Mango Farming: थ्रिप्स कीट की लगभग 20 प्रजातियां आम की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जिसमें से सिरटोथ्रिप्स डौरसैलिस कीट उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पाई जाती है. इस कीट का प्रकोप मार्च-अप्रैल माह में आरंभ होता है और जुलाई-अगस्त में नई पत्तियों के निकलने तक जारी रहता है. इसके प्रकोप से फल को क्षति होती है. आम की पत्तियां, नई कलियां और फूल पर इसका प्रकोप होता है. आम का थ्रिप्स कीट सतह को खरोंचकर तथा पत्ती आदि का रस चूसता है, जिससे छोटे फल गिर जाते हैं तथा बड़े फलों पर भूरा खुरदरा धब्बा पड़ता है. जैसे-जैसे फल परिपक्व होता हैं, फल के प्रभावित भाग में छोटी-छोटी दरारें भी दिखाई देने लगती हैं. पत्तियों का मुड़ना और बौर का सूखना भी इसी कीट द्वारा पाया जाता है. जो पत्तियां नई निकल रही होती हैं, उस पर इसका अधिक प्रकोप होता है.
थ्रिप्स कीट को कैसे करें प्रबंधित?
स्वस्थ फल उत्पादन सुनिश्चित करने और फसल को इन छोटे कीड़ों से होने वाले संभावित नुकसान से बचाने के लिए आम में थ्रिप्स प्रबंधन महत्वपूर्ण है. थ्रिप्स छोटे, पतले कीड़े हैं जिन्हें अनियंत्रित छोड़ दिए जाने पर महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान हो सकता है. यदि इसका प्रकोप देखने को मिले तो निम्नलिखित उपाय करने से इसकी उग्रता में कमी आती है यथा नवम्बर और दिसम्बर माह में खेत की गहरी जुताई करने से इस कीट के प्यूपा जमीन से बाहर निकलते है और सूख जाते हैं या अन्य मित्र कीट द्वारा उन्हें खा लिया जाता है.
जब थ्रिप्स की आबादी आर्थिक सीमा से अधिक हो जाती है, तो रासायनिक नियंत्रण आवश्यक हो जाता है. आम में थ्रिप्स प्रबंधन के लिए विशेष रूप से लेबल किए गए कीटनाशकों का उपयोग करें, और प्रयोग हेतु दिए गए दिशानिर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करें. इस कीट की उग्र अवस्था में आवश्यकतानुसार स्पाइनोसैड 44.2 एस.सी. @1 मिली./4 लीटर पानी में तथा साथ ही स्टीकर @ 0.3 मिली. प्रति लीटर डाल कर मार्च-अप्रैल में छिड़काव करना चाहिए.
दूसरा छिडकाव 15 दिन पश्चात अक्टारा (ACTARA) जिसमें Thiamethoxam 25% WG होता है, इसकी 1 ग्राम मात्रा को प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर करें, इसे इस कीट की उग्रता में भारी कमी आती है. इसके बाद किसी भी रोग या कीट से आक्रांत एवं सुखी टहनियों को तेज चाकू या सिकेटियर से अवश्य काट देना चाहिए. इसके बाद खेत से खरपतवार निकलने के बाद 10 वर्ष या 10 वर्ष से बड़े आम के पेड़ों (वयस्क पेड़) के लिए 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटैशियम तत्व के रूप में प्रति पेड़ देना चाहिए. इसके लिए यदि हम लगभग 550 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (DAP), 850 ग्राम यूरिया एवम् 750 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पेड़ देते हैं तो उपरोक्त पोषक तत्व की मात्रा पूरी हो जाती है.
इसके साथ 20-25 किग्रा खूब अच्छी तरह से सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद भी देना चाहिए. यह डोज 10 साल या 10 साल के ऊपर के पेड़(वयस्क पेड़) के लिए है. यदि उपरोक्त खाद एवम् उर्वरकों की मात्रा को जब हम 10 से भाग दे देते हैं और जो आता है वह 1 साल के पेड़ के लिए है. एक साल के पेड़ के डोज में पेड़ की उम्र से गुणा करे, वही डोज पेड़ को देना चाहिए. इस तरह से खाद एवम् उर्वरकों की मात्रा को निर्धारित किया जाता है.
वयस्क पेड़ को खाद एवं उर्वरक देने के लिए पेड़ के मुख्य तने से 2 मीटर दुरी पर 9 इन्च चौड़ा एवं 9 इंच गहरा रिंग पेड़ के चारों तरफ खोद लेते हैं. इसके बाद आधी मिट्टी निकाल कर अलग करने के बाद उसमे सभी खाद एवं उर्वरक मिलाने के बाद उसे रिंग में भर देते हैं, इसके बाद बची हुई मिटटी से रिंग को भर देते हैं, तत्पश्चात सिचाई कर देते हैं. 10 साल से छोटे पेड़ की कैनोपी के अनुसार रिंग बनाते है.
मौसम की स्थिति से सावधान रहें, क्योंकि गर्म और शुष्क मौसम थ्रिप्स के प्रकोप को बढ़ावा दे सकता है. पर्याप्त सिंचाई और माइक्रॉक्लाइमेट प्रबंधन इन स्थितियों को कम कर सकता है. स्वस्थ वृक्ष विकास को बढ़ावा देने वाले कृषि कार्यो को लागू करें. छंटाई, खरपतवार मेजबानों को हटाना और उचित बगीचे की स्वच्छता बनाए रखने से थ्रिप्स के आवास और प्रजनन स्थलों को कम किया जा सकता है. थ्रिप्स के प्राकृतिक शत्रुओं, जैसे शिकारी घुन (एम्बलीसियस कुकुमेरिस), लेडीबग्स (हिप्पोडामिया कन्वर्जेन्स), और परजीवी ततैया (थ्रिपोबियस सेमिल्यूटस) को नियोजित करें. इन लाभकारी कीड़े थ्रिप्स आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है.
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