पश्चिम बंगाल के साथ लड़ाई थी
बता दें कि साल 2015 से, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच रसगुल्ले को लेकर चल रही जंग चल रही है. बंगाल राज्य को वर्ष 2017 में अपने रसगुलल्ले के लिए जीआई टैग का प्रमाण पत्र प्राप्त हो गया था. इसी के अगले साल ओडिशा लघु उद्योग निगम लिमिटेड ने रसगुल्ला कारोबारियों के समूह उत्कल मिष्ठान व्यवसायी समिति के साथ मिलकर ओडिशा रसगुल्ले को जीआई टैग देने हेतु आवेदन दिया था.
पंद्रहवी सदी के ग्रंथ में जिक्र
बंगाल के लोगों का तर्क है कि रसगुल्ले का आविष्कार 1845 में नबीन चंद्रदास ने किया था. वह कोलकाता के बागबाजार में हलवाई की दुकान चाने का कार्य करते थे. उनकी दुकान आज भी वहां केसी दास के नाम से संचालित है.ओडिशा का तर्क है कि उनके राज्य में 12वीं सदी से रसगुल्ला बनता आ रहा है, उड़िया के एक विद्वान ने एक शोध में साबित किया है कि 15वीं सदी में बलराम रचित उड़िया ग्रंथ दांडी रामायण में रसगुल्ले की चर्चा है.
बंगाली और रसगुल्ले में अंतर
बंगाली रसगुल्ला बिल्कुल सफेद रंग और स्पंजी होता है जबकि ओडिशा रसगुल्ला हल्के भूरे रंग का और बंगाली रसगुल्ला की तुलना में मुलायम होता है. यह रसगुल्ला मुंह में जाकर आसानी से घुल जाता है. ओडिशा रसगुल्ले के बारे में यह दावा है कि यह 12वीं सदी से भी भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में चढ़ाया जा रहा है. इसे खीर मोहन भी कहते है.
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