1. Home
  2. औषधीय फसलें

अतीस की खेती पर एनएमपीबी दे रहा है 75 फीसद अनुदान, कहीं छूट ना जाएं मौका

अतीस एक औषधीय पौधा है, जिसे संस्कृत में विषा या अतिविषा, मराठी में अतिविष और गुजराती में अति बखनी कली के नाम से जाना जाता है. अन्य क्षेत्रिय भाषाओं के अनुसार इसके और भी विभिन्न नाम हैं. इस पौधें का उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष और खांसी के उपचार में होता है. इन्हीं कारणों से इस पौधें की बाजार में भारी मांग है. इसी के मद्देनजर अतीस की खेती पर एनएमपीबी द्वारा 75 फीसद अनुदान दिया जा रहा है. चलिए हम आपको अतीस की खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.

सिप्पू कुमार
सिप्पू कुमार

अतीस एक औषधीय पौधा है, जिसे संस्कृत में विषा या अतिविषा, मराठी में अतिविष और गुजराती में अति बखनी कली के नाम से जाना जाता है. अन्य क्षेत्रिय भाषाओं के अनुसार इसके और भी विभिन्न नाम हैं. इस पौधें का उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष और  खांसी के उपचार में होता है. इन्हीं कारणों से इस पौधें की बाजार में भारी मांग है. इसी के मद्देनजर अतीस की खेती पर एनएमपीबी द्वारा 75 फीसद अनुदान दिया जा रहा है. चलिए हम आपको अतीस की खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.

वार्षिक होती है अतीस की खेतीः

अतीस एक ऐसा पौधा है जिसकी खेती वार्षिक होती है, जबकि इसकी जड़ दिवर्षीय होती है. इसके तने सीधे और आमतौर पर शाखाओं से रहित होते हैं. पत्तियां में चिकनाई होती है, लेकिन वो डंठली रहित होती है. आम तौर पर कंदों की लम्बाई 3 सेमी. एवं शंकु के आकार में होती है.

जलवायु और मिट्टीः

इस पौधें की खेती समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. जैविक एवं रेतिली मिट्टी में गर्मियों के मीहनों में इसकी खेती की जा सकती है. इसे प्रचुर मात्रा में हवा, नमी एवं खुली धूप की जरूरत होती है. बीज, कंद एवं तना इसकी रोपण सामाग्री है.

ऐसे लगाएं नर्सरीः

इस पौधे को तैयार करने के लिए बीजों को मिट्टी तथा खाद में 0.05 सेमी गहराई और 2 सेमी की दूरी पर लगाएं. फरवरी से मार्च माह तक इसे 600 से 1000 मीटर तक लगाया जा सकता है. जबकि अक्टूबर से अप्रैल माह तक 1800  2200 तक लगाया जा सकता है.

रोपणः

सबसे पहले शीत मौसम में भूमि की जुताई कर खेतों को अच्छे से समतल कर लें. प्रत्यारोपण के लिए 10 से 15 दिन बाद पूर्व खाद को मिट्टी में मिलाएं. 1 लीटर पत्ती को 150 क्विटंल प्रति हेक्टयर की दर से मिट्टी में प्रत्यारोपण से मिलायें. अच्छी पैदावार के लिए पत्ति को 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर मिलाया जा सकता है.

सिंचाईः

गर्मियों में सिंचाई क्रिया जल्दी प्रारंभ करनी सही है. शुष्क मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई की जा सकती है.

प्रबंधन एवं कटाईः

एलपाइन क्षेत्रों में नेचुरल तौर से फूल सितंबर महीने में आ जाते हैं. जबकि फलों के आने का समय नवम्बर तक है. बीजों को पकने के बाद कंदों को मिट्टी खोदकर बाहर निकाल लें. खुदाई के बाद कंद को छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए. सूखे कंदों को लकड़ी बक्सों या बंद हवा वाले पोलिथिन थैलों में भंडारित किया जा सकता है. आप औसत एक हेक्टयर से लगभग 518 किलोग्राम कंद प्राप्त कर सकते हैं.


 

अनुमानित लागत

देय सहायता

पौधशाला

 

 

पौध रोपण सामग्री का उत्पादन

 

 

क) सार्वजनिक क्षेत्र

 

 

1) आदर्श पौधशाला (4 हेक्टेयर )

 25 लाख रूपए

अधिकतम 25 लाख रूपए

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

अधिकतम 6.25 लाख रूपए

ख) निजी क्षेत्र (प्रारम्भ में प्रयोगिक आधार पर )

 

 

1) आदर्श पौधशाला  (4 हेक्टेयर)

25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 12.50 लाख रूपए तक सीमित                         

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 3.125 लाख रूपए तक सीमित

English Summary: atis aconitum heterophyllum plants is very beneficiary for the health national medicinal plant board give 75 percent subsidy Published on: 11 November 2019, 05:11 IST

Like this article?

Hey! I am सिप्पू कुमार. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News