बढ़ते मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यवाहरिक समाधानों की पहचान करने और इस संबंध में अपनी राय बनाने के लिए नीति निर्धारण और अन्य हितधारण के लिए इस द्विवार्षिक आयोजन के मेजबान के रूप में भारत 2021 तक दो साल के लिए गत मेजबान चीन से सीओपी का अध्यक्ष पद ग्रहण किया.
भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय दवारा 12 दिवसीय कार्यक्रम में 196 देशों के 3000 अंतराष्ट्रीय प्रतिनिधियों के साथ साथ 94 देशों के पर्यावरण मंत्रियों और सेंट विन्सेंट और ग्रैनेडाइन्स के प्रधान मंत्री राल्फ गोंसाल्वेस सहित 5000 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं. इस वैश्विक सम्मेलन में मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे से उत्पादक भूमि के नुकसान को नियंत्रित करने के लिए विशेष रूप से पिछले दो वर्षों के दौरान हुई प्रगति की भी समीक्षा की जा रही है.
दुनिया में 1.3 अरब से अधिक लोग जीवित रहने के लिए भूमि पर सीधे निर्भर हैं, और भूमि क्षरण और सूखे के जैव रासयनिक प्रभावों से सबसे अधिक पीड़ित है. निवास स्थान के नुकसान और भूमि क्षरण के कारण दुनिया में दस लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. हर 4 हेक्टेयर भूमि में से तीन हेक्टेयर भूमि की प्राकृतिक अवस्थाओं को बदल दिया गया है और हर एक 4 हेक्टेयर भूमि में लगभग 1 हेक्टेयर भूमि की उत्पादकता घट रही है. भूमि का स्वस्थ भी ख़राब हो रहा है, और पूरी दुनिया में 3.2 अरब लोगों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को नुकसान के साथ साथ भूमि क्षरण से 2050 तक 70 करोड़ लोग पलायन कर सकते हैं.
भारत सरकार वर्ष 2030 तक भूमि अपक्षरण संबंधी तटस्थता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है. पिछले कुछ वर्षों में इसने भूमि क्षरण को कम करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं. जैसे की प्रधान मंत्री आवास बीमा योजना, मृदा स्वस्थ कार्ड योजना, मृदा स्वस्थ प्रबंधन योजना, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना और प्रति बूँद अधिक फसल योजना.
मुख्य चुनौती 2020 तक दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर और 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर के वनो की कटाई और ख़राब हुई भूमि को फिर से सही करने लिये वैश्विक प्रयास करना है. 2015 में पेरिस में पार्टियों के यूएनएफसीसी सम्मेलन (सीओपी)में भारत भी स्वेच्छिक रूप से शामिल हो गया. वर्ष 2020 तक अपक्षरण और कटाई के शिकार 13 मिलियन हेक्टेयर भूमि और 2030 तक अतिरिक्त ८8मिलियन हेक्टेयर भूमि को ठीक करने लिए भारत ने बॉन चैलेंज संकल्प लिया है.
सम्मेलन की 196 पार्टियां भूमि और मिटटी की उत्पादकता को बनाये रखने और पुनर्स्थापित करने और सूखे के प्रभावों को कम करने के लिए ,शुष्क क्षेत्रों में लोगों के लिए रहने की स्तिथि में सुधार करने के लिए मिलकर काम करती हैं. यूएनसीसीडी विशेष रूप से सामने दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध है, जो रेगिस्तान और भूमि क्षरण से निपटने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है. यूएनसीसीडी सचिवालय विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग की सुविधा देता है, विशेष रूप से स्थायी भूमि प्रबंधन के लिए ज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संबंध में.
जैसा की भूमि, जलवायु और जैव विविधता की गतिशीलता अंतरंग रूप से जुडी हुई हैं, यूएनसीसीडी अन्य दो रियो सम्मेलनों के साथ मिलकर काम करता है- कन्वेंशन आन बी बायलोजिकल डाइवर्सिटी (सीबीडी) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) ताकि इन जटिल चुनौतियों का सामना एकीकृत दृष्टिकोण के साथ किया जा सके और प्राकृतिक संसाधनों के के सर्वोत्तम उपयोग संभव हो सके.
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