नींबू एक ऐसा पौधा है जिसकी गिनती न तो फल में होती है और न सब्जी में, परंतु ऐसी कोई रसोई नहीं जहां नींबू न हो. उसकी वजह है कि नींबू हमारी दिनचर्या में इस्तेमाल किया जाने वाला ऐसा अहम खाद्य पदार्थ है जिसके बिना हम स्वाद की कल्पना नहीं कर सकते. सब्जी हो, दाल हो या फिर सलाद, हर जगह नींबू उपयोग में आता है. परंतु आज हम आपको कुछ और बताने जा रहे हैं. दरअसल नींबू की मांग आयुर्वेदिक कंपनियों को रहती है. वह अपनी कंपनी में नींबू का अचार, मुरब्बा और आयुर्वैदिक दवाईयां बना रहे हैं. इन सबके लिए उन्हें भारी मात्रा में नींबू चाहिए और उन्हें यह सब वही दे सकता है जिसकी कईं एकड़ में नींबू की खेती हो.
नींबू की खेती हो रही है कम
यूं तो नींबू भारत के कोने-कोने में उगाया जाता है परंतु पिछले कुछ सालों में नींबू की खेती में कमी देखी गई है. नींबू उगाने वाले किसानों ने या तो नींबू उगाना छोड़कर कुछ और उगाना आरंभ दिया है या उनकी फसल का उन्हें पर्याप्त दाम नहीं मिल रहा है. नींबू की खेती करने वाले किसानों को यह ध्यान देना होगा कि नींबू सिर्फ मंडी में ही नहीं बिक रहा बल्कि इसकी असली जगह कंपनियों में है जो इन्हें नींबू का मनचाहा दाम देने को तैयार है.
कैसे बढ़ रही है नींबू की मांग
कंपनियों द्वारा नींबू की मांग बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है - देश में जैविक खेती की हवा का चलना. पिछले 2 से 3 सालों में पूरे देश में आयुर्वेद, जैविक खेती और प्राकृतिक पदार्थों का प्रचलन बढ़ा है. आज हम देख रहे हैं कि बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी कंपनी अपने उत्पाद को पूरी तरह जैविक और स्वास्थ्यवर्धक बता रही है. यहां तक की दंतमंजन के विज्ञापन में भी मुलेठी, लौंग, जीरा और न जाने क्या-क्या दिखाया जा रहा है और नींबू तो वैसे भी अपने-आप में एक औषधि है. इसी कारण कंपनियां नींबू का भारी आयात चाहती हैं. वह नींबू का प्रयोग भोजन से लेकर दवाईयां बनाने तक कर रही हैं और करना चाहती हैं और उसके लिए वह किसानों से मनचाहे दाम में नींबू खरीद रही हैं.
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