नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में जल्द ही काजू की खेती को शुरू किया जाएगा। इसकी खेती के लिए जिले में तैयारी भी शुरू हो चुकी है। शुरूआत में प्रयोग के तौर पर पहले ५० लाख हेक्टेयर में इसकी खेती को शुरू किया जाएगा। अफ्रीका से काजू का बीज मंगाया गया है। बैतूल प्रदेश का पहला जिला होगा जहां काजू उत्पादन इतने बड़े पैमाने पर सुनियोजित तरीके से इसको शुरू किया जाएगा। काजू संचलायन के डायरेक्टर डॉ वेंकटेश ने बैतूल जिले के तीन दिवसीय दौरा करने के बाद इस बात को कहा है। डॉ. वेंकटेश ने उद्यानिकी विभाग की उपसंचालक डॉ. आशा उपवंशी के साथ जिले में तीन दिन तक भ्रमण किया था। इस दौरान डॉ. वेंकटेश ने बताया कि बैतूल में काजू की वेंगरूला- 47 प्रजाति जलवायु को सूट करती है और जल्द से जल्द इसको लगवाने का प्रयास किया जाएगा। देश की सरकार ने अफ्रीका से इस काजू का बीज मांगवाने की तैयारी की है। जैसे ही यह बीज आएगा इसे किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा। बेंकटेश के मुताबिक जिले में काजू की खेती की बेहद ही अपार संभावनाए है। किसान अपनी वेस्ट लैंड पर भी काजू उत्पादन कर सकते हैं। फिलहाल, 150 हेक्टेयर जमीन पर काजू की खेती करने का टारगेट तय किया गया है।
अलग-अलग तीन खंडों में हो रही खेती
वर्तमान में तीन विकासखंडों घोड़ाडोंगरी, शाहपुर और चिचोली में ही काजू की खेती होती है। यहां काजू उगाने वाले किसानों से भी डॉ. वेंकटेश ने मुलाकात की। डॉ. वेंकटेश ने बताया कि महाराष्ट्र के प्रसिद्ध रत्नागिरी में भी हापुस और अल्फांसो आम की जगह काजू का उत्पादन किसान कर रहे हैं। काजू उत्पादन से वे लाखों रुपए कमा रहे हैं। अनुपजाऊ जमीनों से भी वे बेहतर आमदनी कर रहे हैं। उपसंचालक उद्यानिकी डॉ. आशा उपवंशी ने बताया कि महाराष्ट्र के काजू उत्पादक किसानों को लाकर बैतूल के किसानों को काजू उत्पादन का प्रशिक्षण दिलवाया जाएगा।
अभी आठ प्रदेशों में होती है काजू की खेती
काजू का मूलस्थान ब्राजील है, जहां से 16वीं सदी के उत्तरार्ध में उसे वनीकरण और मृदा संरक्षण के प्रयोजन से भारत लाया गया। देश के पश्चिमी और पूर्वी समुद्र तट के आप-पास के आन्ध्रप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओड़िशा, तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल में खेती होती है। इसके अलावा असम, छतीसगढ़, गुजरात, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा के कुछ इलाकों में भी काजू की खेती की जाती है।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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