देश भर से राजधानी दिल्ली में आए किसानों ने कर्जमुक्ति और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी मांगों को लेकर रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक “किसान मुक्ति मार्च” का आयोजन किया. किसान मुक्ति मार्च में बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश इत्यादि अन्य राज्यों से आए हजारों किसानों ने हिस्सा लिया. इन किसानों में हर प्रकार की खेती करने वाले किसान शामिल थे जिसमें महिला, पुरुष, युवा हर वर्ग के किसान शामिल थे. सरकार तक अपनी आवाज़ को मज़बूती से पहुंचाने के लिए किसान 28 नवंबर से ही दिल्ली के रामलीला मैदान में इक्ट्ठा होने लगे थे. 29 नवंबर को किसानों ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले हो रहे इस दो दिवसीय किसान मुक्ति मार्च की शुरुआत बिजवासन से दिल्ली के रामलीला मैदान तक 26 किलोमीटर की पदयात्रा करके की और इसमें मुख़्य रुप से स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव और जय किसान आंदोलन के अभिक साहा शामिल थे.
207 किसान संगठन ने लिया हिस्सा
किसान मुक्ति मार्च को समर्थन देने और इसे सफल बनाने के लिए देश के अलग- अलग राज्यों से आए लगभग 207 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया. इनमें मुख्यत: धान, बाजरा, मक्का इत्यादि की खेती करने वाले किसान शामिल थे. इसमें कई राज्यों से आईं ग्रामीण महिलाओं ने हिस्सा लिया और आदिवासी महिलाओं ने भी यहां अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद की.
नेताओं ने मोदी को बताया किसान विरोधी
किसान मुक्ति मार्च में शामिल किसान नेताओं ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया. किसान मुक्ति मार्च में शामिल योगेंद्र यादव, वी.एम. सिंह, हनन मुल्ला, अभिक साहा, राजू शेट्टी, डॉ. सुनिलम व अन्य नेताओं ने सरकार की नाकामी को लोगों के सामने रखा.
देश भर से आए हजारों किसानों को संबोधित करते हुए मंच से किसान नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि “यह तो स्पष्ट है कि देश की सबसे किसान विरोधी सरकार भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकना है. पर जो 21 पार्टियां हमारे बिल का समर्थन कर रही हैं, उन्हें भी डरा के रखना है”. आगे उन्होंने समर्थन देने वाली पार्टियों को डरा के क्यों रखना है, के बारे में बताया कि “अगर इन पार्टियों को यह अंदाजा हो गया कि किसान तो हर बार की तरह इस बार ऐवें ही आए हैं और नारा लगाकर-रैली करके जाति-धर्म की राजनीति में उलझ जाएंगे तो ध्यान रखिए आज किसानों के बिलों पर समर्थन करने वाली ये पार्टियां भी सत्ता में बैठने के बाद किसानों की मांगों को भूल जाएंगी”.
अख़िल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वि.एम.सिंह ने कहा कि “ दिल्ली में लाखों की संख्या में किसानों ने पहुंच कर यह दिखा दिया है की देश का किसान अब चुप बैठने वाले नहीं हैं वो अब अपने हक के लिए आवाज़ उठा रहे हैं और सरकार के उनके आगे झुकना ही पड़ेगा”.
जय किसान आंदोलन के नेता अभिक साहा ने कहा कि “अगर जीएसटी को लेकर सरकार आधी रात में संसद का सत्र बुला सकती है तो देश के अन्नदाता के लिए दो दिन का विशेष सत्र क्यों नहीं बुला सकती”.
छह बार के सांसद रह चुके व किसान नेता हनन मुल्ला ने कहा कि “ मोदी सरकार एक किसान विरोधी सरकार है. किसानों की आय दोगुनी करने के नाम पर सिर्फ जुमलेबाजी की जा रही है. आज इस रैली के माध्यम से मोदी को किसानों की ताकत का अंदाज़ा होगा और आने वाले चुनाव में किसानों का रोष मोदी को झेलना पड़ेगा.
सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि “ देश के किसान काफी गुस्से मे हैं और वो अब चुप नहीं रहेंगे और अपने हक के लिए वो सड़क पर उतर रहे हैं और मोदी सरकार को इसका खामियज़ा आने वाले चुनावों में झेलना पड़ेगा”.
आंदोलन को समर्थन देने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत उन सभी 21 दलों के नेता पहुंचे, जिन्होंने किसानों के दोनों बिलों का समर्थन किया है.
क्या कहते हैं किसान :
बरेली से आए कमल कहते हैं कि 'सरकारें बदलती रहीं लेकिन हमारा नसीब नहीं बदला। हमारे पिताजी के वक़्त में भी हमें फसल का दाम नहीं मिलता था और आज भी वही ढाक के तीन पात हैं. बैंक का कर्ज खत्म ही नहीं हो पाता है. हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी किसान बनें और उनकी भी वही दुर्दशा हो. हम यहाँ इस उम्मीद में आये हैं कि शायद मौजूदा सरकार हमारी बात सुने और हमारी बिगड़ती हालत से हमें बचा सके.
लिंगन तमिलनाडु के चिंगलपट्टू गांव से यहाँ तक अपनी आवाज सरकार के कानों तक पहुँचाने आये हैं. सिर्फ एक लंगोट पहने लिंगन ने अपने शरीर पर हड्डियों और खोपड़ी के कंकाल की माला पहन रखी है. वह टूटी - फूटी हिंदी में कहते हैं- ' सरकार को आये हुए चार साल बीत गए हैं और अगला चुनाव आने वाला है लेकिन उसने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। सूखा से निपटने के लिए सरकार ने तमाम वादे किये लेकिन फसल बीमा के नाम पर एक फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। सिंचाई के लिए पानी नहीं है और बैंक का कर्ज बढ़ता ही जा रहा है ऊपर से फसल को कौड़ियों के दाम बेचना पड़ता है. अगर सरकार हमारी नहीं सुनेगी तो हम कहाँ जायेंगे ?
प्रमुख मांगें
1. किसानों को सभी फसलों का डेढ़ गुना मूल्य देने की व्यवस्था की जाए.
2. किसानों पर बकाया सभी तरह के कर्ज माफ किए जाएं.
3. प्रत्येक किसान को प्रति महीने पांच हजार रुपए की पेंशन दी जाए.
4. सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर अन्नदाता की समस्याएं सुलझाए.
जिम्मी, अनिकेत सिन्हां, रोहित, रोहिताश
कृषि जागरण
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