Banana Crop Management: उत्तर भारत में केला खेती का प्रमुख हिस्सा है, जो किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. जाड़े के बाद का समय केले के बागानों में पोषण प्रबंधन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान सही मात्रा में खाद और उर्वरकों का उपयोग उत्पादन और गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करता है. उन्नत तकनीकों और पोषण प्रबंधन के समुचित उपयोग से किसान न केवल फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपनी आय में भी वृद्धि कर सकते हैं. पोषण प्रबंधन पर ध्यान देकर केले के उत्पादन में स्थिरता और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे यह फसल और भी अधिक लाभदायक बनती है.
1. केले के पोषण प्रबंधन का महत्व
केले की फसल के लिए संतुलित पोषण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह फसल तेजी से बढ़ती है और इसकी जड़ें मिट्टी से अधिक मात्रा में पोषक तत्व ग्रहण करती हैं. जाड़े के मौसम में तापमान कम होने के कारण पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है. जैसे ही जाड़ा समाप्त होता है, केले के पौधे सक्रिय रूप से बढ़ने लगते हैं. इस समय पोषण की सही मात्रा और संतुलन फसल की वृद्धि और फल की गुणवत्ता के लिए अत्यंत आवश्यक है.
2. खाद और उर्वरकों के प्रकार
उत्तर भारत में केले की फसल के लिए निम्नलिखित प्रकार की खाद और उर्वरकों का उपयोग किया जाता है……………
(क) जैविक खाद
- गोबर की खाद: यह मिट्टी की संरचना में सुधार करती है और जैविक पदार्थ बढ़ाती है. जाड़े के बाद इसे पौधों के चारों ओर लगाया जाता है.
- वर्मी कंपोस्ट: यह मिट्टी में पोषक तत्वों को धीरे-धीरे मुक्त करता है और जड़ों की वृद्धि में सहायता करता है.
- नीम की खली: यह मिट्टी को रोगमुक्त बनाती है और पोषक तत्व प्रदान करती है.
(ख) रासायनिक उर्वरक
- नाइट्रोजन (N): केले की पत्तियों और तनों की वृद्धि के लिए आवश्यक.
- फॉस्फोरस (P): जड़ों की मजबूती और प्रारंभिक वृद्धि में सहायक.
- पोटाश (K): फल के आकार, रंग और स्वाद को बढ़ाने में महत्वपूर्ण.
- सूक्ष्म पोषक तत्व (जस्ता, बोरॉन, मैग्नीशियम): पौधों की समग्र सेहत के लिए आवश्यक.
3. खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग की विधि
(क) पहली खुराक (जाड़े के तुरंत बाद, फरवरी-मार्च)
जाड़ा समाप्त होने के बाद जब तापमान बढ़ने लगता है, तो केले के पौधों में नई पत्तियों की वृद्धि होती है. इस समय निम्नलिखित मात्रा में खाद और उर्वरकों का प्रयोग करें:
- जैविक खाद: प्रति पौधा 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट.
- नाइट्रोजन (N): प्रति पौधा 50-70 ग्राम यूरिया.
- फॉस्फोरस (P): 50-60 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट.
- पोटाश (K): 100-120 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश.
- खाद और उर्वरकों को पौधे के चारों ओर 20-30 सेमी की दूरी पर लगाकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं.
(ख) दूसरी खुराक (अप्रैल-मई)
फल बनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले पौधों को पर्याप्त पोषण देना आवश्यक है. इस समय निम्नलिखित उर्वरकों का उपयोग करें:
- नाइट्रोजन (N): 50-70 ग्राम यूरिया.
- पोटाश (K): 150-200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश.
- सूक्ष्म पोषक तत्व: 1% जिंक सल्फेट और बोरिक एसिड का घोल छिड़काव करें. इस खुराक के बाद पौधों को नियमित रूप से सिंचाई करना सुनिश्चित करें.
4. खाद और उर्वरकों के उपयोग के टिप्स
- सिंचाई का ध्यान: खाद और उर्वरकों के प्रयोग के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि पोषक तत्व पौधों की जड़ों तक पहुंच सकें.
- मिट्टी की जांच: उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच करवाएं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कौन से पोषक तत्वों की कमी है.
- संतुलित पोषण: उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें; अत्यधिक नाइट्रोजन का प्रयोग फल की गुणवत्ता को खराब कर सकता है.
- गुड़ाई: खाद और उर्वरकों के प्रयोग के बाद मिट्टी की गुड़ाई करें, ताकि वे अच्छी तरह मिट्टी में मिल जाएं.
5. सावधानियां
- उर्वरकों का प्रयोग हमेशा अनुशंसित मात्रा में ही करें; अत्यधिक प्रयोग से पौधों को नुकसान हो सकता है.
- पत्तियों पर उर्वरक के कण न गिरने दें, क्योंकि इससे जलने के निशान पड़ सकते हैं.
- जैविक खाद का प्रयोग बढ़ावा दें, ताकि मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता में सुधार हो.
6. केला उत्पादन पर प्रभाव
जाड़े के बाद सही समय पर खाद और उर्वरकों का संतुलित उपयोग केले की उपज और गुणवत्ता को बेहतर बनाता है. फलों का आकार, स्वाद, और भंडारण क्षमता बढ़ती है, जिससे किसानों को अधिक आय प्राप्त होती है.
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