फसल का अच्छा उत्पादन पाने के लिए सही किस्मों का चयन करना जरूरी है. यदि आपके पास फसल की उन्नत किस्में हैं, तो फसल से काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है. साथ ही फसल की गुणवत्ता पर प्रभाव भी अच्छा पड़ता है.
तो ऐसे में अगर आप भी धान की उन्नत किस्मों की खरीद करना चाहते हैं, तो आपको बता देँ कि मेरठ में स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (Basmati Export Development Foundation/BEDF) में 18 अप्रैल 2022 से बासमती धान के बीजों का वितरण शुरू हो रहा है, जो भी किसान भाई बासमती के उन्नत किस्मों की खरीद करना चाहते हैं, वे खरीद कर सकते हैं.
बीज वितरण किस प्रकार किया जायेगा (How The Seed Distribution Will Be Done)
बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (Basmati Export Development Foundation/BEDF) के अधिकारियों द्वारा बताया गया है कि बीज वितरण पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा.
बासमती धान की उन्नत किस्में (Improved Varieties Of Basmati Paddy)
पूसा बासमती 1121 किस्म (Pusa Basmati 1121 Variety)
बासमती धान की इस किस्म का चावल आकार में लम्बा और नुकीला होता है. इस किस्म में किसी भी प्रकार के रोग लगने का खतरा नहीं रहता है. यह बासमती चावल की यह किस्म करीब 17 साल पुरानी है.
बासमती 370 किस्म (Basmati 370 Variety)
बासमती 370 किस्म में प्रति हेक्टेयर 20 से 22 क्विंटल धान की पैदावार होती है. इस किस्म की फसल की ऊँचाई लगभग 150-160 सेंटीमीटर होती है. इस किस्म से फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है.
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जम्मू बासमती 118 किस्म (Jammu Basmati 118 Variety)
बासमती धान की यह किस्म सबसे अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसमें करीब प्रति हेक्टेयर 45-47 क्विंटल धान पैदा होती है. यह जल्दी पक जाने वाली किस्म है. जम्मू बासमती 118 किस्म का पौधा आकार में छोटा और मजबूत होता है.
पूसा बासमती 1637 किस्म (Pusa Basmati 1637 Variety)
बासमती धान की यह सबसे उन्नत क़िस्म है, जो सभी किस्मों के मुकाबले काफी अच्छी होती है. बासमती धान की इस किस्म से औसत पैदावार करीब 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इस किस्म की खासियत है यह कि इसमें ब्लास्ट रोग लगने का खतरा नहीं रहता है.
पूसा बासमती 1509 किस्म (Pusa Basmati 1509 Variety)
बासमती धान की यह किस्म उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा जैसे राज्यों में खेती के लिए उचित मानी जाती है. यह किस्म की फसल 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म में भी रोग लगने की सम्भावना बहुत कम होती है, इसलिए किसान भाई इस किस्म का ज्यादा चयन करते हैं.
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