देश के वातावरण में सफलतापूर्वक लोकाट की खेती की जा सकती है. यह एक सदाबहार और उपउष्णकटिबंधीय फल देने वाला वृक्ष है, जिसको लुकाट या लुगाठ भी कहा जाता है. इसकी खेती दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, असम समेत उत्तर प्रदेश के कई राज्यों में होती है. बाजार में इसकी मांग लगातार बनी रहती है, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है. इसका उपयोग त्वचा के लिए उत्पाद बनने के लिए होता है. इसके अलावा आंखों की नज़र, वजन को घटाने और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है. किसान लोकाट की बुवाई जून से लेकर सितंबर माह तक कर सकते हैं. यह समय इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है. आज हम किसान भाईयों को लोकाट की खेती संबंधी ही जानकारी देने वाले हैं इसलिए इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ते रहें.
उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती के लिए रेतली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इसमें जैविक तत्व की उच्च मात्रा पाई जाती है. इससे लोकाट के वृक्ष का विकास अच्छा होता है.
खेती की तैयारी
सबसे पहले खेतों को जोतकर समतल बना लें. ध्यान रहे कि खेती की मिट्टी को भुरभुरा होने तक 2 से 3 बार गहरी जोताई करना उपयुक्त माना जाता है.
उन्नत किस्मों का चयन
इसकी खेती के लिए किसानों को अनेक उन्नत किस्में मिल जाएंगी, लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए कुछ गिनी चुनी किस्मों का उपयोग किया जाता है. जैसे, अगेती किस्मों में पेल यलो, गोल्डन यलो, बेहतर गोल्डन पीला आदि का चयन कर सकते हैं. इसके अलावा मध्य समय वाली किस्मों में विशाल, बेहतर पीला पीला, सफेदा, फायर बॉल का चयन कर सकते हैं.
बुवाई
किसान लोकाट की बुवाई जून से लेकर सितबंर माह तक कर सकते हैं. ध्यान रहे कि बीज पौधों की दूरी 6 से 7 मीटर की हो, तो वहीं बीजों की 1 मीटर की गहराई में बुवाई करें. इसकी बुवाई के लिए प्रजनन विधि का उपयोग करना सबसे अच्छा माना जाता है.
सिंचाई
जून माह तक मानसून आ चुका होता है. ऐसे में इसकी खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. किसान तुड़ाई के समय 3 से 4 सिंचाई कर सकते हैं.
तुड़ाई
इसकी बुवाई के तीसरी साल बाद वृक्ष फल देने लगता है. इसके फलों की तुड़ाई तीखे यंत्र से करनी चाहिए. इसके बाद छंटाई कर सकते हैं.
पैदावार
लोकाट फल का वृक्ष 3 साल में फल देना शुरू कर देता है, जिससे लगभग 15 वें साल में पौधा अधिक उपज देने लगता है. प्रति एकड़ इसकी खेती से लगभग 7 से 10 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
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