फल उत्पादन के अंतर्गत अनार का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अनार के फल में विटामिन ए, सी, एवं ई और खनिज लवणों जैसे फास्फोरस, कैल्सियम और पौटेशियम आदि की मात्रा अधिक होने के कारण यह फल स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. अनार के फलों का उपयोग ताजे फल, जूस एवं फल प्रसंस्करण उद्योगों में किया जाता है.
अनार के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा (Climate and soil suitable for Pomegranate)
अनार को मुख्य रूप से शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है. अनार के पौधे लवणीय व क्षारीय भूमि को भी सहन कर पाते है.अनार की फसल से अधिक उत्पादन लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है. अनार के फल में फल फटना एक आम बात है जिसका मुख्य कारण मृदा एवं वायुमण्डल में उपस्थित नमी व तापमान मे अधिक परिवर्तन पाया जाना है.
अनार में प्रवर्धन तकनीक (Propagation technique in Pomegranate)
कलम द्धारा (By cutting)
अनार मे फल प्रर्वधन के लिए सख्त काष्ठ कलम विधि को व्यवसायिक स्तर पर अपनाया जाता है. अनार के पोधों में कलम लगाने का सही समय फरवरी माह को माना जाता है. कलम से तैयार पोधों को बगीचे मे जुलाई माह या बरसात के शुरुआती मौसम मे लगाना चाहिए.एक वर्ष पुरानी शाखाओं से 20-30 सेमी लम्बी कलमें काटकर इन्डोल ब्यूटारिक अम्ल (आई.बी.ए.) 3000 पी.पी.एम. से कलमों को उपचारित करने से जडें शीघ्र एवं अधिक संख्या में निकलती हैं.
गूटी द्वारा (By Gooty)
इस विधि में जुलाई-अगस्त में एक वर्ष पुरानी पेन्सिल के समान मोटाई वाली स्वस्थ 45-60 से.मी. लम्बाई की शाखा का चयन कर कलिका के नीचे 3 सेमी चौड़ी गोलाई में छाल पूर्णरूप से अलग कर दें. छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आई. बी. ए. 10,000 पी.पी.एम. का लेप लगाकर नमी युक्त मास घास चारों और लगाकर पालीथीन शीट से ढ़ॅंककर बांध दें.जब पालीथीन से जड़ें दिखाई देने लगे उस समय शाखा को काटकर क्यारी या गमलो में लगा दें.
अनार की उन्नत किस्में (Advanced varieties of pomegranate)
जालौर सीडलैस: यह सुखा सहनशील किस्म है जो क्षारीय भूमि मे भी उगाई जा सकती है.
जोधपुर रेड:इसका फल का लाल रंग का और यह किस्म निर्यात के लिए उतम मानी जाती है.
गणेश:इस किस्म के फल मध्यम आकार के बीज कोमल तथा गुलाबी रंग के होते है.
अरक्ता:प्रस्संकरण के लिए सर्वोतम अनार की किस्म है.फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं. एरिल लाल रंग की एवं छिल्का आकर्षक लाल रंग का होता है. उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 25-30 कि.ग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है.
ज्योति: यह किस्म बेसिन एवं ढ़ोलका के संकरण की संतति से चयन के द्धारा विकसित की गई है. फल मध्यम से बडे आकार के चिकनी सतह एवं पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं. प्रति पौधा 8-10 कि.ग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है.
भगवा:इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा या केशरी रंग के चिकने चमकदार होते हैं. एरिल आकर्षक लाल रंग, बीज मुलायम और प्रति पौधा 30.38 कि.ग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है.
मृदुला:फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं. एरिल गहरे लाल रंग की बीज मुलायम , रसदार एवं मीठे होते हैं. इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है.
पौध रोपण (Plant transplanting)
अनार में कलम विधि द्वारा तैयार पौधो को बरसात के मौसम में लगाया जाना चाहिए.अनार के लिए बगीचे में 75 × 75 × 75 सेमी‐आकार के गडढ़े मई माह में खोद लेते हैं. बगीचे में अनार लगाने के लिए पौधे से पौधे की दूरी 5 × 5 मीटर रखी जाती है. अनार के पौधे बगीचे में लगाते समय प्रति गडढा 10 किलो गोबर की खाद, 250 ग्राम सुपर फॅास्फेट, 50 ग्राम पोटाश के हिसाब से डालकर भर देना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer)
अनार के पौधों को उचित बढवार एवं विकास के लिए समय-समय पर खाद एवं उर्वरको की आवश्यकता होती है. बगीचों के पौधों में 10 किलो गोबर खाद, 200 ग्राम नाईट्रोजन, 120 ग्राम फास्फोरस तथा 100 ग्राम पोटाश की मात्रा को प्रति पौधे के हिसाब से हर वर्ष देना चाहिए.नत्रजन की आपूर्ति के लिए काली मिट्टी में यूरिया एवं लाल मिट्टी में कैलिषयम अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग करें, फाॅस्फोरस की आपूर्ति के लिए सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाष की आपूर्ति के लिए म्यूरेट आफ पोटाष का प्रयोग करें.प्रति वर्ष खाद एवं उर्वरकों की मात्रा को बढ़ाते रहना चाहिए.
अनार के पौधो की कांट-छांट (Training of Pomegranate plant)
अनार के पौधो से नियमित रूप से फल लेने के लिए समय-समय पर पौधो की कांट-छांट करना जरूरी हो जाता है. अनार के 3-4 साल वाले पौधों में फूल एवं फल बनते रहते है. अनार के पौधे की टेढी-मेढ़ी शाखाओं को पौधे से हटा देते हैं.बरसात के समय में छँटाई के बाद 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड को 1 लीटर अलसी का तेल में मिलाकर उपयेाग करेंया बोर्डो मिक्स्चर 1% का छिड़काव करें.
बहार/ फलन नियंत्रणतकनीक (Bahar/ Fruiting control technique)
राजस्थान मे अनार के पौधों में फलन या बहार वर्ष मे तीन बार आती है. अनार की अम्बे बहार के फूल जनवरी-फरवरी मे आते हैं तथा इनके फलों की तुडाई जुलाई-अगस्त माह में की जाती है. अनार की मृग बहार मे फूल आने का समय जून-जुलाई का महीना होता है जिनके फलों की तुड़ाई नवम्बर-दिसम्बर माह में की जाती है. अनार की हस्त बहार मे फूल सितम्बर-अक्टूबर मे लगते हैं जबकि इनके फलों की तुड़ाई फरवरी-मार्च में की जाती है.
सिंचाई प्रबंधन (Irrigation): अनार के बगीचों मे पौध लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. सर्दी के मौसम में 10 दिन के अन्तराल पर, गर्मी के मौसम में 5-7 दिन के अन्तराल पर एवं बरसात के मौसम में यदि बरसात नहीं हो तो 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए. सिंचाई की बूंद-बूंद विधि उत्तम मानी जाती है. कीट-रोग प्रबंधन (Insect disease management) अनार की तितलीः यह अनार का मुख्य विनाशकारी कीट होता है. इस कीट की मादा द्वारा अनार के फुलों पर अण्डे दिए जाते है. इन अण्डो से लटे निकलकर पौधे के विकसित फलों मे धुसकर फल को अन्दर ही अन्दर से खाती रहती है. इस कीट के नियंत्रण के लिए फलो को बटर पेपर से ढक देना चाहिए तथा कार्बेरिल दवा का 1 मिलीया स्पीनोसेड़ 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से धोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
छाल भक्षक कीटः यह कीट पौधो की छाल को खाता है. यह कीट डाली के अन्दर छेद करके धुस जाता हे जिससे शाखा कमजोर हो जाती है. इस कीट के नियंत्रण के लिए सुखी रोगग्रस्त शाखाओं को काट देना चाहिए तथा कीट के द्वारा बनायी गई सुरंगो मे केरोसीन युक्त रूई का पोहाबनाकर डाल देते हे ओर छेद को गीली मिट्टी से बंद कर देते है.या क्लोरोपायरिफोस 25 ईसी की 2.5 मिली मात्रा प्रति लीटर में मिलाकर कर ड्रेंचिंग करनी चाहिए.
मिली बगः इस कीट का प्रकोप पौधो पर नवम्बर-दिसम्बर महीने मे सर्वाधिक होता है. इस कीट के शिशु पोधे के तने के सहारे उपर चढकर शाखाओं एवं पतियों का रसचुषते है. इसको रोकने के लिए अगस्त माह मे थावले के आस-पास की मिट्टी को बदल देना चाहिए ताकि इस कीट के अण्डे बाहर आकर नष्ट हो जाये. इन कीटों को पौधो के उपर चढने से रोकने के लिए ग्रीस को तने के चारों ओर लगा देना चाहिए.अधिक प्रकोप की अवस्था में इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 0.3 मिली मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
दीमकः जब अनार के पौधों को बगीचों में स्थानान्तरित किया जाता है उस समय इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है. इस कीट के नियंत्रण के लिए फल पौधों में खाद एवं उर्वरक देते समय उच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का ही उपयोग करना चाहिए. इसके अलावा 50 ग्राम कार्बोनिल का छिडकाव प्रति गड्ढ़े के हिसाब से करे.
फल सडन रोगः इस रोग का प्रकोप बरसात के साथ शुरू होता है. इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लग जाते हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिए मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर के दो छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर धब्बे दिखाई देने के बाद करने चाहिए
फलों की तुडाई एवं उपज (Harvesting and yield of fruits)
जब फलों का रंग हल्का पीला या लाल दिखाई पड़े तो समझ लेना चाहिए कि फल पकने की स्थिति में आ गये है. फूल आने के लगभग 5-6 महीने बाद फल पक जाते हैं. एक पूर्ण विकसित फलवृक्ष से लगभग 100-120 फल प्राप्त हो जाते हैं.
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