पलाश का नाम सुनते ही कई लोग तो सोचने लगते है कि ये कौन सा नया फूल आ गया. क्योंकि ये पुष्प ज्यादातर उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में ही पाया जाता है. इस फूल का विस्तार चित्रकूट, मानिकपुर, बाँदा, महोबा व मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रो मे बहुताया से पाया जाता है. इसे परसा, ढाक, टेसू, किशक, सुपका, ब्रह्मवृक्ष और फ्लेम ऑफ फोरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना राजकीय पुष्प भी रखा है और इसे बुंदेलखंड का गौरव भी कहते है. गाँव में तो इसकी एक कहावत भी प्रसिद्ध है. ‘‘ढाक के तीन पात‘‘ इस फूल का एक छोटा सा दुर्भाग्य यह है कि इसमें अधिक सुगन्ध नहीं होती लेकिन फिर भी यह रंग-रूप और अपने आयुर्वेदिक गुणों से लोगों का मन मोह लेता है.
बसंत से शुरू हो जाता है पलाश का फूलना
श्वसन और मन अंगार हुआ खिले जब फूल पलाश के गीत की पत्ति यहां के पलाश वन क्षेत्र चरितार्थ हो रही है. बसंत ऋतु में इनका फूलना शुरू हो जाता है. बंसत पंचमी के बाद फागुन आते ही एक बार फिर से बुंदेलखंड में टेसू के रंग और रूप की चर्चाए होने लगी है. कहा जाता है कि ऋतुराज बंसत का आगमन पलाश के बगैर पूर्ण नहीं होता, अर्थात इसके बिना बसंत का श्रृंगार नहीं होता है. चाँदी से भी कीमती है इस वृक्ष के सभी भागए विभिन्न रासायनिक गुण होने के कारण यह वृक्ष आयुर्वेद के लिए विषेश उपयोगी हैं. इसके गोंद, पत्ता, पुष्प, जड़ सभी औशधियों गुणो से परिपूर्ण है. इसीलिए इसका पुष्प उत्तर प्रदेश सरकार का राजकीय पुष्प भी कहलाता है. यह पुष्प अपने औशधी गुण के कारण भारतीय डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है.
अन्य गुण
पलाश के पत्ता में बहुमूल्य पोशक तत्व होते है. जो गर्म खाने में मिल जाते है. जो शरीर के लिए बेहद फायेदेमंद है. इसके पेड़ से निकलने वाला गोंद हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत काम आता है.
आयुर्वेद की माने तो टेसू के फूलों के रंग होली मनाने के अलावा इसके फूलो को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक आती है.
टेसू की फलियां कृतिमनाशक के काम के साथ-साथ अन्य बीमारियों तथा मनुष्य का बुढ़ापा भी दूर करती है.
पलाश के फूल के पानी से स्नान करने से लू नही लगती तथा गर्मी का एहसास नहीं होता हैं.
इसकी जड़ो से रस्सी बनाई जाती है तथा नाव की दरारें भरी जाती है.
पलाश के (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के राख को लगभग 15 ग्राम तक गुनगुने घी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम मिलता है.
क्यों समाप्त हो रहा है पलाश के वृक्षों का अस्तित्व
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड तथा मध्य प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में ही इन वृक्षों का अस्तित्व बचा हुआ है. लेकिन वन विभाग की उदासीनता के कारण इन वनो का क्षेत्रफल घट रहा है. संरक्षण नहीं होने के कारण यह खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके है. पलाश के पेड़ो की अंधाधुन कटाई और बेचे जाने के कारण तथा दूसरा कारण वर्षा की कमी के कारण इसका अस्तित्व खतरे के कगार पर है.
रोजगार का जरिया बन सकता पलाश (टेसू)
पलाश के वृक्ष लाक उत्पादन करने के लिए एक अच्छे संसाधन है, अगर ग्रामीण इलाकों में लाक उत्पादन की मशीन लगा दी जाये और लाक के उत्पादन की जानकारी लोगों की दी जाये तो यह आय का अच्छा स्त्रोत होगा. होली के मस्ती बिना रंगों के अधूरी है और रंग पहले फूलो व पत्तियों से ही प्राप्त किया जाता था, इनमें सबसे ऊपर आता है, पलाश के फूलों का रंग, अगर अच्छी गुणवत्ता का रंग तैयार किया जाये जो किसी के त्वचा को नुकसान न करे, तो यह लघु उद्योगों को बढ़ावा दे सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका फूल तोड़े जाने के काफी दिनों तक रखा जा सकता है.
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