फेरोमोन ट्रैप को गंध पाश भी कहते हैं। इसमें एक प्लास्टिक की थैली पर कीप आकार की संरचना लगी होती है जिसमें ल्योर लगाने के लिये एक सांचा दिया होता है। ल्योर में फेरोमोन द्रव्य की गंध होती है जो आसपास के नर कीटों को आकर्षित करती है। ये ट्रैप इस तरह बने होते हैं कि इसमें कीट अन्दर जाने के बाद बाहर नहीं आ पाते हैं।
इससे सबसे बड़ा फायदा कीटों को पहचानने में होता है क्योंकि इसमें सारे कीट एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं। इससे यह पता चल जाता है कि खेत में कौन-कौन से कीट लगे हैं और इनकी प्रति एकड़ संख्या कितनी है। एक बार कीटों की पूरी जानकारी मिलने पर सही उपाय भी किये जा सकते हैं। फेरोमोन ट्रैप प्रति बीघा 4-5 लगाने चाहिए।
क्या है फेरोमोन?
यह एक प्रकार की विशेष गंध होती है जो मादा पतंगा छोड़ती हैं। यह गंध नर पतंगों को आकर्षित करती है। विभिन्न कीटों द्वारा विभिन्न प्रकार के फेरोमोन छोड़े जाते हैं इसलिए अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग ल्योर काम में लिए जाते हैं। कई सारे फेरोमोने ट्रैप का उपयोग कीटों को अधिक से अधिक समूह में पकड़ने के लिए भी किया जाता है जिससे नर कीट ट्रैप हो जाएं और मादा कीट अंडा देने से वंचित रह जाएं।
कैसे करें उपयोग?
खेतों में इस ट्रैप को सहारा देने के लिए एक डंडा गाड़ना होता है। इस डंडे के सहारे छल्ले को बांधकर इसे लटका दिया जाता है। ऊपर के ढक्कन में बने स्थान पर ल्योर को फंसा दिया जाता है तथा बाद में छल्लों में बने पैरों पर इसे कस दिया जाता है। कीट एकत्र करने की थैली को छल्ले में विधिवत लगाकर इसके निचले सिरे को डंडे के सहारे एक छोर पर बांध दिया जाता है। इस ट्रैप की ऊंचाई इस प्रकार से रखनी चाहिए कि ट्रैप का ऊपरी भाग फसल की ऊंचाई से 1 से 2 फुट ऊपर रहे।
ट्रैप का निर्धारण व सघनता
प्रत्येक कीट के नर पतगों को बड़े पैमाने पर एकत्र करने के लिए सामान्यत: दो से चार ट्रैप प्रति बीघा प्रर्याप्त हैं। एक ट्रैप से दूसरे ट्रैप की दूरी 30-40 मीटर रखनी चाहिए। इस ट्रैप को खेत में लगा देने के उपरांत इनमें फंसे पतंगों की नियमित जांच की जानी चाहिए और पाए गए पतंगों का आंकलन करना चाहिए जिससे कीटों की संख्या और गतिविधियों पर ध्यान रखा जा सके। बड़े पैमाने पर कीड़ों को पकड़कर मारने के उद्देश्य से जब इसका उपयोग किया जाए तो थैली में एकत्र कीड़ों को नियमित रूप से नष्ट कर थैली को बराबर खाली करते हैं जिससे उसमें नए कीड़ों को प्रवेश पाने का स्थान बना रहे। इस नई तकनीक का लाभ यह है कि किसान अपने खेतों पर कीड़ों की संख्या का आंकलन कर कीटनाशकों के उपयोग की रणनीति निर्धारित कर अनावश्यक खर्च से बच सकते हैं।
किसान अगर फूल बनने की प्रक्रिया शुरु होने से पहले ट्रैप लगा दें तो खेतों में कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में आसानी रहेगी और इससे किसान को नुक्सान होने से पहले ही पता लग जायेगा जिससे किसान नुक्सान से बच सकता है वरना कीटों की संख्या अचानक बढ़ते ही किसान सीधे रासायनिक कीटनाशक डाल देता है जिससे अनावश्यक खर्च होता है और किसान को लाभ की बजाय नुक्सान ही होता है।
कुलदीप सिंह (एमएससी एग्रीकल्चर), करण सिंह (वरिष्ठ अनुसन्धान अध्येता), डॉ. प्रदीप कुमार
एसएचयूएटीएस, इलाहाबाद व कृषि अनुसंधान केंद्र, श्री गंगानगर
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