छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में इन दिनों आर्गेनिक खेती की नई पहल देखने को मिल रही है। जिले की सैकड़ों आदिवासी महिलाएं आर्गेनिक हल्दी के उत्पादन में जुटी हुई हैं। इस क्षेत्र में उत्पादित हल्दी अन्य क्षेत्रों में होने वाली खेती की तुलना में कुछ खास और ज्यादा है। यहां की उत्पादित हल्दी की सबसे खास बात ये है की, इसमें कैसंर रोधी तत्व करकुमिन की मौजूदगी 0.73 है और अन्य जग्हों की हल्दी में ये सिर्फ 0.32 फीसद तक ही है। तो इससे यह साफ है की अन्य हल्दी की तुलना में यह ज्यादा कारगर है। सरकारी पहल पर जिले के आठ गांवों के करीब 300 परिवारों की 900 महिलाएं हल्दी की खेती कर रही हैं। और अब यहां ऑर्गेनिक खेती को बड़ा बाजार मुहैया हो रहा है।
हल्दी को बाजार में सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध कराने की तैयारी जोरों पर चल रही है। प्रोसेसिंग व पैकेजिंग के लिए प्रोसेसिंग प्लांट भी तैयार हो रहा है और ऑनलाइन मार्केटिंग की भी तैयारी हो रही है। वहीं इससे ये भी अंदाज़ा लगाया जा रहा है की राज्य में हल्दी से जुड़े किसानों की हालत बेहतर हो रही है। उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. केपी सिंह बताते हैं कि "बस्तर की भूमि हल्दी की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। यहां की हल्दी में करकुमिन तत्व देश के अन्य स्थानों पर पाई जाने वाली हल्दी की अपेक्षा सर्वाधिक है। करकुमिन एंटी बैक्टीरियल तत्व है, गंध से इसकी पहचान होती है। बस्तर में उत्पादित हल्दी के वैज्ञानिक परीक्षणों में कैंसर रोधी करकुमिन 0.73 फीसद पाया गया है, जबकि देश के अन्य राज्यों में इसका औसत 0.32 फीसद है।"
वहीं देश के अन्य जगहों की हल्दी की बात करें तो वो प्रोसेसिंग के बाद अधिकतम 250 ग्राम तक पाउडर देती है और बस्तर की हल्दी प्रोसेसिंग के बाद 350- 400 ग्राम तक पाउडर देती है। वहीं इतल प्रोजेक्ट के बारे में बात करें तो इस प्रोजेक्ट को ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत शासकीय उद्यानिकी महाविद्यालय, जगदलपुर ने वर्ष 2016 में बस्तर की ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक मजबूती प्रदान किया गया था। इसके लिए बस्तर जिले की पीरमेटा और लालागुड़ा पंचायत के छह गांवों और बस्तर ब्लॉक के बड़ेचकवा व दरभा ब्लॉक के सेड़वा गांव को चुना गया। इन गांवों के 300 परिवारों की 900 महिलाओं को 20-20 के समूह में बांटकर करीब 300 एकड़ में हल्दी की खेती प्रारंभ की गई है।
बता दें कि इस खेती में ये खास बात है की ये बिल्कुल जैविक खेती पर आधारित है और इसमें रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। हल्दी की खेती, प्रोसेसिंग व मार्केटिंग में पूरी तरह से समूह की महिलाओं को ही जोड़ा गया है। उद्यानिकी महाविद्यालय जगदलपुर में 45 लाख की लागत से प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना का काम चल रहा है।
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