मध्य प्रदेश के श्योपुर में खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए किसानों ने नए तरीकों को अपनाया है जिसके कारण किसानों को कम लागत पर ज्यादा फायदा मिल रहा है. दरअसल, जिले के मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर दूर बसे सोंई, ज्वालापुर, दांतरता खुर्द, दधूनी और वर्धा समेत कई गांवो में किसानों ने अब अपने खेत में गेहूं, धान, सोयाबीन, और धनियां जैसी अधिक लागत पर तैयार की जाने वाली फसलों को अब उगान कर अपने खेतों में अमरूद के बगीचे को लगाना शुरू कर दिया है. गांवों के किसान इन फसलों को नर्सरी में तैयार कर अच्छी क्वालिटी वाले वर्फखां, लखनवी और सफेदा अमरूद की कलम को उन देसी पौधे पर लगाकर उनकी देख-रेख का कार्य करते हैं और तीन साल बाद इन पौधे के तैयार होने के बाद अच्छी क्वालिटी के वर्फखां, लखनवी और सफेदा अमरुद लगना शुरु हो जाते हैं.
कम लागत पर किसानों को मिल रहा मुनाफा
गांवो में लगने वाले इन अमरूदों की क्वालिटी अन्य अमरूदों की तुलना में काफी स्वादिष्ट होने के कारण इसका आकार भी काफी बड़ा होता है. इसी वजह से इस अमरूद की दिल्ली, कोटा, जयपुर समेत अन्य शहरों में काफी ज्यादा डिमांड होती है और किसानों को कम लागत पर अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है. दरअसल खेतों में अमरूद की खेती की शुरूआत ज्वालापुर के किसान हाजी हिमायत अली ने अपने तीन बीघा खेत पर अमरूद के पेड़ को लगाकर की है और दुबारा पैदा कर इतनी आमदनी कर ली है कि उन्होंने 35 बीघा खेतों में अमरूद की खेती को कर लिया है. इनको देखते हुए अन्य किसान भी अपने खेतों में अमरूद की खेती को करने में लगे हुए है और वे अन्य फसलों को कम कर रहे हैं. किसानों की माने तो उनको अपने बगीचे में अमरूद की फसल करने से तीन गुना अधिक लाभ हो रहा है.
ये है खेती पर खर्च
दरअसल अमरूद की फसल को तैयार करने में दो साल में एक पेड़ पर करीब 700 रूपये का खर्च आता है और 25 सालों तक एक बीघा खेत 60 से 65 हजार रूपये प्रति वर्ष अमरूद होते हैं जबकि धान पैदा करने वाले किसानों को 7 हजार रूपये प्रति बीघा खेत खर्च हो जाता है और यदि सूखा पड़ जाता है तो ऐसे में पानी ना मिल पाने के कारण फसल सूख जाती है जिसे देखते हुए किसान अब अमरूद के बगीचे को तैयार करने लगे हैं.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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