पहले लॉकडाउन, उसके बाद चक्रवाती तूफान और अब श्रमिकों के अभाव को लेकर जूट उद्योग के समक्ष एक नया संकट खड़ा हो गया है. 25 मार्च से लॉकडाउन के कारण जूट मिलों में उत्पादन बंद हो गया था. कारखाना में काम बंद होते ही बिहार, यूपी, ओड़िशा और झारखंड आदि के मजदूर अपने गांव लौट गए. अब 1 जून से पश्चिम बंगाल की सभी जूट मिलों में 100 प्रतिशत श्रमिकों के साथ काम शुरू करने की सरकार से अनुमति मिलने के बावजूद कारखानों में सुचारू रूप से उत्पादन करना संभव नहीं हो पा रहा है.
इसलिए कि अधिकांश मजदूर अपने गांव चले गए हैं और उनके जल्द लौटने की कोई संभावना नहीं है. श्रमिकों के अभाव में जूट मिलों में स्वाभाविक रूप से उत्पादन करना संभव नहीं हो पा रहा है. कारखानों को पूरी क्षमता के साथ चलाने के लिए पर्याप्त मजदूरों की जरूरत है. जूट मिलों में अधिकांश प्रवासी मजदूर ही काम करते हैं. कारखाना बंद होने पर वे अपने गांव लौट जाते हैं. कुछ श्रमिक जो स्थाई रूप से यहां रहते हैं वे काम पर जाने लगे हैं. लेकिन न्यूनतम मजदूरों को लेकर कारखाना चलाना जूट मिल मालिकों के लिए अब दुभर हो गया है.
केंद्र सरकार ने दी ये सलाह (Central government advised)
जूट मिल मालिकों के संगठन इंडियन जूट मिल एसोसिएशन (आईजेएमए) के मुताबिक लॉकडाउन के कारण कुछ दिनों तक कारखाना बंद होने के कारण उत्पादन ठप होने से जूट उद्योग को पहले ही भारी नुकसान हो चुका है. इस दौरान 6.5 लाख बेल जूट के थैला की मांग प्लास्टिक लॉबी ने पूरी कर दी. जूट उद्योग को संकट से उबारने के लिए केंद्र सरकार ने 15 जून से प्रतिदिन 10 हजार बेल जूट का थैला तैयार करने की सलाह दी है. लेकिन काम करने के लिए श्रमिक ही नहीं हैं तो जूट मिलों में स्वाभाविक उत्पादन शुरू करना भी मुश्किल हो रहा है. 15 जून से भी पर्याप्त श्रमिकों के पहुंचने की कोई संभावना नहीं है.
बताया जाता है कि आईजेएमए की ओर से जूट मिलों में उत्पादन शुरू करने को लेकर आ रही समस्या की ओर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया है. आईजेएमए के एक प्रतिनिध मंडल ने राज्य के श्रममंत्री मलय घटक से मुलाकात कर जूट मिल में उत्पादन शुरू करने के लिए कुछ रियातें देने की मांग की है. प्रतिनिधि मंडल ने जूट मिलों में पूरी क्षमता से काम शुरू करने के लिए सरकार से जो मांग की है उसमें छह माह तक ठेके पर अस्थाई श्रमिकों को लगाने, रात के शिफ्ट में महिला श्रमिकों को काम करने की अनुमति देने और श्रमिकों के लगातार आठ घंटे तक काम करने आदि शामिल है.
पिछले माह के अंत में राज्य में आए चक्रवाती तूफान ‘अंफान’ ने जूट मिलों के लिए कच्चा माल पटसन को तहस नहस कर दिया. खेतों में अधिकांश पटसन की फसल नष्ट हो गई. आगामी दिनों जूट उत्पादन पर इसका भी प्रभाव पड़ेगा. मौजूदा परिस्थिति में अगर प्रवासी मजदूर अपने गांव से लौटते भी हैं तो उन्हें दो सप्ताह तक क्वारेनटाइन में रखने को लेकर भी एक गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी. दो सप्ताह तक क्वारेनटाइन में रहने के डर से जूट श्रमिक अपने गांव से अभी लौटना भी नहीं चाहेंगे. कुल मिलाकर कच्चा माल की कमी से लेकर श्रमिकों के अभाव आदि कई समस्याओं से कुछ दिनों तक जूट उद्योग को जूझना पड़ेगा. केंद्र व राज्य सरकार को जूट उद्योग पर मंडराने वाले इस संकट का समाधान करने के लिए कारगर उपाय करने होंगे.
उल्लेखनीय है कि जर्जर अवस्था में पहुंच चुके बंगाल का जूट उद्योग आज भी सबसे अधिक रोजगार देने वाला उद्यम है. पश्चिम बंगाल के करीब 60 जूट मिलों में लगभग 4 लाख श्रमिक कार्यत हैं जिससे उनके 10 लाख से अधिक पारिवारिक सदस्यों का भरण पोषण होता है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि लॉकडाउन में अपने गांव लौट गए स्थाई जूट श्रमिकों को लौटाने की जिम्मेदारी अब कौन लेगा ?
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