बुज़दिल सामने से वार नहीं करते, शेर कभी छुपकर शिकार नहीं करते, हम वो हैं जो नये साल मुबारक के लिए एक जनवरी का इंतज़ार नहीं करते.
वोट देने वाले पागल लेने वाले चालाक हैं ये तो कोई नईं बात नहीं अरे ! सब मज़ाक है
रंगों का त्यौहार है ये प्रेम का कारोबार है ढोल-नगाड़ों और गायन में सब गा..रा...रा जोगिरा सारा...रा....रा
नेता हो अभिनेता हो या कोई बाबा टिका नहीं कोई टक्कर में बड़े-बड़े लटक गए हुस्न के चक्कर में
सितारों का साथ निभाने को चांद निकलता है रात का अंधियारा भगाने को सूरज निकलता है
लफ्ज़ सर्द हो चले हैं पिघले तो कुछ कहूं रात अभी बाकी है सवेरा हो तो कुछ कहूं
अकेले में जब खुद को अकेला पाता हूं मैं तूझे चाहता हूं मैं नादानियां कौन याद रखता है ? भूल जाता हूं मैं तूझे चाहता हूं मैं
हवाएं चलने लगती है मौसम जवां होता है सौ-सौ लड्डू फूटते हैं ऐसा तो फिल्मों में होता है
गर किसी को चाहता है दिल वक्त-बेवक्त का न इंतज़ार कर किनारे खड़ी ये कश्ती दूर निकल जाएगी गर इश्क है तो इज़हार कर
याद आता नहीं है शहर आज़कल, घुल गया है हवा में ज़हर आज़कल! गांव की याद दिल को सताने लगी, मेरे ख्वाबों में मिट्टी का घर आज़कल!
वर्तमान समय की यही पुकार! कार्बनिक खाद से उत्पादित हो आमजन का आहार!....