भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा ने बुधवार को बासमती धान की दो नई किस्में बाजार में उतारी हैं, जिसका लांच पूसा संस्थान के डॉ बीपी पाल ओडोटोरियम से किया गया. इस का विमोचन IARI निदेशक डॉ ऐके सिंह व् कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह द्वारा किया गया. आपको बता दें धान की ये किस्म किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ पानी की 35% तक बचत करेंगी. इसके आलावा इस किस्म में खरपतवार नाशी गुण भी शामिल किया गया है. यह देश की पहली गैर-जीएम हर्बिसाइड टॉलरेंट बासमती किस्में हैं.
क्या है इस किस्म में खास?
आपकों बता दें भारत हर साल बासमती चावल का रिकॉर्ड तोड़ निर्यात करता है, इस वर्ष भी भारत ने लगभग 50 हजार करोड़ रुपये तक का बासमती चावल निर्यात किया है. लेकिन इस उपलब्धि के चलते पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश जैसे धान बेल्ट क्षेत्रों में भू-जल संकट मडराने लगा है. इस समस्या के समाधान हेतु वैज्ञानिकों ने दो नई किस्में विकसित की हैं, जिसमे पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985. इस किस्मों की सीधी बिजाई (DSR-Direct Seeding of Rice) करने से पानी की खपत 35% तक कम होगी. इसके अलावा, इन किस्मों से किसानों की कमाई प्रति एकड़ 4000 रुपये तक बढ़ जाएगी. क्योकि इस किस्मों में खरपतवार नहीं पनपते. इसके आलावा इस किस्म की उपज 15 दिन पहले ही तैयार हो जाती है. पूसा ने इन दोनों किस्मों की बिक्री के लिए एक कंपनी को लाइसेंस भी दिया है, जिसे 'रोबिनॉवीड' नामक ब्रांड से बाज़ार में उतारा जायेगा.
600 किसानों को बांटी गई बीज किट
आपको बता दें पूसा से सीधे बीज करने के लिए पंजीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे जिसमे करीब 600 किसानों ने पंजीकरण करवाया था, इस किसानों को आठ-आठ किलो की बीज किट 1000 रुपये में वितरित की गई. इस किस्म के जनक डॉ ऐके सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि इस किस्म का आठ किलो बीज एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है. फ़िलहाल इस किस्म को पंजीकृत किसानों को दिया गया है, अगले साल तक इस किस्म का अधिक बीज तैयार हो जाएगा और इसे पूरे बासमती बेल्ट में फैलाने में मदद मिलेगी. इन किस्मों की खेती से न केवल पानी की खपत कम होगी, बल्कि धान की खेती के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी कम होंगे, जिससे किसानों और पर्यावरण दोनों को लाभ मिलेगा.
कम पानी वाले क्षेत्रों में वरदान है 1979 बासमती किस्म
इस दौरान IRAI निदेशक डॉ. ऐके सिंह ने बताया कि सामान्य तरीके से धान की खेती करने पर प्रति एक हेक्टेयर 150 लाख लीटर पानी की लगता है, जिसमें से करीब 15 लाख लीटर पानी की खपत केवल रोपाई के दौरान ही हो जाती है. लेकिन, पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 की खेती करने पर 35% तक पानी की बचत होगी, जिससे एक हेक्टेयर में लगभग 52 लाख से अधिक लीटर पानी की बचत हो जाएगी.
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हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बेहतरीन
उन्होंने बताया कि इन दोनों किस्मों को हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से वरदान साबित होने के उद्देश्य से विकसित किया गया है. इन किस्मों को विशेषतः सीधी बिजाई (DSR-Direct Seeding of Rice) के लिए तैयार किया गया है, जिससे पानी की खपत में महत्वपूर्ण कमी आएगी और पानी की किल्लत से प्रभावित क्षेत्रों को राहत मिलेगी.
सीधी बिजाई: कम पानी में खेती का समाधान
डॉ ऐके सिंह ने बताया कि अगर धान की खेती कम पानी में करनी है तो उसका विकल्प सीधी बिजाई यानी डीएसआर विधि से धान की बुवाई है. इस विधि से धान की खेती करने पर पानी की खपत बहुत 35 फीसदी तक कम होगी. हालांकि, इन फायदों के बावजूद अधिकांश किसान पारंपरिक विधि से ही खेती करते हैं, जिसमें पानी की बहुत अधिक जरूरत होती है. मजदूरों और खरपतवार की समस्या भी दूर पूसा के डायरेक्टर डॉ. अशोक सिंह कहते हैं कि पारंपरिक विधि से खेती करने पर खेत में पानी रहता है, जिससे खरपतवार की समस्या नहीं आती क्योंकि पानी हर्बिसाइड का काम करता है. जबकि सीधी बिजाई में खरपतवारों की समस्या आती है क्योंकि खेत में पानी नहीं रहता. ऐसे में खरपतवारों को निकालने के लिए किसानों को मजदूरों पर अच्छी-खासी रकम खर्च करनी पड़ती है. इसके अलावा, खरपतवारों से पोषक तत्वों का भी नुकसान होता है.
पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 बनेगी किसानों के लिए वरदान
कृषि वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान इन दो किस्मों के रूप में खोज लिया है. पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985, ये दोनों किस्में हर्बिसाइड टॉलरेंट (खरपतवार नाशक-सहिष्णु) हैं. यह देश की पहली गैर-जीएम हर्बिसाइड टॉलरेंट बासमती चावल की किस्में हैं. धान की इस किस्म के साथ खरपतवार नाशी दवा का उपयोग किया जाता है, जिसमे धान को कोई नुक्सान नहीं होता लेकिन खरपतवार पूरी तरह नष्ट हो जाता है. धान की सीधी बिजाई के लिए बासमती जीआई टैग क्षेत्र के किसान इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
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