खेती मौजूदा दौर में एक ऐसा व्यवसाय बन गयी है जहां पर लागत बढ़ती जा रही है. नयी तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए महंगी मशीने, महंगी खाद और महंगे बीज ने खेती की लागत को बढ़ा दिया है. ज़्यादा से ज़्यादा केमिकल युक्त उर्वरक और कीटनाशक के इस्तेमाल से मिट्टी और भूजल, दोनों प्रदूषित होते हैं और कैन्सर जैसी ख़तरनाक बीमारियां फैलती हैं.
ऐसे दौर में शून्य बजट खेती किसानों के लिए वरदान की तरह है. इस विषय पर कृषिका किसान मार्ट ने उत्तर प्रदेश के आठ जिलों के गावों में अगस्त माह में 22 कृषक गोष्ठियां आयोजित करवायीं.
इन गोष्ठियों में कृषिका के कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को रसायन-मुक्त खेती, गोबर की खाद को प्राथमिकता और जीवामृत एवं बीजामृत के प्रयोग की जानकारी दी और साथ ही साथ नियमित मौसमी सम्बन्धी फसलों में आने वाली समस्याओं पर, मृदा परीक्षण व कैसे खेत से मिटटी का सही नमूना लिया जाता है, इस पर भी जानकारी दी.
जीरो बजट फार्मिंग में गौपालन का विशेष महत्व है, क्योंकि देशी प्रजाति के गौवंश (गाय) के गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत और बीजामृत बनाया जाता है. इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है.
जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है. जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने और उनको कीट व अन्य व्याधियों से सुरक्षित रखने में किया जाता है. किसानों को प्रेरित किया गया कि आज के इस दौर में धरती कि घटती हुई उर्वरता व उत्पादकता का एक बड़ा समाधान रसायनमुक्त खेती है.
देसी गाय के गोबर की खाद पर आधारित खेती की चर्चा के दौरान इसके प्रभाव को उत्पादकता और उपज को जानने के लिए किसानों की युवा पीढ़ी के बीच काफी उत्सुकता दिखी और उनके प्रश्नों के उत्तर देते हुए कृषिका के कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि शुरुआत में उपज कम हो सकती है, परन्तु उपज की कीमत अधिक होगी. वहीं पुरानी पीढ़ी के किसानों ने इसे अपनी पारंपरिक पद्धति से जोड़ा जो वे कई साल पहले कर रहे थे. कृषि आदानों का उपयोग करते समय पर्यावरण सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता और महत्व पर भी चर्चा की गई.
यह भी बताया की जहां जीरो बजट खेती से उत्पन्न हुए उत्पाद किसान सीधे उपभोक्ता को ऊँचे दामों में बेच सकता है वहीं उपभोक्ता को रसायनमुक्त उत्पाद मिलता है जो कि उसके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, साथ ही साथ हम अपने पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाते हैं. इस महा आयोजन में कृषिका के 20 से अधिक कृषि विशेषज्ञों ने भाग लेते हुए, चार दिनों में 22 अलग गोष्ठियां आयोजित कीं. और उनमें किसानों से ज्ञान साझा कर उन्हें प्रेरित किया.
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