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किसानों को उनकी फसलों को सही दाम दिलवाने के लिए केंद्र के बाद अब मध्यप्रदेश सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर मॉडल कानून को हरी झंडी दे दी है. खास बात यह है कि इसमें केवल खेती ही नहीं बल्कि सब्जी और औषधीय फसलों को भी कवर किया गया है. दरअसल राज्य सरकार ने औषधीय फसल और सब्जियों की प्रसंस्करण इकाई को लगाने के लिए आईटीसी का सहारा लेगी. इस बारे में राज्य के मुख्यमंत्री और आईटीसी के चेयरमैन के बीच बातचीत की गई हैं और तय किया गया है कि औषधीय फसलों की खेती करने वाले किसानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर बाई बैक व्यवस्था के तहत खरीदी कर इन उत्पादों का प्रसंस्करण किया जाता हैं. साथ ही नूडल्स में उपयोग होने वाली सब्जी जैसे कि गाजर, मटर, बींस, आलू को प्रोत्साहन दे दिया जाएगा.
सेंटसमेंट ऑथिरिटी का गठन
नए कानून के तहत ठेके पर खेती और अन्य सेवाओं को राज्यों को एपीएमसी यानी मंडी कानून के दायरे से बाहर रखने पर सहमति बनी हुई है. इससे खरीददारों को लेनदेन की लागत मे 10 फीसदी तक बचत होगी. साथ ही किसानों के विवादों के समाधान के लिए एक सेटलमेंट अथॉरिटी के गठन का भी प्रावधान है.
लिए गए यह निर्णय
मध्य प्रदेश में तीन लाख 70 हजार बिगड़े हुए वनों में पंचायत एवं वन समितियों से अच्छे किस्म के बांस के पौधों का रोपण का कार्य किया जाएगा. राज्य के छिदवाड़ा जिले के तामिया में कैंसर हेतु वनौषधियों की पहचान कर उनके दवाओं में उपयोग के लिए प्रसंस्करण इकाई लगाए जाएं. प्रदेश में औषधीय फसलों के लिए 50 हजार मीट्रिक टन क्षमता का डिहाइड्रेशन प्लांट के संबंध में चर्चा हुई.
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खेती में हो रहा सुधार
आज गुजरात में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग हो रही है. महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुबंध पर खेती करने का कार्य किया जा रहा हैं और इसकी खेती के काफी बेहतर परिणाम सामने आ रहे है. इस तरह से न केवल किसानों को फायदा हो रहा है बल्कि खेती की दिशा और दशा दोनों में सुधार हो रहा है. फसल की क्वालिटी और मात्रा में भी काफी ज्यादा सुधार हो रहा है.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग की चुनौतियां
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग की कई तरह की चुनौतियां भी है. जैसे कि बड़े खरीदादारों के एकाधिकार को बढ़ावा देना, कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर, समान्य किसानों को इसको समझना मुश्किल, साथ ही छोटे किसानों को इसका कम फायदा होगा.
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