सिगार एंड रॉट, जिसे "जले हुए सिगार रोग" के रूप में भी जाना जाता है, केला फलों का एक तेजी से उभरता हुआ रोग है. दो वर्ष पहले तक इसे कम महत्व का रोग माना जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में अत्यधिक बारिश और नमी की वजह से यह रोग एक गंभीर समस्या बन गया है. यह रोग केले के फलों की गुणवत्ता और उपज को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है.
रोग के लक्षण
सिगार एंड रॉट मुख्य रूप से केले के फलों के सिरे पर सूखे, भूरे से काले सड़े हुए धब्बों के रूप में प्रकट होता है. यह रोग फूल आने की अवस्था से ही सक्रिय हो जाता है और फलों के परिपक्व होने तक या उससे पहले लक्षण स्पष्ट हो जाते हैं. प्रभावित क्षेत्र पर भूरे रंग के कवक का विकास होता है, जो जले हुए सिगार की तरह दिखता है. इस स्थिति में:
- प्रभावित फल "ममीकरण" प्रक्रिया से गुजर सकते हैं.
- फल का आकार असामान्य हो जाता है, उसकी सतह पर फफूंदी और घाव स्पष्ट दिखाई देते हैं.
- रोग का प्रकोप भंडारण और परिवहन के दौरान और भी गंभीर हो सकता है.
रोग का कारण और प्रसार
यह रोग मुख्य रूप से कवक ट्रेकिस्फेरा फ्रुक्टीजेना और कभी-कभी वर्टिसिलियम थियोब्रोमे के कारण होता है. कवक बारिश या हवा के माध्यम से फैलता है और केले के फूलों को संक्रमित करता है. संक्रमित फूल से यह कवक फलों के सिरे तक पहुंचता है, जहां यह राख जैसे सूखे सड़ांध का कारण बनता है.
रोग प्रबंधन के उपाय
1. कल्चरल उपाय
रोगरोधी किस्मों का चयन करें.
बाग में उचित वेंटिलेशन के लिए पौधों के बीच दूरी बनाए रखें.
फसल की देखभाल: पौधों के ऊतकों को नुकसान से बचाएं.
केले के फलों को बारिश के मौसम में प्लास्टिक की आस्तीन से कवर करें.
पत्तियों की छंटाई: नमी कम करने के लिए बाग में नियमित छंटाई करें.
नर पुष्प का हटाना: गुच्छा में फल लगने के बाद नर पुष्प को हटा दें.
रोगग्रस्त और सूखी पत्तियों को नियमित रूप से साफ करें.
2. स्वच्छता और प्रसंस्करण
- उपकरणों और भंडारण स्थान को साफ रखें.
- संक्रमित फलों और पौधों के हिस्सों को नष्ट करें.
- केले को 13°C से कम तापमान पर स्टोर न करें.
जैविक नियंत्रण
जैविक उपाय इस रोग के प्रबंधन में प्रभावी हो सकते हैं.
बेकिंग सोडा स्प्रे: प्रति लीटर पानी में 50 ग्राम बेकिंग सोडा और 25 मिलीलीटर तरल साबुन मिलाकर तैयार घोल को संक्रमित शाखाओं और आसपास के क्षेत्रों पर छिड़कें. यह कवक के विकास को रोकने में मदद करता है.
कॉपर कवकनाशी: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल का छिड़काव कवक के प्रसार को रोकता है.
रासायनिक नियंत्रण
यदि रोग का प्रकोप गंभीर हो तो रासायनिक नियंत्रण उपयोगी हो सकता है. जैसे मैन्कोजेब, थिओफेनेट मिथाइल या मेटलैक्सिल जैसे कवकनाशको का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. इन उपायों का उपयोग जैविक और कल्चरल प्रबंधन के साथ मिलाकर करें.
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