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सरकार की नियत साफ़ है लेकिन उसे नीति पर काम करने की जरुरत है : कर्मवीर सिंह

राष्ट्रीय किसान महासंघ ने 1 जून से 10 दिन का गांव में बंद का ऐलान किया है। इस दौरान गांवों से शहरों को दूध व सब्जी की आपूर्ति नहीं होगी। इस प्रकार बंद में शामिल होने वाले किसान संगठन के नेताओं ने अपील की है कि इस बंद के दौरान गांव पूरी तरीके से शहर भेजे जाने वाले खाद्य एवं दूध आदि की आपूर्ति को रोक दें। इस आन्दोलन में तकरीबन 100 से ज्यादा किसान संगठन हिस्सा लेंगे.

राष्ट्रीय किसान महासंघ ने 1 जून से 10 दिन का गांव में बंद का ऐलान किया है। इस दौरान गांवों से शहरों को दूध व सब्जी की आपूर्ति नहीं होगी। इस प्रकार बंद में शामिल होने वाले किसान संगठन के नेताओं ने अपील की है कि इस बंद के दौरान गांव पूरी तरीके से शहर भेजे जाने वाले खाद्य एवं दूध आदि की आपूर्ति को रोक दें। इस आन्दोलन में तकरीबन 100 से ज्यादा किसान संगठन हिस्सा लेंगे.

कृषि जागरण टीम ने इस आन्दोलन को लेकर किसान कर्मवीर सिंह से बातचीत की. आपको बता दें कर्मवीर सिंह हापुड़, उत्तर प्रदेश के निवासी है तथा अखिल भारतीय गंगादास हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष भी है.

कोल्ड स्टोरेज की कम संख्या

कर्मवीर जी बताते हैं, हम आजादी के बाद से अगर कृषि की बात करें तो देश के किसानों ने अन्न के भण्डार भर दियें है. देश, दूध उत्पादन में अव्वल दर्जे पर है, सब्जियों में, फलों में और भी कई सारी चीजों में देश आत्मनिर्भरता से आगे बढ़ कर उन्हें बाहर देश भी भेजता है. कुछ दिन पहले की बात करें तो हमे दाल बाहर देश से आयात करनी पड़ती थी लेकिन जब प्रधानमंत्री जी ने दाल उत्पादन बढ़ाने को कहा तो हम किसानों ने दाल में भी आत्मनिर्भरता हासिल कर ली. लेकिन इन सबके बावजूद किसान को उसका भी सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है. देश में कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते किसान को अपनी फसल का उचित मूल्य नही मिल पाता है. अगर देश में कोल्ड स्टोरेज की सुविधा हो तो किसान अपनी फसल को तभी बेंचे जब मूल्य उचित मिल रहे हों.

घाटे का सौदा है खेती करना

अगर हम दूध की बात करें तो दूध इतना सस्ता है और उसे प्राप्त करने में जो लागत आती है वह अधिक है. पशुपालन में चारा, दाना आदि इतने मंहगें है कि मुनाफा कभी मिलता है कभी नही. अभिप्राय यही है कि कृषि इतना घाटे का सौदा हो गया है कि किसान भी दूसरा विकल्प देखता है.

किसान का जीवन स्तर निम्न हो गया है

मंहगाई दिन प्रतिदिन बढती जा रही है, लेकिन किसान के पास कुछ नही है. उसे अपनी फसल का मुनाफा नहीं मिल रहा है. इन सब कारणों की वजह से वह अपने बच्चो के स्कूल की फीस नही भर पा रहा है, लड़की की शादी नहीं कर पा रहा है. तो उनके बच्चे भी कृषि न करने की सोचते है.

आवारा पशुओं की समस्या

क्या होगा अगर आपने घर बनाया और कोई आकर उसे गिरा दे. शायद आप सदमा बर्दाश्त नही कर पाएँगे. कुछ ऐसा ही होता है किसानों के साथ. किसान और उनके बच्चे दिन रात मेहनत करके अपनी फसल को खड़ा करते है और आवारा पशुओं के आक्रमण से सब एक रात में ही नष्ट हो जाता है. उस फसल पर जितना पैसा लगा होता है सब व्यर्थ हो जाता है. किसान के पास उसका भी कोई रास्ता नहीं है. सरकार को इस दिशा में बहुत कार्य करने की आवश्यकता है.

सरकार की राजनीति किसानों के मुद्दों को लेकर है लेकिन उनमे सुधार लाने की नहीं. सरकार की नियत तो पूरी तरह ठीक है लेकिन नीति पर काम करने की जरुरत है. मौजूदा सरकार किसानों की आय दोगुनी करने पर जोर दे रही है लेकिन आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 का है. वर्तमान में रोज किसान आत्महत्या कर रहा है. सरकार को इस दिशा में कठोर नीतियों को बनाने की जरुरत है.

सरकारी महकमे में किसानों के प्रतिनिधि नहीं है. किसानों के हित की चिंता वो लोग कर रहें हैं जो कभी खेतों में नही गए है. किसान को समझने के लिए उन्ही के मध्य का प्रतिनिधि होना चाहिए. नीतिगत मामलों में अगर किसान का प्रतिनिधि हो तो किसान की ये दशा न हो पाएगी.

English Summary: Government's policy is clear but it needs to work on policy: Karmaveer Singh Published on: 31 May 2018, 09:33 AM IST

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