कृषि अर्थशास्त्रियों के आगामी 32वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICAE- 32nd International Conference of Agricultural Economists) ने आज राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान (ICAR-NIAP) में आयोजित एक सफल एक सफल कार्यक्रम के साथ की है. इस कार्यक्रम ने 2-7 अगस्त, 2024 को नई दिल्ली में होने वाले मुख्य सम्मेलन के लिए मंच तैयार किया.
1929 से अंतर्राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्रियों के संघ (IAAE) के प्रमुख कार्यक्रम के रूप में, ICAE लंबे समय से कृषि अर्थशास्त्र को आगे बढ़ाने और वैश्विक कृषि और खाद्य प्रणालियों की चुनौतियों का समाधान करने के लिए आधारशिला रहा है. यह सम्मेलन 1958 में मैसूर में आयोजित 10वें ICAE के 65 साल बाद भारत में आयोजित किया जा रहा है.
सम्मेलन के बारे में बात करते हुए नीति आयोग के सदस्य और ICAE 2024 के लिए स्थानीय आयोजन समिति (LOC) के अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद ने कहा, “2024 में सम्मेलन के प्रतिनिधियों का स्वागत करने वाला वर्तमान भारत 1958 के भारत से अलग है. इस बार, वैश्विक प्रतिनिधिमंडल एक सफल केस स्टडी के रूप में भारत के कृषि परिवर्तन के साथ वापस जाएगा. यह सम्मेलन हमारे युवा शोधकर्ताओं के लिए कार्यक्रम में भाग लेने वाले वैश्विक विशेषज्ञों के साथ सीखने और नेटवर्क बनाने और पूरे समुदाय के लिए नए विचारों, प्रौद्योगिकियों और उपकरणों का पता लगाने और उनका आदान-प्रदान करने का एक शानदार अवसर होगा.”
ICAE 2024 की थीम, "टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणालियों के लिए परिवर्तन" के बारे में प्रस्तावना के दौरान बताया गया, जिसमें जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण, जल की कमी, जैव विविधता की हानि और बढ़ती उत्पादन लागत जैसी वैश्विक चुनौतियों के सामने टिकाऊ कृषि प्रथाओं की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया. इस पूर्वावलोकन में प्रमुख शोध क्षेत्रों और चर्चाओं पर प्रकाश डाला गया जो मुख्य सम्मेलन में केंद्रीय होंगे, जिसमें कृषि प्रणालियों, प्राकृतिक खेती, डिजिटलीकरण, ड्रोन और पोषण सुरक्षा में नवाचार शामिल हैं.
कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान संघ (AERA-India) के अध्यक्ष डॉ. पी.के. जोशी ने 1929 में प्रोफेसर लियोनार्ड के. एल्महर्स्ट द्वारा ICAE सम्मेलन की शुरुआत के बारे में बताया. उन्होंने बताया, “ICAE की शुरुआत 1929 में 11 देशों के प्रतिभागियों के सम्मेलन के साथ में हुई थी. तब से यह दुनिया भर के कृषि अर्थशास्त्रियों की एक प्रमुख त्रैवार्षिक (triennial) सभा बन गई है. भारत कृषि-खाद्य प्रणाली परिवर्तन में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार है, जिससे सभी के लिए स्वस्थ, सुरक्षित और किफायती भोजन सुनिश्चित हो सके."
इस कर्टेन रेजर का आयोजन आईसीएआर-एनआईएपी, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई), कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान संघ (एईआरए - इंडिया), इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (आईजीआईडीआर), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) और भारतीय कृषि अर्थशास्त्र सोसायटी (आईएसएई) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है.
आईसीएआर के महानिदेशक एवं कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा, "सम्मेलन का विषय आईसीएआर के बड़े लक्ष्यों के साथ संरेखित (aligns) है जहां सस्टेनेबिलिटी हमारे शोध में एक प्रमुख पैरामीटर है. हमने बायोफोर्टिफाइड और जलवायु लचीली किस्मों (climate resilient varieties) के विकास पर काम किया है और यह सम्मेलन हमारे शोधकर्ताओं के लिए वैश्विक समुदाय के साथ जुड़ने और विचारों का आदान-प्रदान करने का एक शानदार मंच है. हम नई साझेदारियों और कार्यक्रमों की शुरुआत करने के लिए तत्पर हैं, जो अंततः एक "स्थायी और सशक्त विकसित भारत@2047" की दिशा में एक मजबूत रोडमैप बनाने में योगदान दे सकते हैं.”
आईसीएआर-एनआईएपी के निदेशक डॉ. पी.एस. बिरथल ने कहा, “सम्मलेन से पूर्व आयोजित यह कार्यक्रम ICAE 2024 की गहराई और व्यापकता का एक आदर्श परिचय था, जो आगामी सम्मेलन के व्यापक दायरे और महत्व को दर्शाता है.” इस दौरान उन्होंने “फिल्ड में प्रौद्योगिकी लाने के लिए सक्षम नीतियों, प्रोत्साहनों को पुनर्निर्धारित करने और नीति निर्माण में समझौतों को नेविगेट करने' की प्रासंगिकता पर बल दिया.
आईएफपीआरआई के दक्षिण एशिया के निदेशक डॉ. शाहिदुर राशिद ने कहा, “यह कार्यक्रम भू-राजनीतिक सीमाओं से परे वैश्विक चुनौतियों के बीच टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणालियों को आगे बढ़ाने में आईसीएई 2024 की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है और इस सम्मेलन के माध्यम से, हम सहकारी समाधानों पर विचार कर सकते हैं और टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन का समर्थन करने के लिए विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं.”
आईसीएई 2024 की आयोजन सचिव और आईसीएआर की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. स्मिता सिरोही ने कहा कि, "सम्मेलन में भाग लेने के लिए 75 देशों से 925 से अधिक प्रतिनिधियों ने पंजीकरण कराया है, जिनमें से 45% महिलाएं हैं. आयोजकों ने देश के कई युवा शोधकर्ताओं की उपस्थिति का समर्थन किया है. भारत के किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और अन्य कृषि व्यवसायों को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनियां भी होंगी."
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