बचपन से ही कहानिया सुनते आये हैं की `नानी के घर जायेंगे, ढूध मलाई खाएंगे`.यह बात चाहे बचपने की हो लेकिन अब सच साबित होती नजर आ रही है. हरित क्रांति के बाद श्वेत क्रांति याने की किसानो को खेतीबाड़ी के अतिरिक्त पशुपालन से दूध और उससे बने पदार्थ से भी अपनी आय दोगुनी करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. अभी हाल ही में कृषि मंत्री ने इस पर प्रकाश डालते हुए पशुपालन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने की सिफारिश की.
किसानों को समृद्ध बनाने के लिए डेयरी क्षेत्र का विकास जरूरी है। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, राधामोहन सिंह ने गुजरात के आणंद में “डेयरी किसानों की आय दोगुनी करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका ” विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीपी) राष्ट्रीय डेयरी योजना तथा डेयरी प्रसंस्करण और बुनियादी ढांचा विकास निधि (डीआईडीएफ) के कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका रहा है। उन्होंने कहा कि अपने गठन के बाद से एनडीडीपी ऑपरेशन फ्लड सहित डेयरी विकास से जुड़े कई बड़े कार्यक्रम लागू कर चुका है। इसके परिणामस्वरूप भारत देश में दूध की मांग पूरी करने में आत्मनिर्भर हो चुका है।
कृषि मंत्री ने उत्पादकता बढ़ाने और लागत कम करने के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका पर जोर दिया उन्होंने कहा कि इस वजह से राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत मादा पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए 10 सीमेन केन्द्र खोले गए हैं। उत्तराखंड और महाराष्ट्र में भी ऐसे दो केन्द्र खोले जाने का प्रस्ताव भी जिन्हें स्वीकृत कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि देशी नस्लों के जेनॉमिक चयन हेतु इंडसचिप को विकसित किया गया हैl साथ ही 6000 पशुओं की इंडस चिप के उपयोग से जीनोमिक चयन हेतु पहचान की जा चुकी है।
श्री सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के अंतर्गत वर्तमान सरकार द्वारा मार्च, 2018 तक 29 राज्यों से आये प्रस्तावों के लिए रूपये 1600 करोड़ स्वीकृत किये गये हैं।जिसमें से 686 करोड़ राशि जारी की जा चुकी है। 20 गोकुल ग्राम इसी योजना के अंतर्गत स्थापित किये जा रहे हैंl इसके आलावा पशु संजीवनी घटक के अंतर्गत 9 करोड दुधारु पशुओं की यूआईडी द्वारा पहचान की जा रही है। इन सभी पशुओं को नकुल स्वास्थ्य पत्र देने का प्रावधान भी योजना अंतर्गत किया गया है।
अब तक 1.4 करोड़ पशुओं की पहचान की जा चुकी है। श्री सिंह के अनुसार उत्पादन में जोखिम को कम करने के लिए देशी नस्लों को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसके अंतर्गत दुधारू पशुओं, विशेषकर देशी नस्लों के नस्ल सुधार कार्यक्रम हेतु 2200 सांडो के प्रजनन के लक्ष्य के समक्ष अब तक 1831 सांडो का प्रजनन हो चुका है। इसी तरह उत्तम सांडो के वीर्य डोज का उपयोग दुधारू पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने हेतु 6500 मैत्री को प्रशिक्षित कर ग्राम स्तर पर लगाया जा चुका है।
इसके अतिरिक्त देशी नस्लों के संरक्षण हेतु दक्षिण भारत के चिंतलदेवी, आंध्र प्रदेश में तथा उत्तर भारत के इटारसी में एक और मध्य प्रदेश में दो नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग केंद्र स्थापित किए जा रहे है। इसके तहत 41 गोजातीय नस्लों और 13 भैंस की नस्लों को संरक्षित किया जाएगा। आंध्र प्रदेश में एक केंद्र पहले से ही स्थापित किया जा चुका है।
उन्होंने बताया की डिजिटल तकनीक के बढ़ते उपयोग को देखते हुए देश मे पहली बार ई पशुहाट पोर्टल स्थापित किया गया है। यह पोर्टल देशी नस्लों के लिए प्रजनकों और किसानों को जोड़ने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पोर्टल पर आज तक 104570 पशुओं, 8.32 करोड़ वीर्य डोजेस एवं 364 भ्रूणों की पूर्ण सूचना उपलब्ध है।
चंद्र मोहन
कृषि जागरण
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