तकनीक के इस दौर में आम लोगों का काम बहुत आसान बन चुका है. इसी को देखते हुए किसानों का भी काम आसान बनाने के लिए कई नए नवाचार किए जा रहे हैं. जिसमें किसानों के लिए कई मशीनी उपकरण बनाए गए हैं, जिसमें सबसे अहम भूमिका ट्रैक्टर निभा रहे हैं. हालांकि डीजल- पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से किसानों की परेशानी रूकने का नाम नहीं ले रही है. अब खेती में भी ग्रीन एनेर्जी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, इसका एक जीता जागता उदाहरण है सौलप पंप. जहां पहले डीजल पंप से सिंचाई की जाती थी, वहीं अब सिंचाई के लिए सोलर पंप लगाए जा रहे हैं, जिसके लिए सरकार किसानों को सब्सिडी भी दे रही है. इसी कड़ी में ब्रिटिश साइंटिस्ट ने किसानों के हित में एक ऐसे ट्रैक्टर की खोज की है जिसे चलाने के लिए डिजल-पेट्रोल नहीं बल्कि गोबर की आवश्यकता होती है.
गोबर कृषि में बहुत अहम भूमिका निभाता है. फसलों को पोषण से लेकर जैविक खेती में अहम योगदान देता है. ऐसे में अब गोबर से चलने वाले ट्रैक्टर आने से गोबर की अहमियत और बढ़ जाएगी.
जलवायु परिवर्तन से निपटने में मिलेगा सहयोग
जलवायु परिवर्तन से हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा है. जिसमें सबसे बड़ा रोल प्रदूषण का है. ईंधन और डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहन पर्यावरण को दूषित करने के सबसे बड़े कारक हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा गोबर से चलने वाले ट्रैक्टर का आविष्कार करने के बाद पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने में काफी मदद मिलेगी. साथ ही किसानों की लागत में भी कमी आएगी. विशेषज्ञों की मानें तो गोबर से चलने वाला ट्रैक्टर आम ट्रैक्टर की तरह ही काम करता है.
कैसे कार्य करेगा गोबर से चलने वाला ट्रैक्टर
गोबर से चलने वाले इस ट्रैक्टर का नाम ट्रैक्टर T7 है. इसे चलाने के लिए गायों के गोबर को एकत्रित करके उसे बायोमीथेन (Positive Methane) में तब्दील किया जाता है. इसके लिए ट्रैक्टर में एक क्रायोजेनिक टैंक भी विस्थापित किया गया है, जिसमें गोबर से तैयार हुए बायोमीथेन ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. विशेषज्ञों की मानें तो गाय के गोबर से तैयार बायोमीथेन ईंधन से 270 BHP का ट्रैक्टर भी आसानी से चलाया जा सकता है.
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गाय का गोबर ही क्यों?
अब आपके दिमाग में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि इस ट्रैक्टर के लिए गाय का गोबर ही क्यों लिया जा रहा है. बता दें कि गाय के गोबर में फ्यूजिटिव मीथेन गैस पाई जाती है, जो बाद में बायोमीथेन ईंधन का रूप धारण कर लेती है. इससे ना सिर्फ किसानों का काम आसान होगा बल्कि पर्यावरण को दूषित होने से रोकने में भी यह एक अच्छा अहम कदम साबित होगा.
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