किसान भाइयों गन्ना जैसी नकदी फसल में सहफसली से आप अच्छा लाभ उठा सकते हैं. गन्ना की फसल के बीच सहफसली से अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है. सहफसली व अन्त:फसली के लिए गन्ना एक उपयुक्त फसल है. जिसके अन्तर्गत कई सरसों व मटर की फसल से अच्छे परिणाम देखने को मिले. देश की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रति किसान जोत अब धीरे-धीरे घटती जा रही है.
इस समय हमारे देश में लगभग 58.0 प्रतिशत सीमान्त, 18.0 प्रतिशत लघु व 24.0 प्रतिशत बड़े किसान है. इसलिए बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, शाक-सब्जी, चीनी आदि के उत्पादन में भी वृद्धि करना नितान्त आवश्यक है. इन फसलों में उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि-क्षेत्र में विस्तार करना अब सम्भव नहीं है क्योंकि खेती योग्य भूमि सीमित है.
केवल उत्पादकता बढ़ाकर ही इस समस्या का समाधान किया जा सकता है. फसलों की नवीन कृषि प्रौद्योगिकी के साथ सघन खेती के रुप में अन्तः खेती करना एक कारगर उपाय है. चूँकि गन्ने की फसल खेत में एक वर्ष या इससे भी अधिक दिनों तक रहती है अतः गन्ने की पंक्तियों के मध्य खाली भूमि में लाभदायी फसलों को उगाकर प्रति हैक्टेयर उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है.
गन्ने की प्रारम्भिक वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है अतः गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य 70-90 से.मी दूरी के कारण खाली जगहों में विभिन्न प्रकार के खर-पतवार उगते है जो पोषक-तत्वों के साथ नमी का भी उपयोग करके कृषि-लागत बढ़ाते हैं.
इस प्रकार गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य लाभदायी अन्तः फसलो को उगाकर अतिरिक्त उत्पादन लिया जा सकता है और गन्ने की उपज पर भी इसका कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता है. गन्ने के साथ अन्तः खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए संस्थान-ग्राम सम्पर्क कार्यक्रम के अन्तर्गत चयनित ग्रामों के किसानो से विचार-विमर्श किया गया.
किसानों से बातचीत के दौरान यह ज्ञात हुआ कि वे अभी तक गन्ने के साथ किसी भी फसल की अन्तः खेती नहीं करते. उनका मानना है कि गन्ने के साथ अन्य फसलों की अन्तः खेती करने से दोनो ही फसलों की उपज कम मिलेगी.
इसका कारण इन क्षेत्रों में बसन्तकालीन या रबी फसलों की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई मार्च से अप्रैल तक करते हैं. अतः गन्ने में अन्तःक्रियाएं करने के लिए समय ही नहीं मिलता है.
जब किसानों को शरदकाल में गन्ना बुवाई के लिए कहा गया तो वे आश्चर्य में पड़ गये क्योंकि इन दिनो में गन्ना बुवाई के लिए पहले कभी नहीं सुना. वैज्ञानिकों ने किसानो को बताया कि शरदकाल में गन्ने के साथ रबी की विभिन्न फसलों की अन्तः फसली के रुप में बोकर बसन्तकालीन गन्ने की अपेक्षा उपज व शर्करा-पर्ता में क्रमशः 20-25 प्रतिशत तथा 0.5 यूनिट की बढ़ोत्तरी होती है और अन्तः फसलो की उपज में कोई कमी नहीं आती है.
इस प्रकार किसानों में गन्ने के साथ अन्तः खेती के प्रति जागरुकता आई. गन्ने में सरसों की अन्तः फसल सरसों की अन्तः फसल कटाई के बाद गन्ना किसानो में आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए उन्हें संस्थान में किये जा रहे गन्ने के साथ अन्तः खेती के परीक्षणों व प्रदर्शनों को दिखाया गया.
पिछले वर्ष बोए गये गन्ने के मध्य उगाई गई अन्तः फसलो की कटाई के बाद गन्ने की फसल को देखकर किसान अत्यन्त प्रोत्साहित हुए. गन्ने के साथ अन्तः खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए “देखकर सीखो” व “करके सीखो” के प्रसार सिद्धान्त पर 6 किसानों को चयनित करके उनके खेतों पर प्रदर्शन आयोजित किये गये.
चूँकि इस क्षेत्रा में लाही तथा मटर की खेती अधिक क्षेत्रा में की जाती है अतः गन्ने के साथ लाही व मटर को अन्तः खेती के लिए चुना गया. इन प्रदर्शनों में गन्ने की को0पन्त 90223 तथा कोशा0 8432 तथा लाही की बरुणा व मटर की आरकेल प्रजातियों को चुना गया.
गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य लाही की एक तथा मटर की दो पंक्तियों में बुवाई की गई. गन्ने के साथ लाही व मटर की अन्तः खेती की बुवाई से लेकर कटाई तक विभिन्न सस्यक्रियायें किसानो की मौजूदगी में किये गये.
प्रदर्शनों से प्राप्त केवल गन्ना बोने से 71.0 टन प्रति हेक्टेयर उपज हुई. गन्ने के मध्य लाही व मटर से क्रमशः 0.16 टन व 0.22 टन प्रति हेक्टेयर तथा गन्ने की उपज 67.0 टन व 68.0 टन प्रति हैक्टेयर उपज मिली.
इस प्रकार अन्तः फसलों की उपज को गन्ने के साथ समतुल्य उपज निकालने पर गन्ना और लाही की 84.0 टन तथा गन्ना व मटर की 91.0 टन प्रति हेक्टेयर मिली जो केवल गन्ना उगाने की अपेक्षा 18 व 28 प्रतिशत अधिक है. इसी प्रकार गन्ना$लाही से 19.0 प्रतिशत तथा गन्ना तथा मटर 42.0 प्रतिशत अधिक शुद्ध लाभ हुआ.
गन्ने के साथ लाही व मटर की अन्तः खेती के प्रति क्षेत्रीय किसान अत्यन्त प्रभावित हुए. किसानों का कहना था कि केवल गन्ना बोने से वर्ष में एक बार पैसा मिलता है जबकि गन्ने के साथ अन्तः खेती करने से दो बार मिलता है.
इस प्रकार अन्तः फसलो से प्राप्त पैसों का सदुपयोग गन्ने या अन्य फसलो की कृषि-लागतों में करके अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है. इस प्रकार क्षेत्रीय प्रमुख फसलों को गन्ने के साथ अन्तः खेती करने पर न केवल प्रति इकाई भूमि की उत्पादकता बढ़ती है अपितु उपलब्ध भूमि में ही अन्य आवश्यक फसलों की भी उपज मिल जाती है. इन प्रदर्शनों के परिणामों से क्षेत्रीय किसानों में जागरुकता बढ़ी है और इसकी खेती के लिए स्वयं ही नहीं अपितु अन्य किसानों को उत्प्रेरित करने में भी सहायक सिद्ध हो रहे हैं.
अधिक जानकारी के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान केंद्र, लखनऊ से संपर्क कर सकते हैं.
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