सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में पेड़, पौधों और फसलों को मौसम के मुताबिक पानी की ज़रुरत होती है. किस मौसम में कितनी मात्रा में पौधों और फसलों को पानी की जरुरत होती है, इसकी जानकारी अभी तक सही तरह से पता लगाने के लिए किसानों के पास कोई तकनीक नहीं है. इसलिए किसानों को अनुमान के आधार पर सिंचाई करना पड़ती हैं. गौरतलब हैं कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी दिवाकर नायडू अब एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रहे हैं जिससे सर्दी, गर्मी और बारिश के मौसम में मैदानी, पठारी और पहाड़ी क्षेत्र में कितनी मात्रा में पानी का वाष्पीकरण हुआ, वाष्पीकरण के बाद फसल और पौधों में पानी की मात्रा में कितनी कमी हुई, कितने पानी की ज़रुरत है यह सब आसानी पता चल सकेगा.
दरअसल 'गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय' के कंप्यूटर साइंस एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. बबीता मांझी के निर्देशन में शोधार्थी दिवाकर नायडू शोध कर रहे हैं. इनके शोध का विषय कृषि मौसम संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण में मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग है. शोधार्थी नायडू छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाली तीन जलवायु के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं. इस मॉडल को तैयार करने के लिए मैदानी क्षेत्र रायपुर, पहाड़ी क्षेत्र अंबिकापुर और पठारी क्षेत्र जगदलपुर के पिछले 20 सालों के मौसम के आंकड़े उन्होंने इकट्ठा किये हैं. बता दें कि इन तीन क्षेत्रों के प्रतिदिन के तापमान, वायु गति, आर्द्रता और सूर्य की रोशनी की गति को सॉफ्टवेयर में अपलोड किया गया है. जिस वजह से प्रतिदिन तीनों क्षेत्र में होने वाले वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन का पता आसानी से चलाया जा सकता है. इससे स्पष्ट हो जाता है कि कितनी मात्रा में वाष्पीकरण हुआ है और फसल को कितनी पानी की जरूरत है. शोधार्थी नायडू ने बताया कि अब वह आगे मोबाइल एप्प बनाएंगे। जिससे किसी को इस विषय में आसानी से पता लगा सके.
सॉफ्टवेयर के लिए इस तकनीक का उपयोग
वर्तमान समय में कृषि मौसम संबंधित आंकड़ों जैसे वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन का अनुमान तापमान और वर्षा के आंकड़ों का पूर्वानुमान सांख्यिकीय या गणितीय विधियों द्वारा किया जाता है। इसी का अध्ययन करके उपरोक्त कार्य के लिए मशीन लर्निंग तकनीकी मल्टीलेयर परसेप्ट्रान न्यूरल नेटवर्क, रेडियल बेसिस फंक्शन न्यूरल नेटवर्क, आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क, इवेल्यूशनरी टेशनल तकनीकी एवं अन्य कंप्यूटर इंटेलीजेंस तकनीकी आदि के प्रयोग से अधिक प्रभावी मॉडल विकसित किया जा रहा है.
विवेक राय, कृषि जागरण
Share your comments