समय के साथ फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले पौधे, रोग और कीट प्रबल होने के साथ ही समान्य दवाओं के आदि हो चुके है. सालों पहले जिन दवाओं का इस्तेमाल करके कीटों की रोकथाम किया जाता था अब वो इतने प्रबल हो चुके है कि उनसे फसलों में इनकी रोकथाम नहीं की जा सकती है. 25 वर्ष पहले गेहूं में उगने वाले घास को खत्म करने के लिए आइसोप्रोट्यूट दवा का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह कणकी घास कई अन्य दवाओं से भी लडऩा सीख गयी है. चार-चार बार स्प्रे करने के बाद भी इस घास पर कोई असर नहीं पड़ता है. मौजूदा समय में कणकी घास के वजह से भारत सहित 25 देशों में किसानों को काफी नुकसान हो रहा है.
गौरतलब है कि यह घास फसल की 80 फीसद पैदावार को कम कर देती है, जिससे किसानों को सालभर में तकरीबन 4000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. इसको लेकर हाल ही में एशियन पैसिफिक वीड साइंस सोसाइटी ने मलेशिया में 27वीं एपीडब्ल्यूएसएस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें विश्वभर के 25 देशों के 330 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. इसी कॉन्फ्रेंस में प्लेनरी स्पीकर के रूप में हिसार से एचएयू के एग्रोनॉमी के विभागाध्यक्ष डा. समुंदर सिंह ने इस घास की रोकथाम कैसे करे, उन तरीकों को बताया. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, यह जानकारी उन्होने स्वयं भारत लौटने के बाद दी.
महत्वपूर्ण विंदु
1980 से 90 तक आइसोप्रोट्यूल दवा चली, लेकिन 10 साल के बाद इस दवा का पौधे पर असर कम हो गया. बाद में डाइक्लोकॉक्स नामक दवा आयी . मगर दो साल बाद यह भी असर छोड़ गयी. फिर 1998 में टोपिन, प्यूमा पॉवर और लीडर दवा आयी जो 2010 से पहले-पहले बेअसर हो चुकी थीं. इसके बाद पिनोक्सेडेन, अथलांटिस जैसी दवाओं को खेतों में किसानों ने स्प्रे किया, अब ये भी बेअसर ही हैं.
नुकसान से बचने के लिए क्या करे किसान
1.किसानों को बिजाई के तुरंत बाद दवाई का स्प्रे करना चाहिए. इससे 70 से 80 फीसद घास वैसे ही कम हो जाएगी.
2- किसानों को दवाओं का ग्रुप बदल-बदल कर छिड़काव करना चाहिए.
3- सरकार और आइसीएआर ने कुछ दवाओं की सिफारिश कर रखी है. उनका ही प्रयोग करें
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