उत्तर भारत में पपीता मार्च अप्रैल एवं सितंबर अक्टूबर में लगाते है. सितंबर महीना चल रहा है इसलिए अधिकांश किसान पपीता की नर्सरी डाल चुके होंगे या उन्हें तुरंत पपीता के बीज को नर्सरी में डाल देना चाहिए. नर्सरी एक ऐसा स्थान है. जहां पौधे, जहां मुख्य भूखंडों में रोपने से पहले उगाए जाते हैं. बीज की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण है जिसके आधार पर पपीते जैसी फलों के लिए पहले नर्सरी में पौधे उगाते है, फिर मुख्य भूखंड में प्रत्यारोपित करने की आवश्यकता होती है.
आमतौर पर, बीज को नर्सरी में बोने के बाद महीन मिट्टी की एक परत के साथ कवर किया जाता है. सूरज से या पक्षियों या कृन्तकों द्वारा भी कभी-कभी पौधे को खाया जाता है.
स्थल का चयन
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नर्सरी क्षेत्र का चयन करते समय निम्नलिखित बातों पर विचार किया जाता है जैसे.…
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क्षेत्र जलभराव से मुक्त होना चाहिए.
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वांछित धूप पाने के लिए हमेशा छाया से दूर रहना चाहिए.
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नर्सरी क्षेत्र पानी की आपूर्ति के पास होना चाहिए.
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क्षेत्र को पालतू जानवरों और जंगली जानवरों से दूर रखा जाना चाहिए.
पौध रोपण के लाभ
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बहुत महंगे बीज की नर्सरी तैयार कर लेने से ,नुकसान कम होता है .
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भूमि का उचित उपयोग सुनिश्चित करता है.
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बेहतर वृद्धि और विकास के लिए सुगमता.
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नर्सरी उगा लेने से समय की भी बचत
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अनुकूल समय तक पौध प्रतिरोपण के विस्तार की संभावना.
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विपरीत परिस्थिति में भी पौध तैयार करना.
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आसान क्षेत्र के कारण देखभाल और रखरखाव में आसानी.
मृदा उपचार
यदि संभव हो तो प्लास्टिक टनल से ढकी जुताई वाली मिट्टी पर लगभग 4-5 सप्ताह तक मिट्टी का सोलराइजेशन करना बेहतर होता है. बुवाई के 15-20 दिन पहले मिट्टी को 4-5 लीटर पानी में 1.5-2% फॉर्मेलिन घोल प्रति वर्ग मीटर की मात्रा में मिलाकर प्लास्टिक शीट से ढक दें. कैप्टन और थिरम जैसे कवकनाशी @ 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बना कर मिट्टी के अंदर के रोगजनकों को भी मार देना चाहिए. फुराडॉन, हेप्टएक्लोर कुछ ऐसे कीटनाशक हैं जिन्हें सूखी मिट्टी में 4-5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाया जाता है और नर्सरी तैयार करने के लिए 15-20 सेंटीमीटर की गहराई तक मिलाया जाना चाहिए. ढकी हुई पॉलीथिन शीट के नीचे कम से कम 4 घंटे लगातार गर्म भाप की आपूर्ति करें और मिट्टी को बीज बिस्तर तैयार करते है.
पपीते के उत्पादन के लिए नर्सरी में पौधों का उगाना बहुत महत्व रखता है. इसके लिए बीज की मात्रा एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम पर्याप्त होती है. बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा हुआ और शीशे की जार या बोतल में रखा हो जिसका मुंह ढका हो और 6 महीने से पुराना न हो, उपयुक्त है. बोने से पहले बीज को 3 ग्राम केप्टान से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए. बीज बोने के लिए क्यारी जो जमीन से ऊंची उठी हुई संकरी होनी चाहिए इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्सों का भी प्रयोग कर सकते हैं. इन्हें तैयार करने के लिए पत्ती की खाद, बालू, तथा सड़ी हुई गोबर की खाद को बराबर मात्र में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं. जिस स्थान पर नर्सरी हो उस स्थान की अच्छी जुताई, गुड़ाई करके समस्त कंकड़-पत्थर और खरपतवार निकाल कर साफ़ कर देना चाहिए. वह स्थान जहां तेज धूप तथा अधिक छाया न आए चुनना चाहिए. एक एकड़ के लिए 40-50 वर्ग मीटर जमीन में उगाए गए पौधे काफी होते हैं. इसमें 2.5 x 10 x 0.5 आकार की क्यारी बनाकर उपरोक्त मिश्रण अच्छी तरह मिला दें और क्यारी को ऊपर से समतल कर दें. इसके बाद मिश्रण की तह लगाकर 1/2' गहराई पर 3' x 6' के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बो दे और फिर 1/2' गोबर की खाद के मिश्रण से ढक कर लकड़ी से दबा दें ताकि बीज ऊपर न रह जाए. यदि गमलों बक्सों या प्रो ट्रे का उगाने के लिए प्रयोग करें तो इनमें भी इसी मिश्रण का प्रयोग करें. बोई गई क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढक दें और सुबह शाम होज द्वारा पानी दें. बोने के लगभग 15-20 दिन भीतर बीज जम जाते हैं. जब इन पौधों में 4-5 पत्तियां और ऊंचाई 25 से.मी. हो जाए तो दो महीने बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए.
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