Fruit Rot In Banana: केला एक प्रमुख बागवानी फसल है जो किसानों के लिए आय का प्रमुख स्रोत है. लेकिन फलों के नीचे से सड़ने की समस्या (Fruit Rot) उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है. यह समस्या मुख्यतः कवक (Fungi) और बाद ने बैक्टीरिया (Bacteria) जैसे रोगजनकों के कारण होती है. इसके अलावा, पर्यावरणीय परिस्थितियां, पोषण प्रबंधन की कमी, और कीटों का प्रकोप भी इसे बढ़ा सकता है.
सड़न के मुख्य कारण
- रोगजनक संक्रमण: Colletotrichum musae, Fusarium spp., Botryodiplodia theobromae आदि फलों की सड़न के मुख्य कारक हैं. उच्च आर्द्रता और तापमान इन रोगजनकों के प्रसार को बढ़ावा देते हैं.
- पोषक तत्वों की कमी: कैल्शियम और पोटैशियम की कमी फलों को कमजोर बनाती है, जिससे वे रोगजनकों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं.
- खराब जल निकासी: खेत में जल भराव से जड़ों और पौधों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जो रोगों के विकास के लिए अनुकूल स्थिति पैदा करता है.
- कीट प्रकोप: तना बेधक और अन्य कीटों द्वारा किए गए घाव रोगजनकों के प्रवेश के लिए रास्ता बनाते हैं.
- अच्छे कृषि प्रबंधन की कमी: गलत सिंचाई पद्धति, अधिक घनत्व में पौधरोपण, और संक्रमित उपकरणों का उपयोग सड़न की समस्या को बढ़ा सकता है.
केला के नवजात फलों के सड़ने की समस्या को कैसे करें प्रबंधित?
1. कृषि पद्धतियों द्वारा प्रबंधन
- पौधरोपण का उचित अंतर: पौधों के बीच उचित दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह बना रहे और नमी का स्तर नियंत्रित हो.
- जल निकासी प्रबंधन: खेतों में पानी का जमाव न होने दें. यदि खेत में जल भराव की समस्या है, तो ड्रेन सिस्टम का उपयोग करें.
- फसल चक्र (Crop Rotation): केला के साथ अन्य फसलों जैसे मक्का, गेंदा या दालों को बदल-बदल कर उगाएं ताकि मिट्टी में रोगजनकों का स्तर कम हो.
2. पोषण प्रबंधन
- कैल्शियम और पोटैशियम युक्त उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें.
- जैव उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की उर्वरता और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है.
- नीम की खली, हरी खाद, बर्मी कंपोस्ट या खूब सड़ी कंपोस्ट का उपयोग करें ताकि मिट्टी की संरचना सुधरे और रोगों का प्रसार कम हो.
3. जैविक प्रबंधन
- एंडोफाइट्स और माइक्रोबियल कंसोर्टिया का उपयोग: Trichoderma harzianum, Pseudomonas fluorescens, और Bacillus subtilis जैसे जैविक एजेंट रोगजनकों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं. इनका प्रयोग करना चाहिए.
- नीम आधारित जैविक उत्पाद: नीम के तेल का 3% घोल बनाकर फलों और पत्तियों पर छिड़काव करें.
4. रासायनिक प्रबंधन
- फफूंदनाशकों का उपयोग: नवजात केला के फलों के सड़ने की समस्या की उग्र अवस्था में रासायनिक नियंत्रण अक्सर आवश्यक होता है, विशेषकर व्यावसायिक केले के उत्पादन में. केला के बंच के निकालने के तुरंत बाद, इस रोग के प्रबंधन के लिए नैटिवो @ 1 ग्राम प्रति दो लीटर पानी का छिड़काव करें या एज़ोक्सीस्ट्रोबिन/क्लोरोथालोनिल/ मैन्कोज़ेब/ साफ़ / कार्बेन्डाजिम में से कोई भी फफूंदनाशक की @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव करें.
- रोगनिरोधक उपचार: फलों के गुच्छों पर पॉलीथीन बैग लगाएं, जिन्हें कीटनाशक और फफूंदनाशक से उपचारित किया गया हो. नवजात फलों को कवकनाशक घोल (जैसे 0.1% थायोफेनेट मिथाइल) से छिड़काव करके छिद्र युक्त पॉलीथिन बैग लगाएं.
5. फसल संरक्षण उपाय
- नवजात फलों की देखभाल: फलों को किसी भी प्रकार के घावों से बचाने के लिए साफ और स्वस्थ उपकरणों का उपयोग करें.
- समय पर कटाई: अधिक समय तक फलों को पेड़ पर रखने से वे रोगजनकों के लिए अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, इसलिए आवश्यक है कि सही परिपक्वता पर फलों की कटाई करें.
6. पर्यावरणीय प्रबंधन
खेत के आसपास की मिट्टी और पौधों को साफ-सुथरा रखें.रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को जलाकर नष्ट करें.
- समग्र रणनीति
एकीकृत रोग प्रबंधन (IPM): फलों खासकर नवजात फलित की सड़न को नियंत्रित करने के लिए जैविक, रासायनिक और कल्चरल पद्धतियों का सम्मिलित उपयोग करें.
- निरंतर निगरानी और परीक्षण
नियमित रूप से खेतों का निरीक्षण करें और शुरुआती लक्षणों को पहचानकर उपचार शुरू करें.
- किसानों का प्रशिक्षण
उन्हें उन्नत तकनीकों और नवाचारों से अवगत कराएं.
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