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जरबेरा उगाएं, आय बढ़ाएं

फूलों को घरों की शोभा बढ़ाने, माला बनाने एवं गुलदस्तों के रूप में उपयोग में लाया जाता है। गुलदस्तों में इस्तेमाल होने वाले मुख्य फूलों में गुलाब, कारनेशन, गेंदा, ग्लैडिओलस, लिलियम्स व जरबेरा आदि हैं। भारत में विगत कई वर्षों से फूलों की खेती व्यावसायिक तौर पर की जा रही हैं। फूलों की खेती से किसान भाई काफी लाभ अर्जिंत कर रहे हैं। फूलों की व्यावसायिक खेती करने में क्षेत्रफल के आधार पर भारत का प्रथम स्थान है, उसके बाद चीन, जापान, इंडोनेशिया, अमेरिका आते हैं।

फूलों को घरों की शोभा बढ़ाने,  माला बनाने एवं गुलदस्तों के रूप में उपयोग में लाया जाता है। गुलदस्तों में इस्तेमाल होने वाले मुख्य फूलों में गुलाब, कारनेशन, गेंदा, ग्लैडिओलस, लिलियम्स व जरबेरा आदि हैं। भारत में विगत कई वर्षों से फूलों की खेती व्यावसायिक तौर पर की जा रही हैं। फूलों की खेती से किसान भाई काफी लाभ अर्जिंत कर रहे हैं। फूलों की व्यावसायिक खेती करने में क्षेत्रफल के आधार पर भारत का प्रथम स्थान है, उसके बाद चीन, जापान, इंडोनेशिया, अमेरिका आते हैं। भारत में फूलों की खेती की 50 प्रतिशत इकाई कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और तमिलनाड़ु में की जाती है। गत वर्ष फूलों का उत्पादन 691 हजार मीट्रिक टन था और 2015-16 में भारत द्वारा लगभग 480 करोड़ रूपए के फूल 75 देशों को निर्यात किए गए। अधिकतम निर्यात नीदरलैंड, अमेरिका और जापान को किया जाता है। गुलाब कारनेशन, ग्लैडिओलस, जरबेरा की खेती मुख्य रूप से ग्रीन हाउस में की जाती है। कृषि जागरण प्रत्येक महीने इन व्यावसायिक फूलों की खेती के विषय में आपको जानकारी उपलब्ध कराती रहेगी। इस अंक में हम जरबेरा की व्यावसायिक खेती पर प्रकाश डाल रहे हैं। आशा करते हैं कि इससे आप लाभान्वित होंगे।

जरबेरा की व्यावसायिक खेती : जरबेरा को आमतौर पर अफ्रीकन डेजी के नाम से भी जाना जाता है। भारत में पहाड़ी क्षेत्रों के अलावा, इसकी खेती ग्रीन हाउस में सभी प्रदेशों में की जाती है। इसको उगाने के लिए दिन का तापमान 22 से 25 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 12 से 16 डिग्री सेल्सियस आदर्श होता है।

भूमि की तैयारी : जरबेरा उगाने के लिए मृदा का पीएच 5.5 से 8 होना चाहिए, लेकिन 5.5 से 6 आदर्श होता है। जरबेरा लगाने के लिए दो-तीन गहरी जुताईयां करनी चाहिए क्योंकि जरबेरा की जड़ें 50 सेंमी तक गहरी जाती हैं इसलिए ग्रीन हाउस में 50 सेंमी. से 60 सेमी. ऊँची और 1 से 1.25 मीटर चैड़ी उठी हुई क्यारियां बनानी चाहिए। मिट्टी में कम्पोस्ट खाद, बालू रेत एवं कोकोनट पीट/धान का छिलका 2:1:1 के हिसाब से मिलना चाहिए ताकि जड़ों को सही हवा मिल सके।

मृदा कीट शोधन : जरबेरा को लगाने से पहले मिट्टी को 100 मिली. फोर्मलिन को 5 लिटर या 300 ग्राम मिथाईल ब्रोमाइड पानी में मिलाकर 1 वर्गमीटर क्षेत्रफल में सिंचाई करें और बैड को दो से तीन दिन के लिए प्लास्टिक से ढंक दें। क्यारियों को पौध लगाने से पहले फिर से सादा पानी से सिंचाई करें ताकि मिट्टी में बचे हुए रसायन घुल जाए।

बोने का समय : जरबेरा की जड़ी हई कलमांे को जनवरी, फरवरी, मार्च और जून, जुलाई में लगाया जाता है। ज्यादा अनुकूल समय जून, जुलाई ही है क्योंकि सर्दियों के वक्त कलमें लगाने से ग्रीन हाउस में तापमान बढ़ाने का खर्चा ज्यादा आता है। जरबरा के क्राउन को बुवाई के समय मिट्टी से एक से दो सेंमी. ऊपर होना चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 40 सेमी होनी चाहिए ताकि एक वर्गमीटर में 8 से 10 पौधे लगाए जा सकें।

खाद एवं उर्वरक : कम्पोस्ट की 7.5 किलो प्रतिवर्ग मीटर की दर से डालने पर बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं। एन.पी.के की 10:15:20 ग्राम मात्रा प्रतिवर्ग मीटर बुवाई के पहले तीन महीने में और चैथे महीने से जब फूल आने शुरू हो जाएं तब 15 दिन के अन्तराल पर एन.पी.के की 15:10:30 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर की दर से देनी चाहिए। फूलों की अच्छी गुणवत्ता के लिए बोरोन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर की 1.5 ग्राम मात्रा प्रतिलिटर पानी की दर से एक महीने के अंतराल पर स्प्रे करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण : शुरुआती तीन महीनों में निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए।

सिंचाई:  पौधे लगाने के बाद ऊपर से सिंचाई करना चाहिए ताकि जड़ों का विकास अच्छी तरह हो। उसके बाद ड्रिप इरीगेशन द्वारा सिंचाई करनी चाहिए। एक पौधे को प्रतिदिन 500 से 700 मिली. पानी की आवश्यकता होती है।

जरबेरा की किस्में : गुलाबी - टेराक्वीन, वैलेंटाइन,  लाल - डस्टी,  फ्रेड़ोरेला,  वेस्टा, शानिया, रेड इम्प्लस, साल्वाडोरे, टमारा, पीला - फ्रेडकिंग, नाड्जा, उनारस, फुलमून, दोनी, पनामा, सफेद- डेल्फी, सफेद मारिया, नारंगी - कोजक, ऑरेंज क्लासिक,  बैंगनी- ट्रेजर, ब्लैकजैक।

पौध संरक्षण : आमतौर पर कीड़ों का प्रकोप ग्रीन हाउस में कम ही होता है फिर भी लीफ माईनर अगर दिखाई दे तो मोनोक्रोटोफास 0.05 प्रतिशत का स्प्रे करें। सफेद मक्खी के लिए फोस्फोमिडोन या एसिफेट 0.5: की दर से छिड़काव करें। यदि कॉलर गलन दिखाई दे तो बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लिटर की दर से छिडकाव करें। चूर्णिल फफूंदी के लिए कैराथेन 0.4ःकी दर से स्प्रे करें।

फूलों की तुड़ाई एवं उपज : जरबेरा में तीन महीने के बाद फूल आना शुरू हो जाता है। फूलों की तुड़ाई उस वक्त करें जब पुन्केसरों के दो से तीन घेरे बन जाएं। फूल को जड़ से 2-3 सेंमी ऊपर से काटना चाहिए और फ्रेश क्लोरीन (1:)वाले पानी में भिगो देना चाहिए और मिनी पालीथिन में पैक करके 2 से 4 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करना चाहिए। ग्रीन हाउस में उगाए गए जरबेरा के एक वर्गमीटर क्षेत्रफल से लगभग 240 फूल प्राप्त होते हैं। जिनमें से 85: अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं।

आर्थिक ब्यौरा : साल 2015-16 में जरबेरा के थोक मूल्य 2.25 रुपए से 5.60 रुपए रहे।       

फूलों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम 

  1. आयात शुल्क 15: से 20: रखना।
  2. ग्रीन हाउस मटेरियल और टिश्यू कल्चर लैब के उपकरणों पर ड्यूटी को 136: से 25: करना।
  3. किसानों को प्रशिक्षण देना।
  4. शीतगृह और कूल चेन विकास करना।
  5. हवाई किरायों में छूट।
  6. एपीडा द्वारा पश्चिमी एशिया, ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड आदि देशों में निर्यात को बढ़ावा देना ।
  7. बीज और प्लांटिंग मटेरियल की क्वारेंटाईन प्रक्रिया को सरल बनाना।
  8. प्लांटिंग मटेरियल पर आयात शुल्क को 55 प्रतिशत से 10 प्रतिशत करना।
  9. शीत गृह यूनिटों के आयात शुल्क को 25 प्रतिशत करना।
  10. अगर कुल उत्पादन का कोई भी व्यक्ति 50ःनिर्यात करता है तो प्लांटिंग मेटेरियल और शीतगृह यूनिटों पर आयात शुल्क मुफ्त।
  11. 25: माल भाड़े में सब्सिडी। 

 

आर.के. तेवतिया

कार्यकारी संपादक

कृषि जागरण, नई दिल्ली-110016

मो. 9891511144

ई-मेलः [email protected]

 

English Summary: Grow gearberry, increase income ... Published on: 04 November 2017, 03:26 IST

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