याद आता नहीं है शहर आज़कल,
घुल गया है हवा में ज़हर आज़कल!
गांव की याद दिल को सताने लगी,
मेरे ख्वाबों में मिट्टी का घर आज़कल!
सोंधी सोंधी महक वो हवा में घुली,
काश फिर पा सकूं वो सहर आज़कल!
पेड़ की छांव में चारपाई का सुख,
बचपने सा है मुझ पर असर आज़कल!
लुत्फ़ हासिल हमें उस जमाने में था,
अब तो चुभती सी है दोपहर आज़कल!
कम पढ़े थे मगर जां छिड़कते थे लोग,
ज़िंदगी मे वफ़ा की कसर आज़कल..!
पास सब कुछ तो है इस शहर में स्वतंत्र,
फिर किसे ढूंढती है नज़र आज़कल?
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