है

धान की उन्नत किस्में

असिंचित दशा:

 नरेन्द्र-118, नरेन्द्र-97, साकेत-4, बरानी दीप, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमनी

 सिंचित दशा:

सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्मों में पूसा-169, नरेन्द्र-80, पंत धान-12, मालवीय धान-3022, नरेन्द्र धान-2065 और मध्यम पकने वाली किस्मों में पंत धान-10, पंत धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर-381 प्रमुख किस्में हैं

ऊसरीली भूमि के लिए धान की किस्में:

  • नरेन्द्र ऊसर धान-3, नरेन्द्र धान-5050, नरेन्द्र ऊसर धान-2008, नरेन्द्र ऊसर धान-2009

    पूसा – 1460

  • पैदावार 50 से 55 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 120 से 125 दिन

  • धान की विशेषता – दाना छोटा पतला दाना, पौधा छोटा

डब्लू. जी. एल. – 32100

  • पैदावार 55 से 60 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 125 से 130 दिन

  • धान की विशेषता – दाना छोटा पतला दाना, पौधा छोटा

पूसा सुगंध – 3, पूसा सुगंध – 4

  • पैदावार 40 से 45 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 120 से 125 दिन

  • धान की विशेषता – लम्बा पतला एवं सुगन्धित दाना

एम. टी. यू. – 1010

  • पैदावार 50 से 55 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 110 से 115 दिन

  • धान की विशेषता – पतला दाना, पौधा छोटा

आई. आर. – 64 , आई. आर. – 36

  • पैदावार 50 से 55 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 120 से 125 दिन

  • धान की विशेषता – लम्बा पतला दाना , पौधा छोटा

डीआरआर धान 310

  • लोकप्रिय किस्मों में 0 – 8.0 प्रतिशत की तुलना में पालिश दानों में 10.3 प्रतिशत प्रोटीन होता है 

  • पैदावार 0 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 125 दिन

  • उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए अनुमोदित

  • भा.कृ.अनु.प. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक द्वारा विकसित

डीआरआर धान 45

  • पालिश दानों में जिंक की उच्च मात्रा (22.6 पीपीएम) जो प्रचलित किस्मों में उपलब्ध जिंक (12.0 – 16.0 पीपीएम) से अधिक है

  • पैदावार 0 किवंटल / हेक्टेयर

  • फसल पकने की अवधि 125 – 130 दिन

  • कर्नाटक, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना राज्यों के लिए अनुमोदित

  • भा.कृ.अनु.प. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा विकसित

 

क्रमांक

प्रजातियां

अवधी

(दिनों में)

उपज

(क्विंटल/हेक्टेयर)

विशेषताएं

1

आदित्य

90

30

बौनी, ब्लास्ट प्रतिरोधक, मोटा दाना

2

वनप्रभा

90

25

लंबा पतला दाना, मध्यम  ऊंची

3

पूर्णिमा

105

35

बौनी, लंबा पतला दाना, सुखा सहनशील

4

तुलसी

105

35

बौनी ब्लास्ट प्रतिरोधक, मोटा दाना

5

दंतेश्वरी

105

35

बौनी, गंगई निरोधक, लंबा पतला दाना

6

समलेश्वरी

110

40

बौनी, गंगई निरोधक, झुलसा  सहनशील, मध्यम पतला देना

7

आई आर 64

115

45

बौनी, लंबा पतला दाना, गंगई

एवं झुलसा रोग सहनशील

8

आई आर 36

115

45

बौनी, लंबा पतला दाना, कीट व्याधि हेतु  सहनशील

9

चंद्रहासिनी

120

50

बौनी, गंगई निरोधक, भूरा माहू सहनशील, लंबा पतला दाना

10

इंदिरा सोना

125

60

बौनी, गंगई निरोधक,  लंबा पतला दाना, झुलसा रोग के लिए सहनशील

11

कर्मा मासूरी

125

50

बौनी ,मध्यम पतला  दाना, गंगई निरोधक  एवं भूरा माहो, झुलसा रोग सहनशील

12

महामाया

127

55

बौनी, लंबा मोटा दाना, गंगई निरोधक, पोहा के लिए उपयुक्त

13

इंदिरा सुगंधित धान 1

130

45

बौनी, सुगंधित मध्यम पतला दाना, गंगई निरोधक

14

पूसा बासमती 1

130

40

सुगंधित, अतिरिक्त लंबा पतला दाना

15

बमलेश्वरी

140

50

बौनी, मोटे दानों वाली पोहा तथा मुरमुरा हेतु उपर्युक्त


खेत की तैयारी

  • खेत में फसल कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से भूमि की अच्छी तरह से जुताई कर देनी चाहिए

  • गर्मी के मौसम में मिट्टी पलटने वाले हल से अच्छी तरह जुताई कर देनी चाहिए जिससे हानिकारक कीड़ा व जीवाणु मर जाएं

  • पहली बरसात में भूमि की एक जुताई के साथ गोबर की खाद वह कंपोस्ट खाद डालकर अच्छे से जुताई कर देना चाहिए

बीज की मात्रा

      विधि

बीज (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर)

छिड़काव विधि

100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

पंक्तियों में बुवाई

60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

हाइब्रिड धान

15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

एस आर आई  विधि

5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

रोपा  विधि

40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

डेपोग विधि

1.5 - 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

बीज उपचार

  • बुवाई के पूर्व बीज का उपचार करना अति आवश्यक माना गया है

  • धान की बुवाई के पूर्व बीज उपचार के लिए 10 लीटर पानी में 17% नमक का घोल तैयार करते हैं. इस घोल में धान के बीज को डूबाकर अच्छे से मिलाया जाता है,  जिसमें  हल्के तथा खराब दाने ऊपर तैरने लगते हैं और स्वस्थ नीचे बैठ जाते हैं  फिर खराब दानों को निकालकर फेक देते हैं और अच्छे दाने को निकालकर स्वच्छ पानी में दो से तीन बार धोने के बाद फिर उसे छांव में सुखा दिया जाता है

  • थायरम व बाविस्टीन को 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें

  • ट्राइकोडर्मा पाउडर 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें

  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 4 से 5 ग्राम पाउडर प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें 

  • उपचारित बीज को गीले बोरे में लपेटकर ठंडे कमरें में रखें. समय समय पर इस बोरे पर पानी सींचते रहें। लगभग 48 घंटे बाद बोरे को खोलें। बीज अंकुरित होकर नर्सरी डालने के लिए तैयार होते हैं

  • किसानों को बीज शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए. बीज शोधन करके धान को कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है। किसानों को एक हेक्टेयर धान की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में महज 25-30 रुपये खर्च करने होते हैं

रोपाई

  • पौधों को 2 से 3 सेंटीमीटर तक ही रोपाई करना चाहिए 

पौध नर्सरी तैयार करना

  • बीज बुवाई के पूर्व थाइरम व बाविस्टिन नाम की दवा को 2 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए 

  • नर्सरी की तैयारी के लिए 12 मई से 31 मई तक का समय उपर्युक्त माना गया है 

नर्सरी तीन प्रकार से तैयार की जाती है

सूखा नर्सरी

  • इस विधि में धान की बुवाई शुष्क क्षेत्र में की जाती है बुवाई के लिए खेत का 1/10 वाँ भाग में बीज बोया जाता है 

  • खेती अच्छी तरह जुताई करते मिट्टी को भुरभुरा बना लेने के बाद 10 से 15 टन गोबर की खाद जो अच्छी तरह सड़ी हुई हो मिला देना चाहिए 

  • नर्सरी के लिए क्यारी की लंबाई 10 मीटर व चौड़ाई 10 मीटर हो वह जलभराव ना हो आसपास के क्षेत्र  से 10 सें 20 सेंटीमीटर  ऊंचा बनाएं वह चारों तरफ ढाल बनाएं  

  • फिर भी जो 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बुवाई कर देना चाहिए व समय-समय पर पानी देते रहना चाहिए 

  • इसमें 15 किलोग्राम यूरिया 100 वर्ग मीटर नर्सरी बेड में डालना चाहिए 

गीली नर्सरी विधि

  • इस विधि की नर्सरी अधिक पानी वाले क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है 

  • बुवाई के लिए खेत का 1/10 वाँ भाग में बीज बोया जाता है 

  • इस नर्सरी की दो से तीन बार सुखी जुताई करें व तीन से चार बार 4 सेंटीमीटर पानी भरकर अच्छी तरह पडलिंग करें व गोबर की खाद  10 से 15 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खेत में डालें 

  • आखिरी जुताई मैं पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए 

  • एक से डेढ़ मीटर चौड़ी क्यारियों को बनाएं व अंकुरित बीज को बेड में बिछा देना चाहिए व अधिक पानी गिरे तो बाद में पानी को निकाल देना चाहिए जिससे  बीज  सड़े ना 

  • इसमें 15 किलोग्राम यूरिया 100 वर्ग मीटर नर्सरी बेड में डालना चाहिए 

डेपोग नर्सरी विधि

  • यह बिना मिट्टी के उपयोग कर फर्स, क्रांक्रीट और लकड़ी के तख्ते या ट्रे का उपयोग किया जाता है 

  • 10 से 12 घंटे तक बीज को पानी में भीगा कर रखा जाता है फिर इसे निकाल कर फर्स में नमी रखकर अंकुरित किया जाता है 

  • इसे पर्स में रखने के बाद पॉलिथीन की चद्दर या केले के पत्तियों में ढककर नमी बनाए रखें धान के बीज की जड़ हलके पानी के संपर्क में रहना चाहिए 

  • 12 से 14 दिन में रोपाई के लिए तैयार हो जाता है और इसे खेत में पडलिंग करके लगा देना चाहिए 

  • इस विधि में  पौधों से पौधों की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर व  कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होना चाहिए

खाद एवं उर्वरक 

  • मिट्टी का परीक्षण करने के आधार पर उर्वरकों का उपयोग किया जाता है 

  • 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छे प्रकार से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद का उपयोग करने से 50 से 60  प्रतिशत रसायनिक खाद में कटौती होती है

क्रमांक

उर्वरक

बोनी जातियों के लिए

देसी जातियों के लिए

किलोग्राम प्रति एकड़

1

नाइट्रोजन

(किलोग्राम/हेक्टेयर)

120

60

50

2

फास्फोरस

(किलोग्राम/हेक्टेयर)

60

40

25

3

पोटाश

(किलोग्राम/हेक्टेयर)

30

15

12

 

यूरिया

(किलोग्राम प्रति एकड़)

DAP & SSP

(किलोग्राम प्रति एकड़)

MOP

(किलोग्राम/एकड़)

जिंक (किलोग्राम / एकड़)

110

50

100

20

12-15

         
  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा लेह समय व जुताई के समय अच्छी तरह से मिला देना चाहिए

  • बाकी बचा नाइट्रोजन को रोपाई के 30 दिन बाद आधी मात्रा उपयोग में लाना चाहिए

  • बची हुई नाइट्रोजन को रोपाई के 60 दिन बाद उपयोग में लाना चाहिए 

  • SSP को रोपाई के बात डालने से अच्छा रिजल्ट देता है 

सिंचाई

  • धान की फसल में 140 से 150 सेंटीमीटर प्रति हेक्टेयर पानी की आवश्यकता होती है।

  • धान की फसल में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है

  • इसमें अलग-अलग अवस्था में पानी की आवश्यकता पड़ती है 

  • रोपाई के समय पानी की आवश्यकता होती है

  • 40  प्रतिशत पानी अंकुरण से कंसा बनने तक लगता है 

  • 50 प्रतिशत पानी गर्भावस्था से दूध भरने तक लगता है 

  • 10 प्रतिशत पानी फसल पककर तैयार होने तक लगता है 

  • पूरी अवस्था में ढाई सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है 

खरपतवार नियंत्रण

  • कोनोवीडर की सहायता से खरपतवार में नियंत्रण पाया जा सकता है

  • नर्सरी जमीन तैयार कर सिंचाई करें व खरपतवार उगे तो नष्ट कर दे 

  • थरहा डालने के 3 से 4 दिन के अंदर बुटाकलोर एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व का छिड़काव करें 

  • कतार विधि में बुवाई के तीन से चार दिन के अंदर बुटाकलोरया पेंडीमेथालिन एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें 

  • बीआसी विधि में बुवाई के 3 से 4 दिन के अंदर बुटाकलोर एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें 

  • रोपा विधि में रोपा के 6 से 7 दिन के अंदर बुटाकलोरया पेंडीमेथालिन एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें 

  • लेही पद्धति लेही डालने के 8 से 10 दिन बाद बुटाक्लोर एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए 


कटाई

  • बुवाई के 3 से 5 माह में धान की अलग-अलग किस्म पककर तैयार होती है 

  • यह सितंबर से दिसंबर तक धान की अलग-अलग किस्म पककर काटने योग्य हो जाती है 

  • पका हुआ फसल का रंग पीला पत्तियों का रंग सुनहरा हो जाए तो फसल काट लेना चाहिए 

  • साधारणतः हशिया से कटाई करने के बाद गट्ठा बांधकर उसे सुरक्षित खलियान में ले जाकर 10 दिन तक सुखाते हैं 

मंडाई

  • मंडाई जापानी थ्रेसर से मंडाई करते हैं 

ओसाई 

  • ओसाई प्राकृतिक वायु या यांत्रिक विनोवर की सहायता से धान की विनोइंग की जाती है 

 उपज

विधि

क्विंटल प्रति हेक्टेयर

छिड़काव विधि

15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

धान की देसी किस्म

20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

बौनी उन्नत किस्म

50 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

रोपकर बोई फसल

50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर


धान को धूप में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए

भंडारण

  • 12 से 13 प्रतिशत नमी होने पर उसे हवा व नमी रहित स्थान में भंडार करके रखें

  • भंडारित स्थान पर मेलाथियान 50 EC 20 ml को 2 लीटर पानी में तैयार करके छिड़काव करें

कीट व उसके नियंत्रण

क्रमांक

कीट का नाम

व्यस्क कीट क्षतिग्रस्त पौधे

कीट की पहचान

नियंत्रण के लिए दवाई

(हेक्टेयर में)

नियंत्रण के लिए दवाई

(एकड़ में)

1

पीला तना छेदक

 

पत्तियों के मध्य घुसकर तने में पहुंच जाती है जिससे मध्य की कलिका व बालियां मुरझा जाती है जिसे डैड हॉट कहते हैं इसका वयस्क कीट पीला रंग का होता है  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 2000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

 

 

*पीले तना बेधक के अंडे के द्रव्यमान को खत्म करने के लिए रोपाई से पहले सिरे वाले पौधों की कतरन करना चाहिए । 

*एग पैरासिटोइड्स का विमोचन, ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम @ 50,000/एकड़  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*पीले तना बेधक के अंडे के द्रव्यमान को खत्म करने के लिए रोपाई से पहले सिरे वाले पौधों की कतरन करना चाहिए । 

*एग पैरासिटोइड्स का विमोचन, ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम @ 50,000/एकड़  

2

पत्ती लपेटक

 

इसकी इल्ली पत्तियों को अपने लारवा से लपेट लेती है और अंदर में पत्तियों के क्लोरोफिल को खुरच खुरच के खाती है जिससे पत्तियों में सफेद लाइन दिखाई देने लगती है  

*क्विनालफोस 25 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*क्विनालफोस 25 EC 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

3

गॉल मिज

(गंगई)

 

कीट ग्रसित तना चांदी के रंग की पोंगली में परिवर्तित हो जाता है और कीट ग्रसित पौधे में बालियां नहीं आती हैं।

कीट ग्रसित तना चांदी के रंग की पोंगली में परिवर्तित हो जाता है और कीट ग्रसित पौधे में बालियां नहीं आती हैं। नर्सरी से प्रारम्भ होकर कल्ले निकलने की अवस्था तक इल्ली हानि पहुंचाती है।

*फोरेट 10 G 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें

*कार्बोफुरॉन 3G 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें  

*राइस गॉल मिज को नियंत्रित करने के लिए लार्वा पैरासिटॉइड, प्लैटीगैस्टर ओरिजे का उपयोग किया जाता है 

*फोरेट 10 G 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें

*कार्बोफुरॉन 3G 14 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

*राइस गॉल मिज को नियंत्रित करने के लिए लार्वा पैरासिटॉइड, प्लैटीगैस्टर ओरिजे का उपयोग किया जाता है 

4

ब्राउन प्लांट हॉपर (भूरा  माहो)

 

यह पौधों की पत्तियों एवं तने का रस चूसकर फ्लोयम एवं जाइलम को बंद कर देता है 

जिससे पत्तियां व तने भूरे रंग के दिखाई देते हैं 

इसे हॉपर बर्न भी कहते हैं  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*इमिडाक्लोप्रिड 125 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें 

 

*प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग, मिरिड बग और वुल्फ स्पाइडर ब्राउन प्लांट हॉपर पर संभावित शिकारी हैं।

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*इमिडाक्लोप्रिड 50 मिलीलीटर एकड़ की दर से 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग, मिरिड बग और वुल्फ स्पाइडर ब्राउन प्लांट हॉपर पर संभावित शिकारी हैं।

5

हरी पत्ती हॉपर

(हरा माहो)

 

यह पौधों की पत्तियों एवं तने का रस चूसकर फ्लोयम एवं जाइलम को बंद कर देता है 

जिससे पत्तियां व तने भूरे रंग के दिखाई देते हैं  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 600 एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

6

कर्तनकीट

(सैनिक कीट/ आर्मी वार्म)

 

रात में पौधों को नुकसान पहुंचाता है  

पत्तियों और बालियों को काटकर झुंड में खाते हैं  

एक खेत नष्ट करके दूसरे खेत को नुकसान पहुंचाते हैं  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 2500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*डाईक्लोरोवास 80 EC 600 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 100 मिलीलीटर एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*डाईक्लोरोवास 80 EC 250 मिलीलीटर एकड़ की दर से 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

7

केश वार्म

 

पंक्तियों को काटकर नीचे पानी में गिरा देती है  

 पत्तियां पानी में तैरती रहती है

 पत्तियों की ऊपरी सतह  को खुरच खुरच के एपिडर्मिस को खाती है  

*क्विनालफोस 25 EC 800 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*धान की फसल के ऊपर से रस्सी का गुजरना । 

*क्विनालफोस 25 EC 320 मिलीलीटर एकड़ की दर से 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 600 मिलीलीटर एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*धान की फसल के ऊपर से रस्सी का गुजरना । 

8

गंधी बग

(धान ईयरहेड बग)

 

इसका शिशु व वयस्क दोनों कीट नुकसानदायक है 

यह दानों का रस चूसकर खोखला कर देती है  

इस कीट के शरीर से बदबू आता है  

*मेलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें  

*कार्बारिल 10 प्रतिशत पाउडर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें   

*मेलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर 12 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

*कार्बारिल 10 प्रतिशत पाउडर 8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

9

राइस हीसपा

 

पत्तियों को छेद कर देती है और इससे सफेद धारियां बन जाती है  

*क्विनालफोस 25 EC 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*क्विनालफोस 25 EC 200 मिलीलीटर एकड़ की दर से 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

10

टिड्डा

 

इसका शिशु कीट बहुत नुकसान पहुंचाता है

 मुलायम व छोटी-छोटी पत्तियों को खाता है  

 पत्तियों के किनारे कटी हुई पाई जाती है  

*मेलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें  

*मेलाथियान 50 EC 2500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*चावल के टिड्डे की आबादी को रोकने में मदद करने के लिए मेड़ों को ट्रिम करना चाहिये।

*मेलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर 12 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

*मेलाथियान 50 EC 1000 मिलीलीटर एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*चावल के टिड्डे की आबादी को रोकने में मदद करने के लिए मेड़ों को ट्रिम करना चाहिये।

11

जड़ की सुंडी 

 

 

यह सफेद रंग की होती है जो पौधों की जड़ों के पास नुकसान पहुंचाती है  

 पौधा पीला पड़ना शुरू हो जाता है  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 1500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*क्लोरपायरीफास 20 EC 600 मिलीलीटर एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*मोनोक्रोटोफॉस 36 EC 600 मिलीलीटर एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

12

धान की थ्रिप्स

 

शुष्क मौसम के दौरान चावल के थ्रिप्स अधिक गंभीर कीट होते हैं। यह धान के पौधे को बीज बोने की अवस्था के दौरान या जल्दी बुवाई के दो सप्ताह बाद संक्रमित करता है।

प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।

जैविक नियंत्रण एजेंटों को प्रोत्साहित करें: प्रीडेटरी थ्रिप्स, कोक्सीनेलिड बीटल, एंथोकोरिड बग, और स्टेफिलिनिड बीटल।

प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।

जैविक नियंत्रण एजेंटों को प्रोत्साहित करें: प्रीडेटरी थ्रिप्स, कोक्सीनेलिड बीटल, एंथोकोरिड बग, और स्टेफिलिनिड बीटल।

 

13

 

मिली बग

(राइपरसीया ओराइजी)

 

निम्फ्स और वयस्क तने के रस को चूसते है. संक्रमित पौधों की वृद्धि रुक  जाती है और वो झुलसे हुए प्रतीत होते है. अत्यधिक मात्रा  में संक्रमण होने पर बालीयों का निकलना बंद हो जाता है यहाँ तक की पौधे सुख जाते है. चींटिया मिली बग के फैलाव का मुख्य कारण होती है, ये इनका प्रसार असंक्रमित पौधों तक कर  देतीं है. 

इंडोसल्फान 35 EC 0.07 %  या मैलाथीआन 50 EC 0.01 % या फेनिटरोथिऔन 50 EC 0.1%  या डाइमीथोऐट 30 EC 0.03 %  का छिडकाव करे, छिडकाव की दिशा पौधों के जड़ो की तरफ होनी चाहिए।

*मिली बग की आबादी को कम करने के लिए खेत के मेढ़ों पर पोडलिंग और घास तकनीक का पालन किया जाता है।

इंडोसल्फान 35 EC 0.07 %  या मैलाथीआन 50 EC 0.01 % या फेनिटरोथिऔन 50 EC 0.1%  या डाइमीथोऐट 30 EC 0.03 %  का छिडकाव करे, छिडकाव की दिशा पौधों के जड़ो की तरफ होनी चाहिए।

*मिली बग की आबादी को कम करने के लिए खेत के मेढ़ों पर पोडलिंग और घास तकनीक का पालन किया जाता है।

 

रोग व उसके नियंत्रण के उपाय

क्रमांक

रोग का नाम

क्षतिग्रस्त पौधे का चित्र

जानकारी

नियंत्रण

(हेक्टेयर में)

नियंत्रण

(एकड़ में)

1

झुलसा/ बदरा

 रोग (ब्लास्ट)

 

पत्तियों. बाली के गर्दन, तने के नीचे, गठानों पर दिखाई देता है 

यह आँख के समान छोटे और धीरे-धीरे बढ़ते हैं 

धब्बों के बीच में भूरा रंग दिखाई देता है 

दाने ठीक से भरते नहीं है  

*रोग रोधी किस्म लगाएं जैसे रासी, तुलसी,महामाया, आदित्य 

*बावस्टीन 0.1% रसायन का छिड़काव करें  

*कार्बेंडाजिम 1 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें  

*रोग रोधी किस्म लगाएं जैसे रासी, तुलसी, महामाया, आदित्य 

*बावस्टीन 0.1% रसायन का छिड़काव करें  

*कार्बेंडाजिम 400 ग्राम 300 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें  

2

जीवाणु जनित झुलसा रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट) /जीवाणुज़ पत्ती अंगमारी

 

पति के किनारे ऊपर की ओर हल्का नीला हो जाता है फिर नीचे हरापन मटमैला होते हुए पीला हो जाता है  

पौधा कमजोर व कम से कम निकलते हैं  

*उन्नत किस्म लगाएं जैसे मासुरी, बमलेश्वरी, सावा 

*पानी बदले व पोटाश 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें 

*ब्लाइटाक्स 50 @ 500 ग्राम +  100 ग्राम *एग्रीमाईशीन को 100  लीटर जल में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन से चार बार छिड़काव करें  

*उन्नत किस्म लगाएं जैसे मासुरी, बमलेश्वरी, सावा 

*पानी बदले व पोटाश 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

*ब्लाइटाक्स 50 @ 200 ग्राम +  40 ग्राम *एग्रीमाईशीन को 40  लीटर जल में घोलकर प्रति एकड़ की दर से तीन से चार बार छिड़काव करें  

3

पर्णच्छद गलन (शीथ रॉट)

 

पौधों की बालियां ठीक से नहीं निकलती व नीचे हल्का गलन होता जाता है  

धान में उत्पादन कम बदरा ज्यादा हो जाता है  

*हेक्साकोनाजोल 2000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*कार्बेंडाजिम 1000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*कार्बेंडाजिम से 2 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें  

*हेक्साकोनाजोल 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें  

*कार्बेंडाजिम 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें 

*कार्बेंडाजिम से 2 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें  

4

भूरा धब्बा/ भूरी-चित्ती रोग (ब्राउन स्पॉट)

  

 

पत्तियों में भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं  इनका आकार गोल व अंडाकार होता है

 जो धब्बे होते हैं एक पीले रंग के  वृत्त से घिरे रहते हैं जो  बीमारी के पहचान के लिए अच्छा होता है  

*बीज उपचार मैनकोज़ेब से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें  

*मैनकोज़ेब 2500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें   

*बीज उपचार मैनकोज़ेब से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें  

*मैनकोज़ेब 1000 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें   

5

आभासी कांगियारी (फाल्स स्मट)

 

फफूंद से होता है

 इस रोग को लाइ फूटना कहते हैं

यह रोग दाने के निकलने से दिखाई देता है  

*मैनकोज़ेब से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें । 

•          दो से तीन साल के लिए फसल चक्र अपनाए।

*मैनकोज़ेब से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें । 

•          दो से तीन साल के लिए फसल चक्र अपनाए।

6

जीवाणुधारी रोग  (बैक्टीरियल स्ट्रिप रोग)

 

पतियों की सतह मैं पीली व मटमैली धारियां दिखती है

 इसकी पत्तियां नारंगी से ईट के रंग जैसी होकर सूखने लगती है  

*कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 500 ग्राम +  स्ट्रैप्टोसाइकिलिंन  15 ग्राम  प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में दो से तीन छिड़काव खड़ी फसल में करें  

*कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 200 ग्राम +  स्ट्रैप्टोसाइकिलिंन  6 ग्राम  प्रति एकड़ की दर से आवश्यक पानी में दो से तीन छिड़काव खड़ी फसल में करें  

7

खैरा रोग 

 

जस्ते की कमी से होता है

 नीचे की पत्ती पीला पढ़ना शुरू होती है फिर कत्थई रंग के धब्बे  उभरते हैं  

*जिंक सल्फेट 5 किलोग्राम +  बुझा हुआ चुना 2.5 किलोग्राम 1000 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें  

*जिंक सल्फेट 2 किलोग्राम +बुझा हुआ चुना 1 किलोग्राम 300 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें  

8

टुंगरू वायरस रोग

 

प्रभावित पौधे छोटे रह जाते है और कल्ले की संख्या में कमी हो जाती है।

पत्तियां छोटी हो जाती है। बालियों नहीं बनती है।

कल्ले बनने के पहले और कल्ले आने के मध्य : कार्बोफ्यूरान के दाने 1 कि.ग्रा. ( सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करें। या मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व /हे करें।

कल्ले बनने के पहले और कल्ले आने के मध्य : कार्बोफ्यूरान के दाने 1 कि.ग्रा. ( सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करें। या मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व /हे करें।

 

लेखक:- डॉ. प्रमोद कुमार राय1, डॉ. अंजनी कुमार2, डॉ. मो. मोनोबरुल्लाह3, डॉ. हादी हुसैन खान4, श्री विकास साहू5 एवं श्री पुष्पेन्द्र सिंग साहू6

1- निदेशक, भाकृअनुप-डीआरएमआर, भरतपुर - 321303 (राजस्थान), भारत
2- निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, पटना, जोन – IV - 801506 (बिहार), भारत
3- प्रधान वैज्ञानिक, फसल विज्ञान विभाग, आईसीएआर-आरसीईआर, पटना - 800014 (बिहार), भारत
4 - रिसर्च एसोसिएट, आईसीएआर-डीआरएमआर- अपार्ट, धुबरी - 783324 (असम), भारत
5- उप संचालक कृषि (डीडीए), जगदलपुर-बस्तर - 494001 (छत्तीसगढ), भारत।
6- कीट विज्ञान विभाग, शुआट्स, नैनी, प्रयागराज (इलाहाबाद) - 211007 (यू.पी.), भारत

English Summary: Paddy cultivation information and improved varieties of paddy Published on: 11 June 2021, 02:42 PM IST

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