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छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले किसान अब अमरूद और पपीते की जगह पर आने वाले दिनों में जल्द ही मुजफ्फरपुर में उगने वाली लीची की वैरायटी की खेती करेंगे। इसके लिए लीची के पौधे बस्तर में ही मिलेंगे वह भी काफी कम दामों पर उपलब्ध होंगे। पांच सालों के अंदर तैयार होने वाले इस लीची के पौधे की खेती को विकसित करने की योजना के तहत किसानों को लीची के पौधों को शहर में स्थित डोंगाघाट की नर्सरी से 40 रूपए प्रति नग के हिसाब से दिए जाएंगे। जानकारी के मुताबिक राज्य का उद्यानिकी विभाग बीज के उत्पादन और अन्य वैरायटी के पौधों को तैयार करने के बाद उन्हें कम दाम पर पौधे बेचकर बागवानी फसलों की तरफ किसानों को आकर्षित करने में लगा हुआ है। विभाग ने नर्सरी में लीची के पौधे लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।
कई तरह की फसलें मिल रही
यहां नर्सरी से किसानों को आम के बारहमासी और दशहरी, कटहल, सीताफल, अमरूद, चीकू, पापीता, नारियल, काजू और फूलों में गुलाब के साथ-साथ क्रोटना, ड्रेसिना और आरेलिया, फुटबाल लिली के साथ अन्य फूलों की प्रजातियां भी उपलब्ध करवाई जा रही है। उद्यानिकी विभाग ने कहा कि फिलहाल बस्तर में मौसम काफी बेहतर है और यह लीची उत्पादन के लिए उपयुक्त है। किसानों की आमदनी को बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। जैसे ही नर्सरी में पौधे तैयार करके किसानों को दिए जाएंगे।
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कम लागत पर सही पौधे उपलब्ध करवाना लक्ष्य
नर्सरी के प्रभारी ने कहा कि वह इस तरह की कोशिश कर रहे है कि किसानों को कम दाम पर अच्छे और सस्ते फल और फूल उपलब्ध हो, इसके लिए कई सालों से लगातार कोशिश की जा रही है, जो कि अब जाकर सफल हुई है। यहां के किसान पारंपरिक फसलों के साथ फल और फूलदार खेती करके आर्थिक रूप से सक्षम हो रहे है। उन्होंने बताया कि किसानों को दिए जाने वाले लीची के पौधे नर्सरी मे मुजफ्फरनगर से लाकर लगाए गए 5 पेड़ों से ही तैयार किए जाएंगे। इस तरह की सरकारी नर्सरी में हर साल किसान 5 से सात हजार रूपये कमा लेगा। लीची की खेती का बड़ा फायदा यहां के स्थानीय किसानों को मिलेगा। जो भी लीची बाहर से आती है वह 80-150 किलो के रेट पर बिकती है जो कि सबसे ज्यादा उपयोगी होती है। आने वाले समय में किसानों को इससे काफी बढ़िया आमदनी हो सकती है।
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