झांसी(बुंदेलखंड) के कई गांवों में आज से कुछ समय पहले तक किसानों की हालत खराब थी. साल भर मेहनत करने के बाद भी उन्हें कुछ खास मुनाफा नहीं होता था. लेकिन फिर यहां के किसानों ने बथुआ की खेती की. इसकी खेती ने देखते ही देखते क्षेत्र के किसानों की किस्मत बदल दी.स्थानीय किसानों के मुताबिक आज से कुछ साल पहले तक बथुआ को खरपतवार समझकर खेतों से उखाड़कर फेंक दिया जाता था, लेकिन आज इसी फसल के सहारे लोगों के घर संपन्नता आ रही है. इसकी खेती कर लगभग हर किसान एक सीजन में 50 हजार रुपये तक की कमाई कर रहा है.गौरतलब है कि आज से कुछ साल पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा यहां के किसानों ने पोषक तत्वों से भरपूर बथुआ के बारे में जाना था. यहीं से उन्हें मालुम पड़ा कि भारतीय बाजार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी अच्छी मांग है.
आज के समय में बंगरा, गुरसराय, बड़ागांव ब्लाक आदि के कई किसान जैविक खेती कर बथुआ उत्पादन कर रहे हैं. इतना ही नहीं भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए जैविक खादों का ही प्रयोग कर रहे हैं.ग्रामीणों का कहना है कि आम तौर पर खेती से उन्हें बमुश्किल से एक एकड़ में 20 से 25 हजार रुपये का ही मुनाफा हो पाता था, लेकिन बथुआ की खेती कर वह एक सीजन में 40 से 50 हजार रुपये तक की कमाई कर ले रहे हैं.इसकी खेती में स्थानीय किसान खास तौर पर ध्यान दे रहे हैं कि उत्पादन की प्रक्रिया जैविक पद्धति पर ही आधारित हो और भूगर्भ जल का कम से कम दोहन हो.बता दें कि बथुआ को शरीर के कई प्रकार के विकारों एवं बीमारियों के उपचार के लिए फायदेमंद समझा जाता है. इसकी पत्तियों में रक्त शोधक शक्ति होती है, जो गुर्दे की पथरी के उपचार और पेट संबंधी अन्य बीमारियों की शिकायत में उपयोगी होती है.
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